– रमेश सर्राफ धमोरा
भाजपा आलाकमान के बार-बार चेताने के बावजूद राजस्थान में नेता एक-दूसरे की टांग खिंचाई करने से बाज नहीं आ रहे । राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा राजस्थान में भाजपा संगठन को लेकर बहुत गंभीर नजर आ रहे हैं। उनको पता है कि मौजूदा परिस्थितियों में कांग्रेस को हरा पाना मुश्किल है। इसीलिए नड्डा स्वयं भी राजस्थान के दौरे कर रहें है और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं को भी लगातार राजस्थान भेज रहे हैं। ताकि राजस्थान में नेताओं के आपसी मतभेद समाप्त हो सकें। मगर नड्डा के प्रयास कामयाब नहीं हो पा रहे हैं।
राजस्थान के संगठन में सबसे अधिक बिखराव पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के कारण हो रहा है। वसुंधरा राजे पूरा प्रयास कर रही हैं कि उन्हें एक बार फिर नेता प्रोजेक्ट कर प्रदेश की कमान सौंप दी जाए। मगर भाजपा आलाकमान ऐसा करना नहीं चाहता है। भाजपा आलाकमान का मानना है कि प्रदेश में अब वसुंधरा राजे पहले की तरह लोकप्रिय नहीं हैं। इसीलिए पार्टी नए नेतृत्व को तैयार कर रही है। जो आने वाले समय में पार्टी की कमान संभाल सके।
हालांकि वसुंधरा राजे अपने पक्ष में तर्क देती हैं कि उनके नेतृत्व में पार्टी ने प्रदेश में दो बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। मगर उनके विरोधियों का कहना है कि मुख्यमंत्री रहते वसुंधरा को दोनों ही बार चुनाव में मात भी खानी पड़ी। यदि वह लोकप्रिय नेता होतीं तो उनके मुख्यमंत्री रहते पार्टी चुनाव क्यों हारतीं। पिछले विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे ही राजस्थान में पार्टी की एक छत्र नेता थीं। फिर भी पार्टी चुनाव हार गई। पिछले विधानसभा चुनाव में तो राजस्थान में भाजपा 163 सीटों से घटकर मात्र 73 सीटों पर आ गई थी।
भाजपा को सीधे-सीधे 90 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। वसुंधरा सरकार की नाकामियों को भुनाकर कांग्रेस ने घर बैठे सत्ता हथिया ली थी। मुख्यमंत्री के पिछले कार्यकाल में वसुंधरा राजे पर उनकी पार्टी के ही नेता चाटुकारों से घिरे रहने का आरोप लगाते हैं। वसुंधरा राजे की कार्यशैली से राष्ट्रीय स्वयं संघ के पदाधिकारी भी नाराज रहते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कई बार वसुंधरा सरकार को अपनी कार्यप्रणाली सुधारने की चेतावनी भी दी थी। मगर वसुंधरा राजे ने किसी की एक नहीं सुनी। इसके परिणाम स्वरूप ही राजस्थान में भाजपा को सत्ता गवांनी पड़ी थी।
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, पूर्व मंत्री यूनुस खान, कालीचरण सर्राफ, राजपाल सिंह शेखावत, प्रताप सिंह सिंघवी, भवानी सिंह राजावत, उनके विशेषाधिकारी धीरेन्द्र कमठान जैसे लोग सत्ता के केंद्र बन गए थे। उनकी सलाह पर ही वसुंधराफैसले लिया करती थीं। वसुंधरा राजे आज भी अपनी उसी पुरानी चौकड़ी से घिरी नजर आती हैं। भाजपा से निष्कासित पूर्व मंत्री रोहिताश्व शर्मा वसुंधरा के हर कार्यक्रम में शामिल होते हैं, जिसका पार्टी संगठन की तरफ से कड़ा विरोध दर्ज कराया जाता है। फिर भी वसुंधरा राजे अपनी चौकड़ी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।
वसुंधरा विरोधी खेमे के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल, सांसद किरोडी लाल मीणा, ओम माथुर, राजेंद्र राठौड़, दिया कुमारी जैसे नेता चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर ही अगला विधानसभा चुनाव लड़ा जाए। मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने पर पार्टी में किसी एक नेता की छाप नहीं होगी। इससे प्रदेश के सभी नेता एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे। इसके नतीजे भी सकारात्मक होने की आशा की जा सकती है।
