Friday, November 22"खबर जो असर करे"

अमृतकाल में 2047 तक साकार होंगे राष्ट्र निर्माताओं के सभी सपने : राष्ट्रपति मुर्मू

नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) ने स्वतंत्रता दिवस (Independence day) को भारतीयता का उत्सव बताते हुए पिछले 75 वर्षों के दौरान देश की विकास यात्रा (country’s development journey) का अभिनंदन किया तथा आजादी के शताब्दी वर्ष 2047 तक के कालखंड को अमृतकाल की संज्ञा दी।

राष्ट्रपति मुर्मू ने 76वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या (eve of 76th independence day) पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि भारत में आजादी मिलने के बाद देश में लोकतंत्र की सफलता को लेकर व्यक्त की जा रही आशंकाओं को नकार दिया तथा लोकतंत्र की जड़ें गहरी होती गईं। उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियों के कारण देश का आर्थिक विकास अधिक समावेशी हो रहा है तथा क्षेत्रीय विषमताएं भी कम हो रही हैं। राष्ट्रपति ने देशवासियों के सामने स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष तक के कालखंड के लक्ष्यों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अगली 25 वर्ष की अवधि भारत के लिए ‘अमृतकाल’ है। हमारा संकल्प है कि इस अवधि में हम स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को पूरी तरह साकार कर लेंगे। एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में देशवासी पहले से ही तत्पर हैं। शताब्दी वर्ष में भारत एक ऐसा देश होगा जो अपनी क्षमताओं और संभावनाओं को साकार रूप दे चुका होगा।

राष्ट्रपति ने देशवासियों को उनके मूल कर्तव्यों का भी स्मरण कराया। उन्होंने कहा कि भारत में आज संवेदनशीलता और करुणा के जीवन मूल्यों को प्रमुखता दी जा रही है। इन जीवन मूल्यों का मुख्य उद्देश्य वंचित, जरूरतमंद तथा समाज के हासिये पर रहने वाले लोगों के कल्याण हेतु कार्य करना है। मुर्मू ने कहा कि हमारे राष्ट्रीय मूल्यों को नागरिकों के मूल कर्तव्यों के रूप में समाहित किया गया है। उन्होंने देशवासियों से अनुरोध किया कि वे अपने मूल कर्तव्यों के बारे में जानें, उनका पालन करें जिससे हमारा राष्ट्र नई ऊंचाईयों को छू सके।

राष्ट्रपति ने कहा कि स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या वाले दिन 14 अगस्त को ‘विभाजन-विभीषिका स्मृति-दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है। इस स्मृति दिवस को मनाने का उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, मानव सशक्तीकरण और एकता को बढ़ावा देना है।

राष्ट्रपति ने कहा कि ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना का प्रभाव हर क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। देश में स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था तथा इनके साथ जुड़े अन्य क्षेत्रों में अच्छे बदलाव दिखाई दे रहे हैं। इनके मूल में सुशासन की भावना है। इस सकारात्मक बदलाव से विश्व समुदाय में भारत की प्रतिष्ठा स्थापित हो रही है।

राष्ट्रपति ने स्वतंत्रता दिवस को भारतीयता का उत्सव करार देते हुए कहा कि यह विश्व में लोकतंत्र के हर समर्थक के लिए उत्सव का विषय है। राष्ट्रपति ने देश की विविधता में एकता के स्वरूप का उल्लेख करते हुए कहा कि विविधता के साथ ही हम सभी में कुछ न कुछ ऐसा है जो एक समान है। यही समानता देशवासियों को एकसूत्र में पिरोती है तथा ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।

राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में हर क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का उल्लेख करने के साथ ही कोरोना महामारी की विपरीत परिस्थितियों का सफलता पूर्वक सामना करने का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत में महामारी के दौर में भी स्वयं को संभाला तथा पुन: तीव्र गति से आगे बढ़ने लगा। इस समय भारत दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ रही प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक देश है।

राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में राष्ट्रवादी कन्नड़ भाषा के कवि ‘कुवेम्पु’ की इन पंक्तियों का उल्लेख किया-‘मैं नहीं रहूंगा न रहोगे तुम परन्तु हमारी अस्थियों पर उदित होगी, उदित होगी नये भारत की महागाथा।’

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे पास जो कुछ भी है वह हमारी मातृभूमि का दिया हुआ है। इसलिए हमें अपने देश की सुरक्षा, प्रगति और समृद्धि के लिए अपना सब कुछ अर्पण कर देने का संकल्प लेना चाहिए। हमारे अस्तित्व की सार्थकता एक महान भारत के निर्माण में ही दिखाई देगी। उन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए देश के युवाओं से योगदान करने का विशेषरूप से अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि युवा ही वर्ष 2047 के भारत का निर्माण करेंगे। (एजेंसी, हि.स.)