Friday, September 20"खबर जो असर करे"

सोशल मीडिया का प्रभाव और दुष्प्रभाव के यक्ष प्रश्न

– डॉ. अशोक कुमार भार्गव

सोशल मीडिया 21वीं सदी की नई ऊर्जा से भरपूर नया चेहरा है। इसने विश्वव्यापी चिंतन के आयामों में परिवर्तन किया है। समाज में बड़े बदलाव की नींव रखी है। निसंदेह कोई भी परिवर्तन एकपक्षीय नहीं होता। वह हमेशा अपनी तमाम खूबियों और अच्छाइयों के बावजूद अनेक यक्ष प्रश्न भी साथ लेकर आता है। सोशल मीडिया इसका अपवाद नहीं है। समाज की उन्नति, प्रगति और विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाने के बावजूद सोशल मीडिया पूर्णत: निरापद नहीं है। यद्यपि आज सोशल मीडिया का उपयोग समाज के सभी आयु वर्ग के लोग कर रहे हैं। घर बैठे ही आभासी दुनिया में सभी समूह आपस में संवाद कर अपने विचारों को एक -दूसरे से साझा कर नई बौद्धिक दुनिया को सृजित कर रहे हैं।

प्रसिद्ध संचार वैज्ञानिक मैगीनसन ने कहा था कि संचार समानुभूति की प्रक्रिया है। यह समाज में रहने वाले सदस्यों को आपस में जोड़ती है। संचार की यह विकास यात्रा कबूतर से प्रारंभ होकर टेलीग्राफ, चिट्ठी, पोस्टकार्ड, एसटीडी, आईएसडी, प्रिंट मीडिया, रेडियो, टीवी आदि से होती हुई अपने विकास क्रम में आज फेसबुक, व्हाट्सऐप, टि्वटर, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम, मैसेंजर, यू ट्यूब, जीमेल इत्यादि की उन्नत और आधुनिक तकनीक तक पहुंच गई है। सोशल मीडिया के इस नए रूप के बिना सहज और सामान्य जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यह भी कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया परंपरागत मीडिया का ही आधुनिक संस्करण है। इसका स्वरूप अत्यंत विराट, बहुआयामी, सर्वशक्तिशाली, प्रभाव में अत्यंत चमत्कारी और चरित्र से जनतांत्रिक है ।

सामाजिक समरसता, सामाजिक सरोकार, सामाजिक एकजुटता, सामूहिक चेतना और जन आंदोलनों आदि के लिए सोशल मीडिया की उपादेयता वैश्विक स्तर पर मान्य है। इसीलिए मीडिया और समाज का रिश्ता अभिन्न है। अटूट है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में यह लोकतंत्र की आत्मा का रक्षा कवच है।

वस्तुतः सोशल मीडिया एक मनोरंजक शब्द युग्म है। जनसंचार का यह माध्यम अभिव्यक्ति के विस्तार का प्रभावी मंच है। यह न सिर्फ समाज के दर्पण होने का दावा मुखर करता है वरन प्रत्यक्षतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारों को बिना किसी भेदभाव के सार्वजनिक रूप से उजागर करने के अवसर भी उपलब्ध कराता है। इसका नेटवर्क इतना विराट है कि समग्र विश्व को इसने अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया है। संसार का कोई भी क्षेत्र सोशल मीडिया से न तो छूटा है न ही अछूता है। चाहे वह अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करने का प्रश्न हो या विश्वव्यापी कोरोना महामारी से जंग लड़ने की चुनौती।

कला संस्कृति, साहित्य और खेलकूद को नये आयाम देकर सुव्यवस्थित स्वरूप प्रदान करने की पहल हो या छोटे से छोटे स्थानों से भी उभरती हुई प्रतिभाओं, कलाकारों और खिलाड़ियों को प्रसिद्ध हस्तियां बनने के लिए सार्थक मंच उपलब्ध कराने का अवसर हो। सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की आजादी को भी नए आयाम दिए हैं। महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों और यौन शोषण की घटनाओं के विरुद्ध हैश टैग मी टू’ जैसे परिणाम मूलक अभियानों के माध्यम से बच्चों और महिलाओं के अधिकारों की पैरवी गंभीरता के साथ की है। यही नहीं कार्यपालिका और व्यवस्थापिका पर सकारात्मक दवाब निर्मित कर जनहितैषी योजनाओं के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया है। इस प्रकार सोशल मीडिया ने लोकतंत्र की आत्मा के सुरक्षा कवच के रूप में कार्य कर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ होने की संज्ञा को भी साकार किया है। पिछले दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका में एक अफ्रीकी अमेरिकी युवक की मौत पर प्रतिरोध के जनसैलाब को आंदोलित करने में सोशल मीडिया की केन्द्रीय भूमिका रही है। सोशल मीडिया के पक्ष में उत्कृष्ट और सराहनीय कार्यों की एक लंबी शृंखला है। बावजूद इसके सामाजिक सद्भाव के तानेबाने को नफरत और हिंसा की आग में झुलसाने वाले संदेशों, भाषणों, फेक न्यूज और हेट स्पीच की बाढ़ ने सोशल मीडिया की विश्वसनीयता, निष्पक्षता और प्रामाणिकता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

