Friday, September 20"खबर जो असर करे"

यह किताब ‘सामूहिक हिंसा एवं दांडिक न्याय पद्धति’ तो जहरीली है

– डॉ. मयंक चतुर्वेदी

पुस्तकों को लेकर प्राय: यही कहा जाता है कि पुस्तकें ही हमारी सच्ची दोस्त हैं जिनके रहते जीवन को एक सही दिशा मिलती है। यदि आपके पास एक अच्छी पुस्तक है तब उस स्थिति में आप उसके ज्ञान से ऊंचाईयों को छू सकते हैं । किंतु यही पुस्तकें जब मनों में जहर भरने का काम करें तब हम कौन से समाज का निर्माण करेंगे और हमारा भविष्य कैसा होगा? इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। वस्तुत: मध्य प्रदेश के इंदौर में शासकीय विधि महाविद्यालय में जिस तरह की पुस्तक यहां के पुस्तकालय से मिली है और जिसका कि अध्ययन वहां विद्यार्थी कर रहे थे, उसे जानकर आज यही लग रहा है कि समाज में विष बोने वाले किस हद तक जाकर लोगों के मन में विद्वेष भरने का योजनाबद्ध षड्यंत्र कर रहे हैं, उसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है।

इस पुस्तक के सामने आने पर यह बात फिर से साफ हो गई है कि एक बहुत बड़ा वर्ग है जोकि संगठित होकर भारतीय समाज विशेषकर हिन्दू समाज को तोड़ने एवं लोगों को किसी न किसी बहाने से आपस में लड़ाने में लगा हुआ है। आश्चर्य तो यह है कि डॉ. फरहत खान ”सामूहिक हिंसा एवं दांडिक न्याय पद्धति” के नाम पर ब्राह्मणों को कटघरे में खड़ा करने वाली, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य हिन्दूविचार के संगठनों के विरोध में किताब लिख लेती हैं और उन्हें प्रकाशक भी मिल जाते हैं, उसमें फिर प्राचार्य डॉ. इमामूल रहमान और प्राध्यापक मिर्जा जैसे लोग मिल जाएं तो फिर क्या कहने ! जोकि शासन में रहकर इन जैसी पुस्तकों की खरीद कर उन्हें पुस्तकालयों में रखवा देते हैं। जहां ज्ञान की खोज में विद्यार्थी अध्ययन करने स्वभाविक तौर पर आते हैं । यहां ये विद्यार्थी अनुचित जानकारी लेकर स्वयं का तो नुकसान करते ही हैं साथ ही गलत जानकारी से पूर्ण होकर समाज में भी विषाक्तता फैलाने का ही कार्य करते आगे नजर आते हैं।

अब यहां इस पुस्तक में जो लिखा है उस पर आप विचार करें- यह पुस्तक साफ तौर पर घोषित कर रही है कि हिन्दुओं के संगठन विशेषकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद, धर्म के आधार पर लोगों को भड़काने का काम कर रहे हैं। पुस्तक कह रही है कि हिंदुओं के जितने भी सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संगठन बने हैं, उनका एक मात्र उद्देश्य मुसलमानों का विनाश करना है और शूद्रों को दास बनाना है। हिंदू राजतंत्र का शासन वापस लाकर ब्राह्मणों को पृथ्वी का देवता बनाकर पूज्य बनाना है।

पुस्तक में लिखा है कि हिंदू संप्रदाय विध्वंसकारी विचारधारा के रूप में उभर रहा है। विश्व हिंदू परिषद जैसा संगठन हिंदू बहुमत का राज्य स्थापित करना चाहता है। वह किसी भी बर्बरता के साथ हिंदू राज्य की स्थापना को उचित ठहराता है।… हिंदुओं ने हर संप्रदाय से लड़ाई का मोर्चा खोल रखा है। पंजाब में सिखों के खिलाफ शिव सेना जैसे त्रिशूलधारी नए संगठन ने मोर्चा बना लिया है। पंजाब का सच आज यह है कि मुख्य आतंकवादी हिंदू हैं और सिख प्रतिक्रिया में आतंकवादी बन रहा है। कमाल यह है कि पहले मुसलमान चिल्लाया करते थे कि अल्पसंख्यक इस्लाम खतरे में है, पर आज हिंदू चिल्ला रहा है बहुसंख्यक हिंदू खतरे में हैं।

पुस्तक कहती है कि आज हिंदू बहुसंख्यक, हिंदू अल्पसंख्यक मुसलमान पर अपनी इच्छा थोपने का काम कर रहा है। आज यही सांप्रदायिक संघर्ष का कारण बन रहा है। जब कांग्रेस सत्ता में आ गई और भाजपा मुख्य विरोधी दल बन गया तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भाजपा को आदेश दिया कि दोनों ब्राह्मणवादी दल हैं और दोनों में ब्राह्मणों का प्रभुत्व है। भाजपा और कांग्रेस में सिद्धांतत: कोई अंतर नहीं है। वह यह भी प्रश्न कर रही हैं कि जब धार्मिक स्थलों की 1947 की स्थिति कायम रखी जाएगी तो अयोध्या का मंदिर इस कानून की सीमा से क्यों बाहर किया गया। आरएसएस ने भाजपा को कांग्रेस का विरोध करने से रोका तो कांग्रेस को भी आदेश दिया कि अयोध्या का विवाद कानून से बाहर रखे ताकि भाजपा अपनी सांप्रदायिक राजनीति करती रहे। इसके अतिरिक्त पुस्तक खुले तौर पर धारा 370 के विरोध में बोलकर सीधे संविधान को चोट पहुंचा रही है।

