– डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
इस समय कांग्रेस तो चुनावी मोड में कम नजर आ रही है पर भाजपा कोई चुनावी कसरत नहीं छोड़ रही। हर योजना को चुनावी एंगल से कसा जा रहा है। भाजपा की सक्रियता के मास्टर माइंड यदि कोई हैं तो वह केन्द्रीय गृहमंत्री और भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह हैं। मध्य प्रदेश के राजनीतिक हलके में एक ही नारा गूंज रहा है, वह है-अबकी बार फिर भाजपा सरकार। गरीब कल्याण महाअभियान से लेकर जन आशीर्वाद यात्रा तक, भाजपा का सब कुछ केन्द्रीय नेतृत्व से तय हो रहा है। एक तरफ तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से जनता की नाराजगी भी झलक रही है तो दूसरी तरफ केन्द्र में बैठा भाजपा का नेतृत्व किसी भी कीमत पर मध्य प्रदेश को भाजपा के हाथ से खोना नहीं चाहता। जी जान से जुटे कार्यकर्ताओं में हर समय जोश और विजय का मंत्र फूंका जा रहा है। बूथ-बूथ, पन्ना-पन्ना, वार्ड-वार्ड, मोहल्ला-मोहल्ला भाजपा के नेताओं की दस्तक शुरू हो चुकी है।
भाजपा ने मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव से लगभग 100 दिन पहले ही पहली सूची जारी कर दी। पहली सूची में जारी 39 उम्मीदवारों में सी और डी श्रेणी की सीटें हैं, जहां भाजपा 2018 में हारी और कुछ सीटें ऐसी हैं जहां दस साल से हार रही है। ऐसी सीटों पर घोषित उम्मीदवारों को बाद में यह कहने का भी अवसर नहीं है कि ऐन वक्त पर उम्मीदवारी घोषित हुई या चुनाव प्रचार, संपर्क आदि के लिए समय नहीं मिला। अब पूरा समय मिला है तो उम्मीदवार भी मुश्तैदी से मैदान संभाल चुके हैं।
कमाल की बात तो यह है कि अब तक कांग्रेस के खेमे से चुनाव की महक भी आनी शुरू नहीं हुई। जन आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कर चुके हैं। अमित शाह बीते दो माह में कई बार प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। उनका इंदौर का कार्यकर्ता सम्मेलन और भोपाल का औचक दौरा इस बात की गवाही दे रहा है कि इस बार मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लीडर इन एक्शन अमित शाह ही हैं।
शाह की रणनीति मध्य प्रदेश भाजपा के लिए बेहद कामगार भी हो सकती है पर इसी बीच भाजपा में दरार नजर आ रही है। भाजपा के नौ कद्दावर नेताओं का कांग्रेस में जाना यही संकेत दे रहा है ।इससे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कैलाश जोशी के बेटे और पूर्व मंत्री दीपक जोशी भी कांग्रेस में जा चुके हैं। मोदी मैजिक मध्य प्रदेश में कितना असर करेगा ये चुनाव परिणाम ही बता सकते हैं, पर मोदी को मध्य प्रदेश की चिंता भी लगातार सता रही है इसीलिए अपने सबसे मास्टर–ब्लास्टर अमित शाह को मध्य प्रदेश की कमान सौंप रखी है।
अमित शाह ने भाजपा के मिशन 2023 की नैया पार लगाने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की 82 सीटों में भगवा फहराने का संकल्प लिया है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए 47 और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 35 सीटें सुरक्षित हैं। वह कई बार आदिवासी क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं। लगभग तीन वर्ष पहले वे राजा शंकर शाह-रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस 18 सितंबर को जबलपुर आए थे। यहां से उन्होंने आठ वादे किए थे। इनमें पेसा नियम लागू करने का वादा भी था। दरअसल, वर्ष 2018 में भाजपा के सरकार न बनने का प्रमुख कारण अजा-अजजा वोटबैंक का भाजपा से दूर जाना रहा है। दो साल बाद भाजपा को कांग्रेस की कलह का फायदा मिला। वह सत्ता में आई। तभी से शाह ने अजा-अजजा की 82 सीटों पर वापसी के लिए सक्रियता बढ़ा दी।
इसके अलावा भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा शुरू हो चुकी है। यह यात्रा 10643 किलोमीटर की दूरी तय करेगी और प्रदेश के 210 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेगी। इन यात्राओं में भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व और पार्टी के वरिष्ठ शामिल होंगे। वैसे पुराने चुनाव पर नजर डाली जाए तो अमित शाह का चुनावी मैनेजमेंट तगड़ा दिख रहा है।
इस चुनावी मौसम में कांग्रेस अपनी आपसी खींचतान से जूझ रही है। दिग्विजय सिंह तो कमलनाथ पर सार्वजनिक जुबानी हमला बोलने से रुक नहीं रहे। कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व भी मध्य प्रदेश में सक्रिय नजर नहीं आ रहा। अभी तक कांग्रेस के चुनाव प्रभारी भी तय नहीं हुए हैं। उम्मीदवारों की घोषणा तो दूर की कौड़ी है। इससे कांग्रेस का पारम्परिक वोट बैंक भी चिंतित है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)