कोलकाता। मां भारती की आजादी का दिन 15 अगस्त 1947 है। उसके बाद से हर साल 15 अगस्त को झंडोत्तोलन कर स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाया जाता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत में पहला तिरंगा 15 अगस्त 1947 को नहीं बल्कि उसके 41 साल पहले सात अगस्त 1906 को ही क्रांतिकारियों ने लहरा दिया था। वह भी तत्कालीन बंगाल के कोलकाता स्थित मशहूर जगह मानिकतला में। यहां बोस परिवार का घर है जो उस समय क्रांतिकारियों का केंद्र बिंदु था और अनुशीलन समिति के मुख्यालय के तौर पर इस्तेमाल होता था। वहां पहला तिरंगा फहराया गया था।
कोलकाता के मशहूर पारसी बागान स्थित बोस परिवार का घर राष्ट्रवाद का ऐसा मंदिर है, जहां आजादी से 41 साल पहले ही तिरंगे को लहरा दिया गया था। दशकों के आंदोलन के बाद आखिरकार हमारे देश को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से आजादी मिली थी। मानिकतला के 14 नंबर पार्सी बागान स्क्वायर (जो वर्तमान में पार्सी बागान लेन के नाम से जाना जाता है) स्थित मकान में ही तिरंगे को फहराया था। आजादी के इन दीवानों में बोस परिवार के बुजुर्ग से लेकर बच्चे तक ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई थी। इस मकान में रहने वाला बोस परिवार संभवत: देश का एकमात्र ऐसा परिवार है, जिसके हर सदस्य ने आजादी के लिए अपनी-अपनी भूमिका निभाई और बलिदान दिया। यहां तक कि अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए देशभर के क्रांतिकारियों ने मिलकर जिस अनुशीलन समिति की स्थापना की थी उसकी गतिविधियों का केंद्र बिंदु बोस परिवार का घर ही था।
कोलकाता में बना था पहला तिरंगा, स्वरूप था अलग
यहां न केवल सबसे पहले तिरंगा लहराया गया था बल्कि पहला तिरंगा भी कोलकाता शहर में ही बना था। यहां आजादी के दीवानों ने अखंड भारत का सपना लेकर 1906 में सात अगस्त को जो तिरंगा फहराया था, वह आज के तिरंगे के जैसा नहीं था बल्कि इस तिरंगे झंडे को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था और उस पर वंदे मातरम लिखा था।
बसु परिवार के सदस्य और राजशेखर बोस के परपोते सौम्या शंकर बोस ने “हिन्दुस्थान समाचार” से विशेष बातचीत में बताया कि उस दिन की याद में आज भी सात अगस्त को यहां राष्ट्र को समर्पित कार्यक्रमों का आयोजन होता है और ध्वज फहराया जाता है। प्रभावशाली बंगाली चंद्रशेखर बसु के चार बेटे थे। शशिशेखर बसु, राजशेखर बसु, कृष्णशेखर बसु और गिरिंद्रशेखर बसु। प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता में पढ़ने के बाद गिरिंद्र शेखर बसु ने मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा का अध्ययन किया। दादा कृष्ण शेखर बोस नादिया नगरपालिका के अध्यक्ष थे, राजशेखर बोस लेखक थे और रसायन शास्त्र के महारथी भी थे।
टैगोर से लेकर नजरुल तक नियमित आते थे
– इसी घर से क्रांतिकारियों के सभी खर्चों का भुगतान किया जाता था। खुद राजशेखर बसु ने बम बनाने की विधि स्वतंत्रता सेनानियों को सिखाई थी। अरविंद घोष, बारिन घोष, जगदीश चंद्र बोस, प्रफुल्ल चंद्र रॉय, जतिंद्रनाथ सेन, सत्येंद्रनाथ बोस, शरत चंद्र चटर्जी, बिधान चंद्र रॉय, नजरूल इस्लाम और यहां तक कि रवींद्रनाथ टैगोर यहां नियमित रूप से आते थे। आजादी के दीवानों के लिए यह जगह किसी तीर्थ से कम नहीं थी। हालांकि आज आजादी के बाद यह उपेक्षित है और इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
दिया जाता था प्रशिक्षण
सौम्या शंकर ने बताया कि बोस परिवार का उनका यह घर भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बंगाल में बनी अंग्रेज-विरोधी, गुप्त, क्रान्तिकारी, सशस्त्र संस्था अनुशीलन समिति के लिए प्रशिक्षण केंद्र भी था। इसका उद्देश्य वन्दे मातरम् के प्रणेता व प्रख्यात बांग्ला उपन्यासकार बंकिम चन्द्र चटर्जी के बताये गये मार्ग का ”अनुशीलन” करना था। इसका आरम्भ 1902 में अखाड़ों से हुआ जिसका मुख्य मकसद युवाओं को अंग्रेजों से लड़ने की ट्रेनिंग देना था। मानिकतला के इसी मकान के पास मौजूद अखाड़े में युवाओं को बम बनाने से लेकर शस्त्र चलाने तक और लड़ने से लेकर बौद्धिक प्रचार-प्रसार तक, सबकुछ सिखाया जाता था।
यहां से शुरू हुए आजादी के आंदोलन की शुरूआत और इसकी गतिविधियों का प्रचार प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों सहित पूरे बंगाल में हो गया। इसके प्रभाव के कारण ही ब्रिटिश भारत की सरकार को 1905 के जुलाई में बंग-भंग का निर्णय वापस लेना पड़ा था। इसी वजह से क्रांतिकारियों ने सात अगस्त 1906 को वंदे मातरम लिखा तिरंगा लहराकर आजादी का उद्घोष किया था। भले ही पूरे देश ने इसी उद्घोष को 41 साल बाद दोहराया लेकिन इसकी नींव बोस परिवार के इसी मकान में पड़ी थी। (हि.स.)