राजस्थान के बीजेपी नेताओं में बढ़ती कलह को मिटाने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को दिल्ली में कोर कमेटी की बैठक बुलानी पड़ी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी इस बैठक में राजस्थान के नेताओं की जमकर क्लास ली। नड्डा और शाह ने पार्टी नेताओं को दो टूक कहा कि आपसी लड़ाई और टांग खिंचाई छोड़ कर गहलोत सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरकर लड़ाई लड़ो। 2023 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक साल का समय बचा है। हमें लगातार शिकायतें मिल रही हैं कि बड़े नेताओं द्वारा प्रदेश में अलग-अलग दौरे और यात्राएं की जा रही हैं। हमारे पास सभी की रिपोर्ट है। इसलिए फिर से समझाया जा रहा है कि पार्टी अनुशासन में रहकर एकजुटता से गहलोत सरकार के खिलाफ आंदोलन करे। प्रदेश में बीजेपी के आंदोलनों और कार्यक्रमों में सभी नेताओं की उपस्थिति अनिवार्य हो। अगर उपस्थित नहीं हो सकते तो पहले ही उचित कारण के साथ पार्टी को सूचना दी जाए। आगे से राजस्थान बीजेपी के सभी सीनियर नेता प्रदेश की गहलोत सरकार के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लें।
खबर है कि राजस्थान कोर कमेटी की बैठक में बीजेपी नेतृत्व ने राजस्थान के नेताओं को साफ संदेश दिया है कि व्यक्तिगत एजेंडे को नहीं, पार्टी के एजेंडे को लेकर सभी मिलकर आगे बढ़ें। राजस्थान में कोई भी राजनीतिक कार्यक्रम करना है तो पार्टी शीर्ष नेतृत्व को पहले सूचना देकर और मंजूरी लें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर ही राजस्थान में बीजेपी आगे बढ़ेगी। राजस्थान के नेता किसी भी कार्यक्रम को करने की मंजूरी संगठन मंत्री और प्रदेश प्रभारी महासचिव से लें।
कोर कमेटी की बैठक में संगठन महासचिव बीएल संतोष विशेष रूप से उपस्थित हुए थे। बताया जाता है कि अमित शाह के साथ ही बीएल संतोष ने भी जमकर नेताओं की खिंचाई की थी। बैठक में राजस्थान में कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे को स्वीकार करने का ज्ञापन देने विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी के घर गए बीजेपी नेताओं द्वारा वसुंधरा राजे को नहीं बुलाने के बाद बढ़े विवाद पर भी पार्टी नेतृत्व द्वारा चर्चा की गई। विधानसभा स्पीकर डॉ. सीपी जोशी को बीजेपी के 12 विधायकों के प्रतिनिधिमंडल ने नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के नेतृत्व में ज्ञापन सौंपा था। इसमें वसुंधरा राजे शामिल नहीं हुईं थीं। जबकि वह स्पीकर के आवास के ठीक सामने स्थित अपने बंगले पर मौजूद थीं। इस पर कटारिया ने स्वीकार किया कि उनको सूचना देने में उनसे चूक हुई है।
जेपी नड्डा हर बार राजस्थान बीजेपी नेताओं के साथ बैठक में गहलोत सरकार के खिलाफ बड़ा माहौल तैयार करने के निर्देश देते रहे हैं। इसके बावजूद पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया, राजेंद्र राठौड़, गुलाबचन्द कटारिया जैसे नेताओं को छोड़कर ज्यादातर बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री पार्टी के बड़े धरने-प्रदर्शनों और आंदोलनों में नहीं पहुंचते हैं। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने बांसवाड़ा-डूंगरपुर क्षेत्र में वागड़ जनजाति गौरव पदयात्रा निकाली। नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया उदयपुर संभाग के होने के बावजूद कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुईं थी। सीकर के लक्ष्मणगढ़ में हुए भाजपा के किसान आक्रोश सम्मेलन में वसुंधरा राजे, गुलाबचन्द कटारिया, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, राज्यमंत्री कैलाश चैधरी जैसे कई सीनियर नेता नहीं पहुंचे। चर्चा है कि इन नेताओं को आमंत्रित ही नहीं किया गया था।
राजस्थान में भाजपा नेताओं की ‘एकला चलो’ की नीति और देवदर्शन, धार्मिक यात्रा के नाम पर खुद का स्वागत, अभिनंदन कार्यक्रम करवाने और जगह-जगह जन सभाएं करने की शिकायत पार्टी आलाकमान तक पहुंची है। प्रदेश में पार्टी को सूचना दिए बिना इस तरह की यात्राएं करने पर भाजपा संगठन में नाराजगी है। पार्टी के पहले से निर्धारित कार्यक्रमों मे भी सीनियर नेता नहीं पहुंच रहे हैं। पार्टी नेताओं को एकजुट होने की बार-बार नसीहत देने के बावजूद गुटबाजी और अंदरुनी कलह बार-बार उजागर हो रही है। ऐसे में पार्टी की मौजूदा परिस्थितियों को सुधारने के लिए भाजपा आलाकमान को ही मैदान में उतरना होगा। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी मानगढ़ धाम यात्रा से कर दी है।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)