Saturday, November 23"खबर जो असर करे"

केजरीवाल नैरेटिव गढ़ने में उस्ताद

– राजीव खंडेलवाल

भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अलग शैली का आज पूरा विश्व कायल है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस शैली को अपनाने की कोशिश करते नजर आते हैं। वह तरह-तरह के नैरेटिव गढ़ते हैं। वह शुरू से प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा करते रहे। बात नालियों को साफ करने की ही क्यों न रही हो। लेकिन उसके दुष्परिणाम स्वरूप आप दिल्ली की लोकसभा की सातों सीटें हार गई। नगर निगम में भी सफलता नहीं मिली। राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार के अनुसार जब कोई प्रियनेता लोकप्रिय हो, तब उस पर हमला करने का असर उल्टा ही होगा। जैसा ‘‘चांद पर थूका हुआ वापस थूकने वाले मुंह पर ही पड़ता है।’’ आप पंजाब चुनाव में उतरी तब प्रधानमंत्री पर केजरीवाल पुनः आक्रामक हो गए।

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल का ध्येय वाक्य है ‘‘माल कैसा भी हो, हांक हमेशा ऊंची लगानी चाहिये’’। आगे उदाहरणों से आप इस बात को अच्छी तरह से समझ जाएंगे। ताजा उदाहरण आपके सामने है। दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के जेल जाने की आशंका मात्र से उनकी तुलना शहीदे-आजम भगत सिंह से करने पर उन्हें शर्म तक नहीं आई। वैसे भी वर्तमान निम्न स्तर की नैतिकताहीन राजनीति में बेशर्म शरारतपूर्ण व अंहकार से भरे बयान पर शर्म का प्रश्न आप क्यों उठाना चाहते है? उससे भी बड़ी बेशर्म मीडिया निकली जिसने ‘‘गधा मरे कुम्हार का और धोबन सती होय’’ के समान उनके कथनों को हाथों-हाथ लेकर बार-बार सुना कर हमारे कानों को पका दिया। किसी भी मीडिया हाउस की केजरीवाल से यह कहने की हिम्मत नहीं हुई कि आपके द्वारा मनीष सिसोदिया की शहीद भगत सिंह से किसी भी रूप में तुलना किसी भी स्थिति में सही नहीं ठहराई जा सकती है और न ही की जा सकती है। आप अपनी तुलना के शब्द बाण वापस लीजिए व उक्त महती त्रुटि के लिए क्षमा मांगे अन्यथा हम आपके उन कथनों बयानों को प्रसारित नहीं करेंगे।

शराब घोटाले में पूछताछ के बाद मनीष सिसोदिया ने सीबीआई पर ही बड़ा आरोप लगा दिया कि उन्हें मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया था। परन्तु नाम बताने से परहेज किया गया। फिर भी मीडिया उनके इस बिना सिर पैर के तथ्यहीन बयान को बार-बार ब्रेकिंग न्यूज के रूप में चलाता रहा। यानी केजरीवाल के लिए तो मीडिया का रोल ऐसा है कि ‘‘लड़े सिपाही और नाम सरदार का’’। इसके पूर्व भी ऑपरेशन लोटस द्वारा विधायकों की खरीद-फरोद कर सरकार गिराने के मनीष सिसोदिया के आरोप के संबंध में भी आज तक उस व्यक्ति का नाम नहीं बताया गया, जिसने पैसे ऑफर किये और न ही उस तथाकथित विधायक/व्यक्ति का कथन, शपथ पत्र या पहचान तक बताई गई, जिसे ऑफर किया गया हो। यह झूठी, मनगढ़ंत न्यूज भी कई दिनों तक चलती रही। हद तो तब हो गई जब सीबीआई द्वारा पूछताछ के बाद मनीष सिसोदिया के सिर पर लटक रही गिरफ्तारी की तलवार जो अंततः गिरी नहीं तथ्य के बावजूद केजरीवाल ने गुजरात के मेहसाणा जिले के उंझा में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मनीष सिसोदिया का गुजरात चुनाव में प्रचार करने से रोकने के लिए गिरफ्तार कर लिया है। उन्होंने जनता से ‘‘जेल के ताले टूटेंगे मनीष सिसोदिया छूटेंगे’’ के नारे भी लगवाए।

इस सफेद नहीं काले झूठ को मीडिया ने जिस तरह सुर्खियां देकर चलाया उससे साफ हुआ कि देश की राजनीति के नैरेटिव गढ़ने में केजरीवाल उस्ताद हैं। जिस तरह ‘‘सोती हुई लोमड़ी सपने में मुर्गियां ही गिनती रहती है’’, राजनेता तथा आम नागरिकों के लिए नए-नए अन्य अकल्पनीय नैरेटिव देने वाले केजरीवाल के ताजा नैरेटिव को भी देखिए। देश की करेंसी में भगवान श्री गणेश और लक्ष्मी माता की तस्वीर लगाने की मांग। केजरीवाल द्वारा बताये कारणों के प्रतिफल/परिणाम का तो भविष्य में ही पता लगेगा। परन्तु क्या केजरीवाल ने इस बात की पूर्ण संतुष्टि व सुरक्षा की गारंटी कर ली है कि इन तस्वीरों वाली करेंसी का दुरुपयोग भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, नशा, वेश्यागमन आदि समस्त बुराइयों में नहीं होगा? अन्यथा इन बुराइयों के लिए उपयोग की जाने वाली करेंसी अवैध मानी जाएगी? (केजरीवाल तो नए-नए अप्रचलित सुझावों को देने में माहिर हैं?) क्योंकि ये हमारी संस्कृति व आस्था के प्रतीक हैं।

यदि किसी प्रतीक की फोटो से ही सब कुछ हरा-भरा हो जाता तो केजरीवाल जी क्या यह बताने का कष्ट करेंगे की 75 वर्षों से देश की करेंसी पर अहिंसा के पुजारी व प्रतीक गांधी जी की फोटो होने के बावजूद क्या देश अहिंसक हो गया है? सत्ता एवं शेष विपक्ष की इस नए नैरेटिव पर सियासत कई नए नए सुझावों के साथ आ गई। इस पर भाजपा को यह तक कहना पड़ गया कि केजरीवाल गुजरात और हिमाचल प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव को दृष्टि में रखते हुए हिंदुत्व का कार्ड न खेलें। इसे ही तो नैरेटिव कहते हैं, जिसके मास्टर निसंदेह रूप से आज अरविंद केजरीवाल ही हैं। सही या गलत, यह अलहदा विषय है।

(लेखक, वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व सुधार न्यास अध्यक्ष हैं।)