झींगा उत्पादन से लेकर निर्यात में अग्रणी गुजरात के झींगा उत्पादक किसानों की चिंता बढ़ गई है। महंगा बीज, आहार के साथ महंगी बिजली के जरिए खारी भूमि में झींगा उत्पादकों के लिए अब स्पर्धा में बने रहना चुनौतीपूर्ण है। झींगा उत्पादन में गुजरात को चुनौती देने वाले आंध्र प्रदेश में पिछले दिनों वहां की सरकार ने चुनावी पासा फेंकते हुए झींगा उत्पादक किसानों को राहत दी। वहां बिजली दर 4 रुपए से घटाकर डेढ़ रुपए कर दी गई। इससे गुजरात समेत दक्षिण गुजरात के झींका उत्पादकों पर मानों वज्रपात हुआ है।
झींगा उत्पादकों के संगठन गुजरात एक्वाकल्चर एसोसिएशन ने अधिकारियों को पत्र लिखकर गुहार लगाई है। एसोसिएशन का कहना है कि गुजरात के झींगा उत्पादक पहले से कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे थे, अब उन्हें नई चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
ऐसे होगा असर
दक्षिण गुजरात के 100 से लेकर 150 गांवों में वहां के लोग झींगा उत्पादन करते हैं। समुद्र किनारे की बंजर भूमि की प्लॉटिंग कर सरकार ने झींगा उत्पादकों को जमीन मुहैया कराया है। गुजरात में 25000 एकड़ जमीन पर करीब 1900 किसान झींगा उत्पादन से जुड़े हैं। इसके कारण 1.5 लाख लोगों को रोजगार मिला है। करीब 2000 करोड़ रुपए के झींगा उत्पादन में 10 फीसदी लेबर को जाता है। यानी श्रमिकों को करीब 200 करोड़ रुपए मिलते हैं। इसे रोजगार का बड़ा जरिया माना जाता है।
उत्पादकों का कहना है कि एक किलो झींगा उत्पादन में 5 से 6 यूनिट खर्च होता है। इसके कारण आंध्र प्रदेश के किसानों को यह लागत जहां 7 से 8 रुपए होंगे, वहीं गुजरात के किसानों को 35 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इसके अलावा आंध्र प्रदेश में हेचरी होने से उनके बीज और भोजन भी सस्ते हैं।
चार-पांच वर्ष से हमारी मांग अनसुनी
गुजरात एक्वाकल्चर एसोसिएशन सूरत के डॉ. मनोज शर्मा का कहना है कि गुजरात के समुद्र किनारे की बंजर भूमि झींगा उत्पादन के जरिए सोना उगल रही है। करोड़ों रुपए का सालाना निर्यात किया जाता है, हजारों लोगों को रोजगार मिला है। सरकार की अनदेखी के कारण हम देश में पिछड़ते जा रहे हैं। आंध्र में बिजली सस्ती होने से हमारा लागत खर्च बढ़ रहा है। हम स्पर्धा में पिछड़ते जा रहे हैं। पिछले 4-5 साल से हम लगातार सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट कर रहे हैं, लेकिन हमारी नहीं सुनी जा रही है। (हि.स.)