Friday, September 20"खबर जो असर करे"

श्री गणेश: परिपक्वता के पौराणिक प्रतीक

– डॉ. राघवेंद्र शर्मा

भगवान श्री गणेश उपासना के इन दिनों विशेष दिन चल रहे हैं। ऐसे में यह हम सभी को समझना होगा कि आखिर क्यों अत्याधुनिक जीवन शैली के बीच भी भगवान श्री गणेश बेहद प्रासंगिक बने हुए हैं। नि:संदेह श्री गणेश प्रथम पूज्य देव तो हैं ही, साथ में उनका आचार व्यवहार और शारीरिक आकार हमें अनेक शिक्षाएं प्रदान करता है। आचार और व्यवहार की बात करें तो श्री गणेश अति महत्वाकांक्षी देवों में शुमार नहीं होते। वे बेहद संतोषी हैं और माता पिता को ही अपना इष्ट मानते हैं।

हमने बचपन में वह कथा तो सुनी ही होगी जब श्री गणेश और श्री कार्तिकेय जी की बौद्धिक परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों को ब्रह्मांड की परिक्रमा करने को कहा। इस पर कार्तिकेय जी पिता की आज्ञा को शिरोधार्य कर लक्ष्य की ओर निकल पड़े। किंतु श्री गणेश अपने संतोषी स्वभाव के अनुसार अविचलित बने रहे और बेहद सामान्य अवस्था के साथ माता-पिता की परिक्रमा करके अपने स्थान पर विराजित हो गए। कार्तिकेय जी ने आकर अपनी विजयश्री का दावा किया तो भगवान भोलेनाथ ने गणेश जी का पक्ष पूछा। इस पर श्री गणेश बोले मुझे विजयश्री की चाहत से अधिक इस बात का ध्यान रहा कि अखिल ब्रह्मांड में मेरे लिए मेरे माता पिता से बड़ा और कुछ भी नहीं। अतः मैं ऐसा मानता हूं कि माता-पिता की परिक्रमा करके मैंने अखिल ब्रह्मांड की परिक्रमा से भी उत्तम कार्य कर लिया है। इस पर भगवान शिव ने श्री गणेश की बुद्धिमत्ता को मुक्त कंठ से सराहा और उन्हें विजयी घोषित किया।

श्री गणेश देवों को नित्य परेशान करने वाले यक्ष को दंड तो देते ही हैं, साथ में क्षमा याचना करने पर उसे मूषक स्वरूप में अपना सेवक भी बना लेते हैं। अब उनके आकार पर गौर करते हैं। श्री गणेश का उदर विशाल है, जो इंगित करता है कि केवल भोजन मात्र के लिए ही नहीं अपितु समाज से प्राप्त प्रतिकूलताओं और आलोचनाओं को हजम करने की क्षमता मनुष्य में होनी ही चाहिए। उनके कान भी व्यापक स्वरूप लिए हुए हैं, जो सभी का मत सुनने-समझने का संकेत देते हैं। नाक भी सूंड़ के रूप में लंबी है ही। यह हमें आसपास के वातावरण के प्रति अपनी घ्राणशक्ति को मजबूत बनाए रखने का प्रण प्रदान करती है। श्री गणेश जी की चाल धीमी और सधी हुई है। एक मनुष्य भी परिपक्व तभी कहलाता है जब वह अपना प्रत्येक कदम सोच विचार के बाद ही उठाता है। उनके एक हाथ में अंकुश भी है, जो अपने अंतर्मन को नियंत्रण में रखने की सीख देता है। एक अन्य हाथ में पाश भी है, जिससे निर्बल की रक्षा और दुष्ट को दंड देने का भाव उत्पन्न होता है।

उनके एक हाथ में लिया गया मोदक पौष्टिकता का प्रतीक है और इस परंपरा को प्रतिपादित करता है कि आपका भोजन यथासंभव स्वादिष्ट और पौष्टिक ही होना चाहिए। जैसा सर्वविदित है, उनका वाहन मूषक है जो सीमित संसाधनों में अधिकतम परिणाम देने के प्रतीक स्वरूप देखा जाता है। दो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि ऐश्वर्य वैभव से रहित सुखी और संतोषजनक जीवन की धारणा मजबूत करती हैं। जबकि पुत्र शुभ और लाभ यह आदर्श स्थापित करते दिखाई देते हैं कि हमारी संतति भले ही अधिकार संपन्न ना हो, लेकिन उसे सामाजिक परिवेश के लिए अनुकूल फलदायक ही होना चाहिए।

कह सकते हैं कि यूं तो श्री गणेश जी को लेकर अनेक कथाएं और किंवदंतियां प्रचलन में हैं। लेकिन हमने यहां चर्चा केवल उनके उन आचार, विचार, व्यवहार और आकार को लेकर की है, जो जन सामान्य को सहज ही दृष्टव्य हो जाते हैं। यदि इन उत्कृष्टताओं पर गौर करें तो श्री गणेश भगवान एक आदर्श देव हैं। उन्हें अपने सद्गुरु के रूप में ग्रह करना बड़े ही सौभाग्य का विषय माना जाता है। वे माता-पिता का सम्मान करने वाले उत्तम पुत्र हैं तो देव शक्तियों का संरक्षण करने वाले प्रथम पूज्य भी कहलाते हैं। उनके द्वारा स्थापित आदर्श हमें जीने की नित नई प्रेरणा प्रदान करते हैं। वहीं मनुष्य को मूल्य आधारित जीवन जीने की प्रेरणा उपलब्ध कराते हैं। यदि हम उनके द्वारा प्रदत्त गुणों का अंश मात्र भी अनुसरण कर पाए तो हमें सामाजिक, आर्थिक, दैविक, भौतिक अथवा दैहिक कठिनाइयां विचलित नहीं कर सकतीं।

(लेखक मध्य प्रदेश भाजपा के प्रदेश कार्यालय प्रमुख एवं कई विषयों के अध्येता हैं।)