– सुरेश हिन्दुस्थानी
गुजरात के विधानसभा चुनाव में अबकी बार अलग प्रकार की राजनीति होती दिखाई दे रही है। लम्बे समय से गुजरात में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला होता था, लेकिन अब गुजरात की चुनावी राजनीति में आम आदमी पार्टी (आप) का प्रवेश भी हो चुका है। हालांकि आप गुजरात में कितना कुछ कर पाएगी, यह फिलहाल केवल संभावनाओं पर ही आधारित है, लेकिन वह कांग्रेस के सपनों पर पानी फेरती दिखाई दे रही है। आप ने जिस प्रकार से दिल्ली और पंजाब में अप्रत्याशित रूप से छप्पर फाड़ समर्थन प्राप्त किया, ऐसा कम ही देखने को मिलता है। यह बात सही है कि गुजरात के मतदाताओं का स्वभाव दिल्ली और पंजाब से मेल नहीं खाता, इसलिए आप गुजरात में सफल हो जाएगी, इसकी गुंजाइश कम ही लगती है, लेकिन कहा जाता है कि राजनीति असंभावित दृश्य को भी संभावित कर सकती है।
इसके पीछे का कारण यह भी है कि देश का मतदाता तात्कालिक लाभ पाने के लिए गुमराह हो जाता है और जहां से मुफ्त का लाभ दिखाई देता है, उसे अपना समर्थन भी दे देता है। वास्तव में मुफ्त देने की राजनीति आम आदमी को निकम्मा बनाने का ही काम करती है। इसके बजाय लोगों को स्वावलंबी बनाने के प्रयास तेज करने का काम सरकार की ओर से किया जाना चाहिए, इसकी देश को बहुत ज्यादा आवश्यकता है। जहां तक भारतीय जनता पार्टी की बात है तो यह बात कहने में कोई संकोच नहीं है कि भाजपा अगर सत्ता पर फिर से विराजमान होती है तो यह उसकी नई उपलब्धि नहीं कही जाएगी, क्योंकि जो पहले से ही प्राप्त है, वह उपलब्धि नहीं होती। इसके अलावा कांग्रेस और आप अपनी ताकत बढ़ाने में सफल होती हैं, तो स्वाभाविक रूप से भाजपा कमजोर ही होगी, यही बात भाजपा को सोचने के लिए विवश कर रही है। इसका आशय यह भी है कि कांग्रेस और आप के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है।
कांग्रेस तो गुजरात में लम्बे समय से विपक्ष की राजनीति करती रही है और अब उसमें आप भी शामिल हो सकती है। वर्तमान में गुजरात की प्रादेशिक राजनीतिक ताकत की बात की जाए तो यह बात सही है कि भाजपा के पास राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर चेहरों की संख्या कांग्रेस और आप से कहीं ज्यादा है। इसलिए यह कहा जाना उचित ही होगा कि प्रचार की दृष्टि से भाजपा अन्य दलों से ज्यादा स्थान पर पहुंच सकती है। जिसका राजनीतिक लाभ भी भाजपा को मिल सकता है। दूसरी बात यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मातृभूमि भी गुजरात ही है, इसलिए उनकी हर बात का प्रभाव भी मतदाताओं पर होगा। इसके बाद भाजपा में चाणक्य की भूमिका में स्थापित होते जा रहे गृहमंत्री अमित शाह लम्बी दूरी की योजना बनाने में सफल होते रहे हैं, यह भी गुजरात से ही हैं। जब अमित शाह अन्य स्थानों पर जाकर वहां राजनीति की बारीकियां समझ लेते हैं तो गुजरात तो उनका गृह प्रदेश है, यहां की पूरी राजनीति की समझ उनको होगी ही, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।
गुजरात में पिछले चार विधानसभा चुनाव से भाजपा को लगातार बहुमत मिलता आ रहा है, जिसमें कांग्रेस द्वारा पूरा जोर लगाने के बाद भी सत्ता पाने लायक सफलता नहीं मिल सकी। अब कांग्रेस को यह उम्मीद लगने लगी है कि उसे सत्ता विरोधी मत भी प्राप्त हो सकते हैं। इसका कारण यह भी है कि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया और चुनाव परिणाम के दौरान कई बार ऐसा भी लगने लगा था कि कांग्रेस सत्ता प्राप्त कर सकती है। दूसरी बात यह भी है कि अबकी बार कांग्रेस ने ऐसी सीटों पर ज्यादा फोकस करने की योजना बनाई है, जहां बहुत कम अंतर से कांग्रेस के उम्मीदवार पराजित हुए थे। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस इस चुनाव के प्रति बहुत ही गंभीर दिखाई दे रही है। लेकिन कांग्रेस के लिए इस चुनाव में बड़ी समस्या यह भी है कि उसके पास प्रचार करने वालों में राष्ट्रीय नेता का अभाव है। क्योंकि सोनिया गांधी वर्तमान में राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं हैं और उनके पुत्र राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं। इस यात्रा से राहुल को समय मिलेगा, इसकी संभावना कम ही दिखाई देती है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को हार्दिक पटेल के आंदोलन का भी लाभ मिला, लेकिन अब हार्दिक पटेल भाजपा को मजबूत करने के लिए राजनीति कर रहे हैं।
जहां तक आम आदमी पार्टी की बात है तो यह कहा जा सकता है कि वह गुजरात में भी बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने की प्रतीक्षा करते दिखाई दे रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी लुभावनी नीतियों का सब्जबाग दिखाकर मतदाताओं को सम्मोहित कर देते हैं और फिर उसी धारा में आम मतदाता भी बहने लगता है, लेकिन दिल्ली और पंजाब की भांति गुजरात में स्थापित होने का सपना देख रहे अरविंद केजरीवाल के लिए गुजरात इतना सरल नहीं है, जितना वे समझ रहे हैं। लेकिन इतना अवश्य ही कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस की संभावनाओं पर पानी फेर सकती है।
गुजरात में क्या होगा, यह कहना अभी जल्दबाजी ही होगी, लेकिन यह भी सही है कि अगर सत्ता के विरोध में हवा का रुख रहा तो भाजपा को फिर से सत्ता प्राप्त करने के लिए अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता होगी। वर्तमान में कांग्रेस की राजनीति सत्ता प्राप्त करने की नहीं रही, वह केवल इतनी ही राजनीति करती है कि भाजपा सत्ता से दूर हो जाए, इसके लिए फिर कोई भी सत्ता प्राप्त कर ले, इस प्रकार की राजनीति को सिद्धान्तहीन राजनीति ही कहा जाता है। इसी प्रकार की राजनीति के कारण ही आज कांग्रेस अपनी दुर्गति करा रही है। राजनीति अपनी नीतियों पर ही की जाती है, वर्तमान में कांग्रेस के पास अपनी स्वयं की कोई नीति ही नहीं है। कांग्रेस द्वारा जो भारत जोड़ो यात्रा निकाली जा रही है, उसका भी आम जन द्वारा यह कहकर विरोध किया जा रहा है कि देश को कांग्रेस ने ही तोड़ा, फिर वह किस मुंह से भारत को जोड़ने की बात कर रही है। कमोबेश यही स्थिति आम आदमी पार्टी की भी है, उसके अपने कोई सिद्धांत नहीं हैं। वह भी भाजपा विरोधी राजनीति करने को ही राजनीति मानती है। निहितार्थ यही है कि भाजपा कम से कम सिद्धांत और विचार की राजनीति ही करती है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)