Friday, November 22"खबर जो असर करे"

मोदी को इनसे कोई खतरा नहीं

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

आज के दिन तीन बड़ी खबरें हैं। ये तीनों अलग-अलग दिखाई पड़ रही हैं लेकिन तीनों आपस में एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। पहली खबर यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष कौन बनेगा? दूसरी खबर यह कि देश के लगभग सभी प्रमुख विरोधी दल मिलकर भाजपा-विरोधी मोर्चा खड़ा कर रहे हैं। तीसरी खबर यह कि यदि अशोक गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष बनना पड़ गया तो राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन बनेगा?

यदि अशोक गहलोत का बस चलेगा तो सचिन पायलट को वे अपना स्थान क्यों लेने देंगे? जिस व्यक्ति ने उनकी कुर्सी हिलाने के लिए जमीन-आसमान एक कर दिए थे और जिसे मुख्यमंत्री ने निकम्मा तक कह दिया था, उसका मुख्यमंत्री बन जाना गहलोत की इकन्नी हो जाना है। इसका अर्थ यह भी हुआ कि गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने का कोई अर्थ नहीं है। जिसे प्रियंका और राहुल जो चाहें, सो बना दें तो फिर आप चाहे प्रधानमंत्री बन जाएं या कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं, आप रबर के ठप्पे से ज्यादा कुछ नहीं होंगे। यों भी गहलोत चाहते थे कि वे मुख्यमंत्री और पार्टी-अध्यक्ष, दोनों बने रहें लेकिन राहुल ने एक व्यक्ति, एक पद का बयान खुलेआम देकर गहलोत की मन्शा पर पानी फेर दिया। वैसे गहलोत की यह इच्छा गलत नहीं थी, क्योंकि जब एक व्यक्ति प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष दोनों बने रह सकता है तो वह मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष क्यों नहीं बना रह सकता है?

इसमें शक नहीं कि आज कांग्रेस की जो दुर्दशा है, उसके मूल में बापकमाई का असली मसला है। देश में अपने बाप या माँ के दम पर जो भी नेता बने हैं, उनका अहंकार रावण को भी मात करता है। कांग्रेस का भी असली रोग यही है। गहलोत इस रोग से मुक्त हैं। वे खुद-मुख्तार हैं। जमीनी नेता हैं। विनम्र और मिलनसार हैं। वे नए और पुराने सभी कांग्रेसियों को जोड़ने में सफल हो सकते हैं लेकिन असली सवाल यह है कि प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनी इस कांग्रेस में उनकी हैसियत क्या होगी? यदि उनकी हैसियत सिर्फ एक मुनीम की होगी, मालिक की नहीं तो वे रबर का ठप्पा बनकर रह जाएंगे। कांग्रेस की हालत आज जो है, उससे भी बदतर होती चली जाएगी।

जहां तक चौधरी देवीलाल के जन्मदिन पर देश के विपक्षी दलों के एक होने का प्रश्न है, उसके मार्ग में कई रोड़े हैं। पहला तो यह कि विपक्ष का एकछत्र नेता कौन बनेगा? क्या कांग्रेस किसी अन्य को अपना नेता मान लेगी? दूसरा, विपक्ष के पास मुद्दा क्या है? सिर्फ मोदी हटाओ। मोदी ने क्या आपातकाल जैसी कोई भयंकर भूल कर दी है या पिछली कांग्रेस सरकार की तरह वह भ्रष्टाचार में डूब गई है?

तीसरा, हमारे विपक्ष के पास नेता तो है ही नहीं, उसके पास कोई वैकल्पिक नीति भी नहीं है। कोई नक्शा या सपना भी नहीं है। अगले चुनाव के पहले यदि मोदी से कोई भयंकर भूल हो जाए तो और बात है, वरना 2024 में भी मोदी के लिए कोई गंभीर चुनौती आज तो दिखाई नहीं पड़ रही।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)