सोशल मीडिया के कतिपय माध्यम ऐसे भी हैं जो ‘ जिसकी देखें तवे परात उसकी गावें सारी रात ‘ की तर्ज पर कार्य कर राजनीतिक दलों के हितार्थ नैतिक मूल्यों और आदर्शों को तिरोहित कर अपने निजी स्वार्थों के लिए किसी की भी छवि विकृत कर उनका चरित्र हनन अथवा चरित्र हत्या कर रहे है। दुनिया के अनेक लोकतांत्रिक देशों की संप्रभुता के लिए ट्रोल आर्मी और टुकड़े टुकड़े गैंग के उत्पातों ने गंभीर खतरा पैदा किया है। आभासी दुनिया में किसी व्यक्ति के बारे में मनगढ़ंत झूठी भ्रामक सूचना फैलाकर अपराधी सिद्ध किया जा रहा है। फलस्वरुप अनियंत्रित हिंसात्मक भीड़ उस व्यक्ति की सरेआम हत्या कर देती है। ऐसी घटनाओं पर भारत का सुप्रीम कोर्ट चिंता जता चुका है।

अदालत ने सरकार से कहा है कि सोशल मीडिया पर ऐसी गैरकानूनी गैर जिम्मेदाराना हरकतों को नियंत्रित करने के लिए कठोर कानूनों का निर्माण किया जाए। अदालत ने राज्य सरकारों को निर्देशित किया है कि इस संबंध में वे जवाबदेह नोडल अधिकारी को नियुक्त करें। यह काफ हद तक सच है कि आभासी दुनिया का अत्यधिक प्रयोग नशे से भी ज्यादा घातक और दुष्प्रभावी है। यह मस्तिष्क को अवसाद, तनाव, बेचैनी, व्याकुलता और नकारात्मक सोच से भर देता है। यूजर्स को सोशल मीडिया एक तरह से ‘’प्रोग्राम्ड’’ कर उनमें हर चीज पर सामाजिक प्रतिक्रिया की इच्छा में वृद्धि कर कुंठा से भरता है। अर्थात उसकी पोस्ट को कितने लोगों ने देखा। कितनों ने कमेंट किया। कितनों ने लाइक किया। यह मानसिक दबाव मोबाइल को ही घर बना देता है। इसका स्मरण शक्ति, चिंतन शक्ति और आत्म विश्वास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

सामाजिक संबंधों में दरार, रिश्तो में धोखाधड़ी, मनमुटाव और दूरियां बढ़ाता है। सोशल मीडिया ने अश्लीलता, अभद्रता, पोर्नोग्राफी, विकृत नग्नता , उन्मुक्त और अमर्यादित अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित किया है। उपभोक्ताओं की सूचना का अनधिकृत उपयोग भी किया है। यह मीडिया साइबर अपराध के रूप में नए-नए छल प्रपंच (हैकिंग और फिशिंग, साइबर बुलिंग, फेक न्यूज, हेट स्पीच, निजी डेटा चोरी, गोपनीयता भंग करने और निजता के अधिकार का उल्लंघन) के लिए भी उत्तरदायी है।बावजूद इसके सोशल मीडिया की बेपनाह मकबूलियत को देखते हुए न तो इसे सिरे से खारिज किया जा सकता है और न ही पूर्णतः निरापद माना जा सकता है। वस्तुतः इसके उपयोग के लिए संतुलित मानक प्रचालन प्रक्रिया और आदर्श आचरण संहिता की आवश्यकता है।

(लेखक, आईएएस और पूर्व सचिव म.प्र.शासन है।)