– श्याम जाजू
कहते हैं गरीबी से बड़ा अभिशाप नहीं। गरीबी न जाति देखती है न धर्म। पिछड़ेपन के मूल में भी गरीबी ही है। केंद्र की प्रगतिशील और संवेदनशील सरकार ने समाज के इस सच को पहचाना और 2019 में संविधान संशोधन विधेयक लाकर देश में निर्धन सवर्ण आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया जो गरीबी के कारण पिछड़े सवर्णों को सामाजिक न्याय का सम्बल प्रदान करेगा। यह फैसला आर्थिक समानता के साथ ही जातीय वैमनस्य दूर करने की दिशा में ठोस कदम है, इसका स्वागत इसलिए होना चाहिए क्योंकि यह उन सवर्णों के लिए एक बड़ा सहारा है जो आर्थिक रूप से विपन्न होने के बावजूद आरक्षित वर्ग सरीखी सुविधा पाने से वंचित रहे हैं।
दरअसल आर्थिक आधार पर आरक्षण का फैसला प्रधानमंत्री मोदी जी की ‘सबका साथ, सबका विकास’ की अवधारणा के अनुकूल है। इससे न केवल सवर्ण गरीबों का जीवन स्तर सुधरेगा बल्कि जातिगत आधार पर होने वाले आरक्षण के विरोध की तीव्रता भी काम होगी और देश में आपसी सद्भाव का वातावरण बनेगा। इसी चर्चित और उपयोगी विधेयक पर विगत सोमवार को माननीय उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय खंड पीठ ने भी अपनी मुहर लगा दी। उन्होंने मोदी सरकार के 2019 के संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रख सवर्ण आरक्षण पर अपनी संस्तुति प्रदान कर दी और इस तरह से सवर्ण गरीबों को जातिगत आरक्षण के परे एक संजीवनी देने का कार्य किया। केंद्र की मोदी सरकार द्वारा सामाजिक समरसता और सामाजिक न्याय की दिशा में उठाया गया यह अत्यंत महत्वपूर्ण कदम था जिसको अब सर्वोच्च न्यायालय की संस्तुति भी मिल गयी। गरीबी उन्मूलन की दिशा में इसके अत्यंत सार्थक परिणाम होंगे। इसका व्यापक रूप से स्वागत होना चाहिए।
गरीब सवर्णों को आर्थिक आरक्षण देने के लिए संविधान में किए गए 103वें संशोधन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। बेंच में चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस रविंद्र एस भट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल थे। याचिकाकर्ताओं ने 103वें संशोधन की खामियां और संविधान की मूल संरचना को लेकर दलीलें दी थीं। पर अब दस फीसदी EWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है। संविधान पीठ ने 3: 2 के बहुमत से संवैधानिक और वैध करार दिया है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने बहुमत का फैसला दिया और 2019 का संविधान में 103 वां संशोधन संवैधानिक और वैध करार दिया गया है।
अदालत ने कहा – EWS कोटे से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं हुआ। इसी के साथ आरक्षण के खिलाफ याचिकाएं खारिज की गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50% कोटा को बाधित नहीं करता है। ईडब्ल्यूएस कोटे से सामान्य वर्ग के गरीबों को फायदा होगा। ईडब्ल्यूएस कोटा कानून के समक्ष समानता और धर्म, जाति, वर्ग, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। खंड पीठ के सदस्य जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने EWS आरक्षण को संवैधानिक करार दिया और कहा कि ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता। ये आरक्षण संविधान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। ये समानता संहिता का उल्लंघन नहीं है। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी आरक्षण को सही करार दिया। इस पर जस्टिस माहेश्वरी से सहमति जताई है। जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि अगर राज्य इसे सही ठहरा सकता है तो उसे भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता। ईडब्ल्यूएस नागरिकों की उन्नति के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में संशोधन की आवश्यकता है। असमानों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता। SEBC अलग श्रेणियां बनाता है। अनारक्षित श्रेणी के बराबर नहीं माना जा सकता। ईडब्ल्यूएस के तहत लाभ को भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 103 वें संविधान संशोधन का बचाव करते हुए कहा कि सामान्य वर्ग के ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत कोटा एससी, एसटी और ओबीसी के लिए उपलब्ध 50 प्रतिशत आरक्षण को छेड़े बिना प्रदान किया गया है। किसी संवैधानिक संशोधन को यह स्थापित किए बिना रद्द नहीं किया जा सकता है कि यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है। दूसरा पक्ष इस बात से इंकार नहीं कर रहा है कि उस अनारक्षित वर्ग में संघर्ष कर रहे या गरीबी से जूझ रहे लोगों को किसी सहारे की जरूरत है। इस बारे में कोई संदेह नहीं है।
अब चूंकि देश की न्यायपालिका ने इस विधेयक पर अपनी मोहर लगा दी है, सारे विवादों का अब समापन हो जाना चाहिए। हमें याद करना चाहिए स्वर्गीय अरुण जेटली जी के शब्द जो उन्होंने इस विधेयक पर बहस करते हुए कहे थे। उन्होंने कहा था कि, “यह विधेयक सभी वर्गों के लोगों को समान लाभ देने का सरकार की ओर से प्रयास है। सरकार बिल के जरिए समाज में बराबरी लाने की कोशिश कर रही है।” जेटली जी ने कहा था ये सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ स्पष्ट किया है कि 50 फीसदी आरक्षण की लिमिट केवल जातिगत आरक्षण के लिए है। बिल संसद से पास होने के बाद आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा हो सकता है। 8 जनवरी 2019 को गरीब सवर्ण आरक्षण के मसौदे पर संसद में बहस प्रारम्भ करते हुए भाजपा नेता थावरचंद गहलोत जी ने कहा था कि यह आरक्षण ही सबका साथ सबका विकास है। इस प्रावधान का लाभ बहुत लोगों को मिलेगा, यही सच है और इसे सभी को स्वीकार करना चाहिए।
(लेखक, भाजपा के निर्वतमान राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।)