विचार करें, यहां विधि के छात्रों को पढ़ाया जा रहा था कि सभी हिन्दू संगठन का एक ही उद्देश्य है मुसलमानों का नाश, शूद्रों को दास बनाना और हिंदू राजतंत्र का शासन वापस लाकर ब्राह्मणों को पृथ्वी का देवता बनाकर पूजना। क्या भारतीय गणतंत्र में और भारतीय संविधान या संपूर्ण भारत में वास्तविकता में ऐसा कहीं है? यह कुछ तथ्य हैं, इन्हें भी देखें-प्रसिद्ध भाषाविद और 11 खंडों की ”इन्साइक्लोपीडिया ऑफ हिन्दुइज्म” के लेखक प्रो. कपिल कपूर ने भारत में एक हजार साल के भक्ति साहित्य का आकलन किया और उन्होंने पाया कि अधिकांश भक्त-कवि ब्राह्मण या सवर्ण नहीं थे, किन्तु संपूर्ण हिन्दू समाज उन्हें देवता की तरह आज भी पूज रहा है ।

इतिहास में ई.पू. तीसरी सदी के मेगास्थनीज से लेकर हुएन सांग, अल बरूनी, इब्न बतूता, और 17वीं सदी के चार्ल्स बर्नियर तक दो हजार सालों के भारतीय जनजीवन का वर्णन देख लें। उन्होंने हिन्दू समाज की छोटी-छोटी बातों का उल्लेख किया है। लेकिन किसी ने भी यहाँ पर छुआ-छूत को नहीं पाया था। एक भी दृष्य या उद्धरण इस प्रकार का नहीं, जिससे यह सिद्ध होता कि भारत में अस्पृश्यता का कोई स्थान रहा हो । हां, महाभारत में अवश्य ही ब्राह्मण अश्वत्थामा को अस्पृश्य बताया गया है, क्योंकि उस ने पांडवों के शिशुओं का वध किया था। यानी कि इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय समाज परम्परा से उसे अस्पृश्य मानता आया है, जोकि इस तरह के पापाचार करता है। संपूर्ण हिन्दू शास्त्र, पुराण इत्यादि में जाति-आधारित छुआ-छूत का निर्देश आपको कहीं नहीं मिलता है।

वस्तुत: ”ब्राह्मण” का विरोध उस वैदिक ज्ञान-परंपरा के खात्मे की चाह है, जिस के समाप्त होते ही हिन्दू धर्म और समाज स्वत: नष्ट हो जाएगा। जब वेद पाठ, सत्संग, पूजा पद्धति और भक्ति नहीं रहेगी तो स्वभाविक है कि हिन्दू धर्म भी नहीं रहेगा। कह सकते हैं कि ब्राह्मणों से घृणा का अर्थ वेदांत और शास्त्र-अध्ययन से घृणा है। अतः ब्राह्मण-विरोध का निहितार्थ हिन्दू धर्म-समाज की समाप्ति की इच्छा है। जहां तक भारत में ब्राह्मणों की स्थिति का प्रश्न है तो वह पहले से बहुत खराब है। अनेक समुदायों की तुलना में ब्राह्मणों की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है। वे अपनी रोटी-रोटी किसी भी तरह कमाने को विवश हैं। सिर्फ दिल्ली में ही 100 से अधिक सुलभ शौचालयों की सफाई ब्राह्मण समुदाय के लोग कर रहे हैं। फिर देश भर में क्या हालत होंगे, यह स्वत: ही अंदाजा लगाया जा सकता है । कई शासकीय एवं निजि संस्थानों में ब्राह्मण आपको झाडू लगाते, पानी पिलाते और टॉयलेट साफ करते हुए मिल जाते हैं, इसलिए समाज में यह स्थापित करना कि हिन्दू संगठन आज ब्राह्मणों को पृथ्वी का देवता बनाकर पूजने के लिए कार्य कर रहे हैं, यह अपने आप में महाझूठ और षड्यंत्र है।

इसी प्रकार से पुस्तक द्वारा यह बताना कि मुसलमानों का नाश हिन्दू संगठनों का उद्देश्य है। यहां सोचनेवाली बात है कि यदि वास्तव में ऐसा होता तो क्या भारत का विभाजन कभी हो पाता ? क्या भारत में कभी मुस्लिम पंथ का विस्तार हो पाता? और तो और विभाजन के पश्चात विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या मुसलमानों की आज भारत में होती ? लव जिहाद और आतंकवाद का खुला कुचक्र देश भर में दिखाई देता है, क्या वह होता? आप विचार करेंगे तो आपको इसका उत्तर स्वत: ही मिल जाएगा।

इसी प्रकार से यह पुस्तक शूद्रों का जिक्र कर एक बहुत बड़े वर्ग के मन में अपने ही भारतीय लोगों के प्रति घृणा फैलाने का काम कर रही है। यह पुस्तक पंजाब और सिख-हिन्दू को लेकर जो लिख रही है, धारा 370, राममंदिर निर्माण, कांग्रेस, भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों को लेकर इसके जो जहरीले विचार हैं। वस्तुत: उससे आज साफ झलक रहा है कि ऐसी पुस्तकें समाज को अनेक भागों में बांटकर भारत की एकात्मता को चुनौती देने का काम कर रही हैं। सरकार को और जागरुक समाज को चाहिए कि वह खोज-खोज कर इस प्रकार की समस्त पुस्तकों को नष्ट कराने का कार्य करें। वास्तव में ऐसी जितनी भी पुस्तकें हैं आज उन सभी पर जितनी जल्दी बैन लगे, भारतीयता के लिए वह उतना ही अच्छा होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)