Friday, September 20"खबर जो असर करे"

बेमौसम की भारी बरसात: फसलों को हुए नुकसान की कैसे हो भरपाई

– डॉ. रमेश ठाकुर

खेती किसानी अब तुक्का हो गई है, सही सलामत फसल कट जाए तो समझो बड़ी गनीमत है। वरना, कुदरत का प्रकोप उन्हें नहीं छोड़ता। बीते तीन वर्षों से लगातार बेमौसम बारिश ने किसानों की कमर तोड़ रखी है। जब फसल पक कर खेतों में खड़ी होती है तभी बारिश हो जाती है और उसे बर्बाद कर देती है। किसान चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते। अन्नदाताओं को बेमौसम की बारिश ने एक बार फिर तबाह कर दिया। किसान खेतों में जाकर बर्बाद हुई फसलों को मायूसी भरी निगाहों से देख रहे हैं। तेज बौछारों ने हजारों-लाखों हेक्टेयर फसल चौपट कर दी। कई महीनों की मेहनत पर क्षण भर में पानी फिर गया। अपने खेतों में बेचारे असहाय खड़े होकर कुदरत के कहर से बर्बाद होती फसलें देखते रहे।

किसानों के लिए उनकी फसलें नवजात शिशु समान होती हैं जिसे वह छह महीने अपनी औलाद की तरह पालता-पोसता है। जब यही फसल नुमा बच्चे उनकी आंखों के सामने ओझल हो जाएं, तो उनके दिल पर क्या गुजरती होगी। सितंबर के अंत में अधिक वर्षा होना निश्चित रूप से खेती किसानी के लिए हानिकारक होता है। इस वक्त धान की फसल अधकच्ची खेतों में खड़ी होती है। कई जगहों पर तो पक चुकी होती है। मौसम वैज्ञानिकों ने फिलहाल मौजूदा बरसात का कारण पश्चिमी क्षेत्र के ऊपरी भाग में बहती चक्रवाती हवाओं को बताया है।

बहरहाल, समूचे देशभर में लगातार पिछले सप्ताह हुई तीन दिनी तेज बारिश ने फसलों को जमीन पर बिछा दिया है। जब तक उठेंगी, तब तक बालियों के दाने सड़ चुके होंगे। धान के अलावा इस वक्त गन्ना भी खेतों में पका खड़ा है, वह भी बरसात और ओलावृष्टि से बर्बाद हुआ है। तराई जैसे कई जिलों में खेतों के भीतर पानी लबालब भरा हुआ है। निचले इलाकों में तो बाढ़ जैसे हालात बने हुए है, वहां सब्जियां और कच्ची फसलें खेतों में ही सड़ने लगी हैं। मूली, मूंगफली, पालक, गोभी का तो नामोनिशान मिट गया। विशेषकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश जैसे इलाकों में हालात बद से बदतर हुए हैं।

दरअसल, ये ऐसे राज्य हैं जहां दूसरी फसलों के मुकाबले धान की फसल इस मौसम में बहुतायत रूप से होती है। पंजाब को जैसे धान का कटोरा कहते हैं, तो वहीं तराई क्षेत्र समूचे हिंदुस्तान में धान उगाने के लिए प्रसिद्ध है। दोनों जगह बरसात ने फसलों को तबाह कर दिया है। फिलहाल नुकसान की भरपाई के लिए प्रदेश सरकारों ने प्रभावित क्षेत्रों में सर्वेक्षण करना शुरू कर दिया है, जांच टीमों को भेजा जाने लगा है। शासनादेश पर प्रदेश स्तर पर जिला प्रशासन भी मुस्तैद हो गए हैं। फाइनल रिपोर्ट मिलने के बाद मुआवजे देने की प्रक्रिया आरंभ होगी। पर, सवाल उठता है कि क्या मुआवजे से किसानों के नुकसान की भरपाई हो पाएगी, शायद नहीं। सबको पता है कितना मुआवजा मिलेगा, शायद नाममात्र का?

अगर याद हो तो बीते वर्ष भी इसी मौसम में बेहिसाब बारिश ने किसानों को बेहाल किया था। पता नहीं खेती किसानी पर किसी की नजर ही लग है। क्योंकि कृषि क्षेत्र पर वैसे ही संकट के बादल छाए हुए हैं और बेमौसम बारिश ने संकट और गहरा दिया। ऐसी स्थितियों में किसानों को समझ नहीं आता वो करे तो क्या करें? कागजों में किसानों के लिए कल्याणकारी सरकारी सुविधाओं कोई कमी नहीं। फसलों को एमएसपी पर खरीदने की बातें कही जाती हैं, अन्य फसलों का उचित दाम देने का दम भरा जाता है। पर, धरातल पर सच्चाई शून्य होती हैं।

सच्चाई तो ये है किसान बेसहारा हुआ पड़ा है। सुख-सुविधाएं उनसे कोसों दूर हैं। सब्सिडी वाली खादों को भी उन्हें ब्लैक में खरीदना पड़ता है। यूरिया ऐसी जरूरी खाद है जिसके बिना फसलों को उगाने अब संभव नहीं। उसकी किल्लत से भी किसानों को बीते कई वर्षों से जूझना पड़ रहा है। बाद में रही सही कसर कुदरत निकाल लेता है। इस वक्त बरसात से जो फसलें बच गई हैं उनका दाना काला पड़ जाएगा, जिसे मंडी में सरकार द्वारा तय कीमत पर नहीं खरीदा जाएगा। मजबूरी में उसे किसान औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर होंगे।

गौर करें, तो फसल नुकसान का विकल्प मुआवजा कतई नहीं हो सकता। बर्बादी की भरपाई मुआवजे से नहीं की जा सकती है। इसके लिए बीमा योजना को ठीक से लागू करना होगा। वैसे, योजना अब भी लागू है, पर जिस ढंग से लागू होनी चाहिए, वैसी नहीं है। फसल बर्बाद होने पर किसानों को प्रति एकड़ उचित बीमा फसल के मुताबिक देने का प्रावधान बनाया जाए। केंद्र सरकार से लेकर सभी राज्य सरकारों को इस दिशा में कदम उठाने की दरकार है। इस वक्त किसानों की छह महीने की कमाई पानी में बही है। इस दरम्यान किसानों ने क्रेडिट कार्ड, बैंक लोन व उधारी लेकर फसलों को उगाने में लगाया होगा। सौ रुपए के आसपास डीजल का भाव है। बाकी यूरिया, डाया, पोटाश जैसी खाद की दोगुनी-तिगुनी कीमतों ने पहले से ही अन्नदाताओं को बेहाल किया हुआ है।

अनुमान लगाएं तो किसानों की लागत का मूल्य भी फसलों से नहीं लौट रहा। यही वजह है खेती नित घाटे का सौदा बनती जा रही है। इसी कारण किसानों का धीरे-धीरे किसानी से मोहभंग भी होता जा रहा है। इसलिए ऐसी नीति-नियम बनाए जाने की दरकार है जिससे किसान बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि व बिजली गिरने आदि घटनाओं से बर्बाद हुई फसलों के नुकसान से उबर सकें। इससे कृषि पर आए संकट से भी लड़ा जाएगा। क्योंकि इस सेक्टर से न सरकार मुंह फेर सकती है और न ही कोई और। कृषि सेक्टर संपूर्ण जीडीपी में करीब बीस-पच्चीस फीसदी भूमिका निभाता है। कोरोना संकट में डंवाडोल हुई अर्थव्यवस्था को कृषि सेक्टर ने ही उबारा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)