– मुकुंद
पतित-पावन गंगा नदी तमाम सरकारी और गैरसरकारी प्रयासों के बावजूद मैली की मैली है। केंद्र सरकार की तमाम कोशिशों को गंगा की लहरों पर कचरा बहाने वाले नाकाम कर रहे हैं। गंगा हिमालय में गंगोत्री से निकल कर वाराणसी होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसके तट पर हजारों शहर और गांव बसे हैं। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) गंगा की दशा पर लगातार आंसू बहा रहा है। एनजीटी ने 13 जुलाई, 2017 को गंगा की सफाई पर दिए अपने फैसले में गंभीर टिप्पणी की थी।
एनजीटी ने कहा था कि सरकार ने गंगा को शुद्ध करने के लिए पिछले दो साल में 7,000 करोड़ रुपये खर्च किए। लेकिन गंगा नदी के जल की गुणवत्ता में रत्तीभर सुधार नहीं दिखा। एनजीटी ने फैसले में कहा था-‘आगे अब और इंतजार करने की कोई गुंजाइश नहीं बची है।’ मार्च 2017 तक 7304.64 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद केंद्र, राज्य सरकारें और उत्तर प्रदेश राज्य के स्थानीय प्राधिकरण गंगा नदी की गुणवत्ता में सुधार कर पाने में विफल रहे। ऐसी चिंता पहली बार नहीं जताई गई।
बावजूद इसके केंद्र सरकार गंगा की सफाई के लिए गंभीर और प्रतिबद्ध दिख रही है। तभी तो स्वच्छ गंगा मिशन के तहत उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में 1,145 करोड़ रुपये की 14 परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान की है। यह सीवेज प्रबंधन, औद्योगिक प्रदूषण उन्मूलन, जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण, रिवर फ्रंट विकास और विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार से संबंधित परियोजनाएं हैं। इनमें पांच मुख्य गंगा बेसिन राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से संबद्ध सीवेज प्रबंधन की आठ परियोजनाएं भी इसमें हैं।
एनजीटी इस मुद्दे पर लगातार चिंता जता रहा है। कुछ माह पहले ही कहा था कि दशकों तक निगरानी के बावजूद लगभग 50 प्रतिशत गैरशोधित (अनट्रीटेड) सीवेज और उद्योगों के गंदे पानी को अभी भी गंगा में छोड़ा जा रहा है। गैर अनुपालन और लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफलता के विरुद्ध राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन कड़े कदम उठाने की स्थिति में नहीं दिखता। एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस आदेश कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने राष्ट्रीय गंगा परिषद से 14 अक्टूबर (सुनवाई की अगली तिथि) से पहले कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है। पीठ ने कहा है कि गंगाजल की गुणवत्ता मानदंडों के अनुसार होनी चाहिए क्योंकि इसका उपयोग न केवल नहाने के लिए, बल्कि आचमन (प्रार्थना या अनुष्ठान से पहले पानी की घूंट लेना) के लिए भी होता है।
गंगा की सफाई के लिए देश में सत्याग्रह भी हो चुके हैं। इस मुद्दे पर 2011 में अनशन पर बैठे स्वामी निगमानंद ने अपने प्राण त्याग दिए थे। उन्होंने 115 दिन तक पानी भी नहीं पीया था। …और 2018 में 11 अक्टूबर को पर्यावरणविद् प्रो. जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद का लंबे अनशन के बाद 86 वर्ष की आयु में देहावसान हो गया था। उन्होंने 112 दिन तक अनशन किया था। जीडी अग्रवाल कानपुर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के फैकल्टी मेंबर थे। उन्होंने हरिद्वार स्थित मातृ सदन के संत ज्ञानांन्द से दीक्षा ली थी और गंगा को अविरल बनाने के लिए लगातार कोशिश करते रहे। उनकी मांग थी कि गंगा और इसकी सहायक नदियों के आसपास बन रहे हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के निर्माण को बंद किया कर गंगा संरक्षण प्रबंधन अधिनियम लागू किया जाए।
गंगा पर केंद्रित कई हिंदी फिल्में भी आ चुकी हैं। यह गीत तो ‘-गंगा तेरा पानी अमृत/ झर झर बहता जाए/ युग-युग से इस देश की धरती/ तुझसे जीवन पाए…।’ हममें से बहुतेरों ने गुनगुनाया भी है। शोमैन राजकपूर की फिल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’ (1960) डाकू का हृदय परिवर्तन करने में कामयाब हो जाती है। इसके बाद राजकपूर 1985 में फिर गंगा पर केंद्रित फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ देते हैं। वह इसके आमुख गीत- राम तेरी गंगा मैली हो गई/ पापियों के पाप धोते-धोते…के माध्यम से जीवनदायिनी-मोक्षदायिनी मां का दर्द बड़े पर्दे पर जीवंत करते हैं। ऐसे प्रयासों की भी इस वक्त दरकार है। क्योंकि सिनेमा का दर्शक के मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
गंगा सफाई अभियान 1986 में शुरू हुआ था। केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय की तरफ से दाखिल हलफनामे के मुताबिक वित्त वर्ष 2014-15 से 2021-22 के दौरान 11,993.71 करोड़ रुपये विभिन्न विभागों को दिए गए। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में निगरानी कमेटी भी है। बावजूद इसके देश में नदियों की दुर्दशा देखकर रोना आता है। जहां तक गंगा का सवाल है तो वह केवल नदी नहीं है। वह हमारी सनातन संस्कृति की बड़ी पहचान और हमारे जीवन का आधार है। ऐसे में गंगा की गंदगी हमारे लिए शर्मनाक है। इसे सरकारी प्रयास मात्र से साफ रखना संभव नहीं है। इसमें जनभागीदारी बहुत जरूरी है। इसके लिए हम सबको भगीरथ प्रयास करने होंगे। गंगा को पावन करने का संकल्प लेना होगा।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)