Friday, November 22"खबर जो असर करे"

इजरायल में नेतन्याहू का पुनरोदय

– डा. वेदप्रताप वैदिक

इजरायल में इन दिनों जितनी फुर्ती से सरकारें बनती और बिगड़ती हैं, दुनिया के किसी अन्य लोकतंत्र में ऐसे दृश्य देखने को नहीं मिलते। बेंजामिन नेतन्याहू लगभग डेढ़ साल बाद फिर दोबारा प्रधानमंत्री बन गए। उनका यह पुनरोदय असाधारण हैं। वे इजरायल के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जो वहीं पैदा हुए हैं। उनसे पहले जो भी प्रधानमंत्री बने हैं, वे बाहर के किन्हीं देशों से आए हुए थे। जब 1948 में इजरायल का जन्म हुआ था, तब जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका आदि कई देशों के गोरे यहूदी लोग वहां आकर बस गए थे। उन्हीं में से एक का बेटा जो 1949 में जन्मा था, अब इजरायल का ऐसा प्रधानमंत्री है, जिससे ज्यादा लंबे काल तक कोई भी प्रधानमंत्री नहीं रहा। 47 साल की उम्र में इजरायल के प्रधानमंत्री बनने वाले वे सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। वे कई बार हारे और जीते।

उन्हें दक्षिणपंथी माना जाता है। वे फौज के सिपाही होने के नाते 1967 के अरब-इजरायल युद्ध में अपनी बहादुरी दिखा चुके थे। यह वह वक्त था, जब इजरायल ने डंडे के जोर पर सीरिया से गोलान की पहाड़ियां, जॉर्डन का पश्चिमी किनारा, गाजा पट्टी और पूर्वी यरूशलम पर कब्जा कर लिया था। उस आक्रामक संस्कार से मंडित नेतन्याहू ने जब इजरायली राजनीति में प्रवेश किया तो वे अरब-विरोधियों के प्रवक्ता बन गए। नरमपंथी प्रधानमंत्री यित्जाक राबिन की हत्या के बाद 1996 में हुए चुनाव में इजरायल की जनता ने घनघोर अरब-विरोधी नेतन्याहू को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया। नेतन्याहू उस ‘ओस्लो एकाॅर्ड’ के विरोधी थे, जो इजरायल और फलिस्तीन के दो राज्यों को मान्यता दे रहा था। दो राज्यों का यह समाधान आतंकवाद की भेंट चढ़ गया और नेतन्याहू ने उस समझौते की धुर्रियां बिखेर दीं।

उन्होंने इजरायल द्वारा कब्जाए गए इलाकों को खाली करने से मना कर दिया, अरबों को इजरायल से निकाल बाहर करने की मुहिम चलाई और फलिस्तनियों से समझौते के सारे रास्ते बंद कर दिए। नेतन्याहू ने अमेरिका से नजदीकी बढ़ाई और ईरान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अभियान छेड़ दिया। उन्होंने ओबामा-काल में ईरान के साथ हुए परमाणु-समझौते का विरोध किया और ईरान के विरुद्ध परमाणु शस्त्रास्त्रों के प्रयोग की धमकी भी दी। उनके ईरान-विरोध ने अरब देशों के सुन्नी शासकों को इजरायल के नजदीक ला दिया। अब इजरायल के मिस्र, सउदी अरब, जॉर्डन, यूएई, बहरीन, मोरक्को, सूडान आदि राष्ट्रों से भी ठीक-ठाक संबंध बन गए हैं। भारत और रूस के साथ भी इजरायल के संबंध पहले से बेहतर बनाने में नेतन्याहू का विशेष योगदान है। उन्हीं के प्रयत्न के फलस्वरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल गए थे और वे खुद दो बार भारत आ चुके हैं। भारत के साथ इजरायल के सामरिक, व्यापारिक और कूटनीतिक संबंध पहले से भी ज्यादा घनिष्ट होने की संभावना है लेकिन फलस्तीन का मामला अब ज्यादा उलझ सकता है, क्योंकि नेतन्याहू की सरकार में यहूदी उग्रवाद के प्रवक्ता भी शामिल हैं।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)