Friday, November 22"खबर जो असर करे"

यूरोप में फिर फासीवाद ?

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

सौ साल पहले इटली में फासीवाद का उदय हुआ था। इटली के बेनिटो मुसोलिनी के बाद जर्मनी में एडोल्फ हिटलर ने नाजीवाद को पनपाया। इन उग्र राष्ट्रवादी नेताओं के कारण द्वितीय महायुद्ध हुआ। पिछले 77 साल में यूरोप के किसी भी देश में ये उग्रवादी तब पनप नहीं सके लेकिन अब इटली, जर्मनी, फ्रांस और स्वीडन जैसे देशों में दक्षिणपंथी राजनीति तूल पकड़ती जा रही है। इन पार्टियों के नेता मुसोलिनी और हिटलर की तरह हिंसक और आक्रामक तो नहीं हैं लेकिन इनका उग्रवाद इनके देशों के लिए चिंता का विषय तो बन ही रहा है। ये लोग तख्ता-पलट के जरिए सत्तारूढ़ नहीं हो रहे हैं।

लोकप्रिय वोटों से चुनकर ये लोग सत्ता के निकट पहुंचते जा रहे हैं। इटली में ‘बदर्स ऑफ इटली’ की नेता जिर्योजिया मेलोनी के प्रधानमंत्री बनने की पूरी संभावना है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी और मत्तेओ साल्विनी की पार्टियों के साथ मिलकर कल चुनाव लड़ा था। मेलोनी (45) अभी युवा हैं, बर्लुस्कोनी (85) के मुकाबले और जब वे छात्रा थीं तो ‘इटालियन सोशल मूवमेंट’ में काफी सक्रिय रही हैं। यह संगठन मुसोलिनी के समर्थकों ने खड़ा किया था। बाद में मेलोनी सांसद और मंत्री भी बनीं। वे आजकल दावा करती हैं कि वे फासीवादी बिल्कुल नहीं हैं लेकिन किसी जमाने में वे मुसोलिनी की काफी तारीफ किया करती थीं। मारिया द्राघी की पिछले सरकार में कई पार्टियां गठबंधन में शामिल हुई थीं लेकिन मेलोनी की अकेली बड़ी पार्टी थी, जो विपक्ष में बैठी रही थी। इसीलिए अब ‘ब्रदर्स ऑफ इटली’ पार्टी को इटली की जनता काफी महत्व दे रही है।

उम्मीद यही की जा रही है कि परसों संपन्न हुए आम चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें इसी पार्टी को मिलेंगी। मेलोनी यदि प्रधानमंत्री बन गईं तो वे सिर्फ गरीबों का ही नहीं, सबका टैक्स घटाएंगी, इटली की जनसंख्या को प्रोत्साहित करेंगी, प्रवासियों को आने से रोकेंगी और इटली के मामलों में यूरोपीय संघ की दखलंदाजी को नियंत्रित करेंगी। वे इस्लामी तत्वों के साथ सख्ती बरतने पर भी आमादा हैं। वे गर्भपात-विरोधी हैं। वे स्त्री-अधिकार और अन्य कई सामाजिक प्रश्नों पर कट्टर पोंगापंथी रवैया अपनाए हुए हैं। यूक्रेन के मामले में वे रूस का भी डटकर विरोधी कर रही हैं।

पता नहीं, उनकी गठबंधन सरकार कितने दिन चलेगी, क्योंकि उनके सहयोगी नेताओं का रुख इन समस्याओं पर जरा नरम है। उनकी यूक्रेन से ज्यादा रूस के प्रति सहानुभूतिपूर्ण हैं। मेलोनी ने इधर मुसोलिनी की आलोचना भी शुरू कर दी है। ऐसी आशंका कम ही है कि इटली समेत यूरोप के अन्य देशों में अब फासीवाद या नाजीवाद का उदय दुबारा हो सकता है।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)