Saturday, November 23"खबर जो असर करे"

एनजीटी का ऐतिहासिक ‘सामाजिक’ फैसला

– रोहित पारीक

राजस्थान के बिश्नोई समाज का पेड़ों के प्रति पावन संकल्प पीढ़ी दर पीढ़ी सशक्त हो रहा है। अब समाज के लिए यह सिर्फ एक संकल्प नहीं रहा, बल्कि एक परम्परा बन चुका है जिसे नई पीढ़ी भी अपने जीवन का हिस्सा बना चुकी है। खेजड़ली में तो बिश्नोई समाज की आत्मा बसती है। यही कारण है कि समाज ने खेजड़ली के दफन पेड़ों को भी खोज निकाला और अपने समर्पण को साबित किया। इसके बाद समाज के इस संकल्प को देश के संविधान का ऐसा सम्मान मिला है जो भविष्य के लिए अनुकरणीय उदाहरण बन गया है।

हाल ही, एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने जोधपुर जिले में एक प्राइवेट सोलर कंपनी एएमपी एनर्जी ग्रीन फोर प्राइवेट लिमिटेड पर दो लाख रुपये जुर्माना लगाते हुए अवैध रूप से काटे गए पेड़ों की तुलना में 10 गुना पेड़ लगाने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। यह फैसला सभी को सामान्य लग सकता है, लेकिन इस फैसले तक पहुंचने के लिए समाज की गहन तपस्या है जिसने यह सिद्ध किया है कि समाज खेजड़ली संरक्षण के लिए सिर्फ बोलता ही नहीं, बल्कि करके भी दिखाता है। समाज ने यह भी साबित किया कि यदि सबूत जुटाने में सरकारी एजेंसियां विफल हो भी जाएं, और यदि समाज ठान ले तो दूध का दूध पानी का पानी कर सकता है।

जोधपुर जिले में एक प्राइवेट सोलर कंपनी एएमपी एनर्जी ग्रीन फोर प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारियों ने प्रोजेक्ट के लिए खेजड़ी व रोहिड़ा के पेड़ काट दिए। इसी साल 10 जून को फलौदी उपखंड के बड़ी सिड्ड गांव में खेजड़ी के पेड़ों को काट दिया गया था। इसके बाद कंपनी ने मामला छिपाने के लिए पेड़ों को जमीन में दफना दिया। इसकी जानकारी मिलने पर बिश्नोई समाज के लोगों ने चार दिन में जमीन में दफन पेड़ों को ढूंढ़ लिया और उनके अवशेष बाहर निकाल लिए। इसके बाद बिश्नोई समाज धरने पर बैठ गया। पेड़ों को बचाने के लिए 15 जून से करीब पांच दिन से ज्यादा भूख हड़ताल हुई और विरोध प्रदर्शन हुआ। मामला बढ़ने लगा तो जिला प्रशासन ने मामले की जांच का आश्वासन दिया था।

अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा की ओर से आरोप लगाया गया था कि सोलर प्लांट लगाने के लिए खेजड़ी के लगभग 10 हजार पेड़ों को काटा गया है। उन्होंने मांग की थी कि सरकार की तरफ से भविष्य में खेजड़ी नहीं काटने, काटे गए पेड़ों की जगह 10 गुना पेड़ लगाने, सोलर प्लांट के 30 फीसदी भाग को ग्रीन जोन में विकसित करने, पेड़ काटने के दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई और पेड़ काटने में मिलीभगत करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ एक्शन लिया जाए। इसके बाद एनजीटी में याचिका दायर की गई। एनजीटी ने प्रदूषण निवारण मंडल को एक कमेटी बना पूरे मामले की जांच कर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। जांच के बाद कमेटी ने सोलर कम्पनी को दोषी करार दिया था। रिपोर्ट में स्वीकार किया गया कि कम्पनी ने सोलर प्लांट लगाने के लिए 3200 बीघा जमीन लीज पर ली। इस जमीन से 250 पेड़ काटे गए।

