– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
राजस्थान सरकार एक बार फिर ‘रेगिस्तान के जहाज’ ऊंट के संरक्षण और विकास के लिए गंभीर नजर आने लगी है। दरअसल राजस्थान ही नहीं देश में ऊंटों की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। देश में ऊंटों की घटती संख्या पर सरकारों से लेकर गैरसरकारी संगठन तक गंभीर हैं। ऊंट को कुछ साल पहले राजस्थान का राज्य पशु घोषित किया गया था। अब तक ऊंटों के संरक्षण और तस्करी से बचाने के लिए लाख प्रयास किए गए पर परिणाम अधिक उत्साहजनक नहीं रहे हैं। अब राजस्थान में मादा ऊंट व बच्चे की पहचान पर पशुपालक को दो किस्त में दस हजार रुपये प्रोत्साहन स्वरूप दिए जाएंगे। इस अभिनव योजना में पशु चिकित्सक द्वारा मादा ऊंट व बच्चे को टैग लगाकर पहचान पत्र दिया जाएगा। इस पहचान को दिए जाने के बाद संबंधित पशुपालक को पांच हजार रुपये दिए जाएंगे। इसके बाद जब ऊंट का बच्चा एक वर्ष का हो जाएगा तब उसके टैग को दिखाने पर दूसरी किस्त के पांच हजार रुपये दिए जाएंगे। पशु चिकित्सक को भी इसके लिए 50 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। इसके लिए दस करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
कुछ साल पहले गैर सरकारी संगठन पीपुल फॉर एनीमल्स ने ऊंटों की कम होती संख्या पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए सरक्षण का आग्रह किया था। इसके बाद तत्कालीन राज्य सरकार ने ऊंटों के संरक्षण के लिए ब्रीडिंग की कार्ययोजना बनाने के भी निर्देश दिए थे। ऊंटों की ब्रीडिंग के लिए दुबई के विशेषज्ञों से सलाह ली जाती रही। एक समय ऊंट को रेगिस्तान के जहाज के रूप में जाना जाता था। आज भी रेगिस्तान में ऊंट का कोई विकल्प नहीं हैं। पिछले वर्षों में ऊंट की तस्करी व वध से ऊंटों की संख्या में निरंतर कमी होती रही है। ऊंट को रेगिस्तान की जीवन रेखा माना जाता रहा है। ऊंटों का खेती में उपयोग करने के साथ ही आवागमन के साधनों के रूप में प्रमुखता से उपयोग रहा है। कोरोनाकाल से पहले तक पुष्कर में भरने वाले सालाना अन्तरराष्ट्रीय मेले का एक प्रमुख आकर्षण ऊंट रहने के साथ ही इस मेले में अन्य पशुओं के साथ ही ऊंटों की भी प्रमुखता से बिक्री होती रही है। राज्य में तीन दशक पहले ऊंटों की संख्या लगभग आठ लाख थी जो निरंतर कम होती जा रही है। जानकारों का कहना है कि ऊंटों की संख्या घटते-घटते अब 25 प्रतिशत से भी कम रह गई है। वास्तव में यह चिंतनीय है।
राज्य सरकार ने पश्चिमी राजस्थान में ऊंट प्रजनन केन्द्र खोला है। इसके लिए अन्तरराष्ट्रीय मानकों का ध्यान रखने का निर्णय करते हुए दुबई के संस्थाओं से संपर्क व उनकी भागीदारी तय करने का सकारात्मक निर्णय भी किया है। ऊंटों की ब्रीडिंग के लिए दुबई में ऊंट प्रजनन केन्द्र हैं। यही कारण है कि सरकार ने ऊंटों की नस्ल सुधार व बेहतर सेवाओं के लिए दुबई की कंपनियों का आंमत्रित किया है। पिछले कुछ समय से ऊंट के दूध के व्यावसायिक उत्पादन और निर्यात की संभावनाओं पर भी काफी पढ़ने को मिला है। ऐसे में ऊंट की नस्ल सुधार, नस्ल संरक्षण और ऊंट की संख्या में निरंतर होती कमी को दूर करने के लिए राज्य सरकार को कार्ययोजना बनाकर काम करने का निर्णय सराहनीय है। ऊंट के दूध के व्यावसायिक उत्पादन के साथ ही ऊंट के दूध की निर्यात संभावनाओं को अमली जामा पहनाना होगा।
बीकानेर के विश्वविद्यालय को इस दिशा में आगे आकर रेगिस्तान के जहाज की घटती संख्या को रोकने के लिए कारगर उपाय सुझाने होंगे। ऊंटों की संख्या में कमी का प्रमुख कारण इनकी तस्करी माना जा रहा है। बांग्लादेश व खाड़ी देशों में ऊंटों की काफी मांग है। कहा जाता है कि वहां ऊंटों की कीमत नस्ल के अनुसार मर्सडीज कार के बराबर तक है। राजस्थान से ऊंटों की काफी अधिक संख्या में निकासी अन्य प्रदेशों को हो रही है। इसके अलावा ऊंटों का वध भी अधिक हो रहा है। ऊंट के मांस की मांग बांग्लादेश और खाड़ी के देशों में अधिक है। ऊंट को राजकीय पशु घोषित किए लंबा समय हो चुका है। अब सरकार एक बार फिर गंभीर हुई है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)