झाबुआ। आदिवासी जिले में भगोरिया उत्सव के बाद करीब डेढ़ दर्जन स्थानों पर जनजातीय समुदाय का परंपरागत एवं एक प्रमुख धार्मिक, सांस्कृतिक गल पर्व बड़े ही हर्षोल्लास पूर्वक सम्पन्न हुआ। आयोजन में गल घूमने आए मन्नत धारियों, दूरस्थ अंचलों से बड़ी संख्या में आए समाजजनों सहित नगरीय क्षेत्रों से आए लोग मौजूद रहे। आज से जिले में उजाड़िया हाट बाजार की सात दिवसीय श्रृंखला शुरू हो जाएगी। इस बार इन पर्वोंत्सव को लेकर संपूर्ण जिले में अभूतपूर्व उत्साह देखने में आया।
बता दें कि झाबुआ जनपद के मिंडल, पेटलावद जनपद क्षैत्र के रायपुरिया एवं रामनगर, मेघनगर जनपद क्षैत्र के जरात ओर मालखंडवी एवं थांदला जनपद के मछलईमाता सहित जिले के करीब डेढ़ दर्जन स्थानों में बुधवार को देर रात तक परंपरागत गल उत्सव हर्षोल्लास पूर्वक धूमधाम से मनाया जाता रहा। गल घुमाए जाने सहित पूजा अर्चना एवं सामूहिक नृत्य का सिलसिला देर रात तक चला। कुछ स्थानों पर चूल का भी आयोजन हुआ। आज से उजाड़िया हाट शुरू शुरू हो जाएंगे, जो सप्ताह भर जारी रहेंगे।
जिले के जनजातीय समुदाय का एक प्रमुख पर्व गल-चूल परम्परागत उत्सव के रूप में प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। वस्तुत: यह पर्व मन्नत पूरी हो जाने पर गल देव के सामने मन्नत उतारे जाने की प्रक्रिया है, जिसमें मन्नत धारी व्यक्ति को करीब 20 से 25 फीट ऊंचे मचान पर गोलाकार रूप से घुमाया जाता है, जबकि चूल में मन्नतधारी महिला पुरूष जलते हुए अंगारों से होकर गुजरते हैं। उक्त परंपरागत पर्व आस्था का अद्भुत आयाम है, जो एक सदी से भी अधिक समय से जनजातीय समुदाय द्वारा बड़ी ही शिद्दत से एवं परम्परागत रूप से बड़े हर्षोल्लास पूर्वक मनाए जाते हैं।
गल के इस परम्परागत उत्सव में आदिवासियों द्वारा अपनी परम्परागत विधि से प्रथम गल देवता की पूजा सम्पन्न की जाती है, फिर उत्सव की शुरुआत होती है। गल चढ़ने की यह सम्पूर्ण क्रिया अत्यंत रोमांचकारी है, जिसमें गल चढने वाले व्यक्ति (यह मन्नतधारी होता है, जिसे आदिवासी लोग “लाडा” कहते हैं) को करीब 20 से 25 फीट ऊंचे बने मचान पर लकड़ी के ढांचे से बांध दिया जाता है और फिर उसे गोलाकार घुमाया जाता है।
जिले के मेघनगर जनपद क्षेत्र के ग्राम जरात में आयोजित गल उत्सव मे भी ऐसा ही नजारा देखने में आया। यहां आयोजित गल उत्सव देर रात तक चलता रहा। उत्सव में शामिल होने के लिए दोपहर बाद से ही लोगों का जमावड़ा शुरू हो गया था। उत्सव का आरम्भ होते ही पुरूष अपने परंपरागत वाद्य यंत्रों ढोल और मांदल बजाते हुए और गोलाकार घेरा बनाते हुए सामुहिक रूप से नृत्य करने लगे और जब मन्नत धारी व्यक्ति के गल चढ़ने की प्रक्रिया शुरू हुई तो ये लोग उद्धाम नृत्य करने लगे। गल घुमाए जाने के पहले गल देवता की जनजाति परंपरा अनुसार विधिवत पूजा अर्चना की गई, ओर फिर एक के बाद एक, सब मन्नतधारियों को करीब 20 फीट ऊचे मचान पर चढ़ाकर गोलाकार रूप में घुमाया जाने लगा। इसे गल चढ़ना या घूमना कहते हैं. जो व्यक्ति गल घूमता है, उसकी कोई मन्नत ली हुई होती है, जिसके पूरी होने पर वह गल घूमता है।
जरात में आयोजित गल उत्सव में सबसे पहले गल घूम चुके एवं गल देवता के मंदिर के सेवादार देवा, पुत्र वडसिंह डोडियार ने ग्राम जरात में आयोजन स्थल पर हिन्दुस्थान समाचार को कहा कि वह इस स्थान पर कई सालों से गल घूमता है ओर उसकी कोई मन्नत नहीं रहती है। वह गल देवता का आशीर्वाद प्राप्त करने के ही लिए हर साल गल घूमता है। उसने बताया कि जरात में इस वर्ष 25 लोग गल घूमें। कभी कोई दुर्घटना तो नहीं हुई? ऐसा पूछने पर वहां उपस्थित ग्राम समिति के बहादुर सिंह एवं कालू सिंह, पुत्र नाथू ने कहा कि यहां जरात में गल पर्व पिछले करीब सौ वर्षों से मनाया जाता रहा है। ओर आज तक यहां किसी भी तरह की कोई दुर्घटना नहीं हुई है।(हि.स.)