बिश्नोई समाज की एक बार फिर जीत हुई। याचिका की सुनवाई के दौरान एनजीटी ने कहा, एएमपी कम्पनी वन विभाग की तरफ से बताई गई जमीन पर काटे गए पेड़ों से दस गुना ज्यादा पेड़ दोबारा लगाए। साथ ही संबंधित विभाग में दो लाख रुपये जमा करवाए। इस राशि का उपयोग वन विकास के लिए किया जाएगा। साथ ही, एनजीटी के चेयरपर्सन न्यायाधीश आदर्श कुमार की अध्यक्षता वाली बेंच ने कम्पनी को आदेश दिया कि पर्यावरण के नुकसान की भरपाई करने के लिए वह एक महीने के भीतर एक लाख रुपये कलेक्टर के पास जमा करवाए। इस राशि का उपयोग जिले के पर्यावरण प्लान के अनुसार किया जाएगा। यह फैसला एक नजीर है और बिश्नोई समाज के पर्यावरण के प्रति संकल्प पर अमिट मुहर है, वह भी उस समय जब पूरी दुनिया हरे पेड़ों की कटाई से ऑक्सीजन समेत कम बरसात जैसे संकट का सामना कर रही है। इस फैसले ने प्राकृतिक न्याय के प्रति विश्वास को और अटूट किया है।

बिश्नोई समुदाय ने इस जीत पर प्रसन्नता तो जताई, लेकिन चिंता भी जताई। समाज का कहना है कि पश्चिमी राजस्थान में पर्यावरण की स्थिति को खराब करने के लिए सोलर कम्पनियां सरकारों की अनुमति से खेजड़ी, रोहिड़ा जैसी रेगिस्तानी वनस्पति प्रजातियों सहित वन संसाधनों को बेतरतीब नुकसान कर रही हैं। इन पेड़ों पर रहने वाले पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। सौर कम्पनियों ने हजारों एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है। इन जमीनों पर सैंकड़ों पेड़ काटे जा चुके हैं और यह कटाई अब भी जारी है। समाज की मांग है कि सोलर कम्पनियां राज्य सरकार से मास्टर प्लान बनाकर सोलर पार्क विकसित करें ताकि उनका सोलर प्लांट उस जगह लगाया जा सके, जो स्वीकृत भूमि है, जिसमें वनस्पति और आबादी नहीं है। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए निर्धारित क्षेत्र को छोड़कर पौधारोपण किया जाना चाहिए। यदि सोलर पार्क बनाना है तो 30 प्रतिशत भूमि पौधारोपण के लिए आरक्षित कर उसे विकसित करने की शर्त भी जोड़ी जानी चाहिए।

यहां यह जानकारी देना भी उचित रहेगा कि खेजड़ी को रेगिस्तान का कल्पवृक्ष कहा जाता है और इसे शमी वृक्ष भी कहते हैं। अंग्रेजी में शमी वृक्ष प्रोसोपिस सिनेरेरिया के नाम से जाना जाता है। रेगिस्तान में भी हरियाली बरकरार रखने में इस पेड़ की अहम भूमिका रही है। इस पेड़ पर लगने वाले फल सांगरी का उपयोग सब्जी बनाने में होता है। इसकी पत्तियों से बकरियों को भोजन मिलता है। इस कारण ग्रामीण क्षेत्र में खेजड़ी आय का प्रमुख जरिया भी है। इसका सामाजिक महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र जोधपुर में एक खेजड़ली गांव है और यहां भादवा सुदी दशम को एक मेला भी लगता है। यह मेला बिश्नोई समाज की पेड़ों के संरक्षण के लिए बलिदान की गाथा का साक्षी है। यह मेला उन बलिदानियों की याद में लगता है, जिन्होंने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी।

दरअसल, वर्ष 1787 में जोधपुर (मारवाड़) के महाराजा अभय सिंह ने मेहरानगढ़ में फूल महल का निर्माण शुरू कराया। इसके लिए लकड़ियों की आवश्यकता पड़ी। महाराजा के कारिन्दों ने खेजड़ली गांव में एक साथ बड़ी संख्या में पेड़ देखे तो काटने पहुंच गए। गांव की अमृता देवी बिश्नोई ने इसका विरोध किया। विरोध को अनसुना करने पर अमृता देवी पेड़ के चारों तरफ हाथों से घेरा बना कर खड़ी हो गई। राजा के कारिन्दों ने तलवार से उसे मार दिया। इसके बाद बारी-बारी से उसकी तीन पुत्रियों ने पेड़ को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया। पेड़ बचाने के लिए अमृता देवी के शहीद होने का समाचार आसपास के गांवों में फैला तो बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गए।

आसपास के 60 गांवों के 217 परिवारों के 294 पुरुष और 65 महिलाएं पेड़ों को पकड़ कर खड़े हो गए। राजा के कारिन्दों ने बारी-बारी से सभी को मौत के घाट उतार दिया। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की जानकारी महाराजा तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत सभी को वापस लौटने का आदेश दिया। इसके बाद महाराजा ने लिखित में आदेश जारी किया कि मारवाड़ में कभी खेजड़ी के पेड़ को नहीं काटा जाएगा। इस आदेश का आज तक पालन होता रहा है। …और बिश्नोई समाज इसका पालनहार है।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)