Friday, November 22"खबर जो असर करे"

आजादी के अमृत और गुलामी के विष का फर्क तो समझें

– सियाराम पांडेय’शांत’

आजादी मन का विषय है। यह तन और धन का विषय है ही नहीं। हालांकि तन, मन और धन एक-दूसरे के पूरक हैं। एक-दूसरे से जुड़े हैं। इनमें से एक भी कम हो तो बात बिगड़ जाती है और बिगड़ी बात कभी बनती नहीं। उसी तरह जैसे बिगड़े हुए दूध से मक्खन नहीं बनता। मतभेद तो फिर भी दूर किए जा सकते हैं लेकिन मनभेद को दूर करना किसी के भी वश का नहीं। इस साल भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। तिरंगा यात्रा निकाल रहा है। देश के हर घर, हर संस्थान पर तिरंगा लहरा रहा है। कुछ राजनीतिक दल अगर राष्ट्रध्वज बांट रहे हैं तो कुछ इस पर टिप्पणी भी कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव कह रहे हैं कि तिरंगे की आड़ में भाजपा अपने पाप छिपा रही है। तिरंगा उसे अपने कार्यालयों पर लगाना चाहिए। पार्टी का झंडा उतारकर लगाना चाहिए। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और खंडित शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे कह रहे हैं कि तिरंगा फहराने से कोई राष्टभक्त नहीं हो जाता। यह कुछ हद तक सही भी हो सकता है लेकिन पूरा सच तो नहीं ही है। तिरंगा वही अपने हाथों में ले सकता है जिसमें राष्ट्रभक्ति की स्फुलिंग (चिंगारी) हो। तिरंगे का अपना प्रताप है। उसका अपना ताप है। अपनी आंच है। उसे हर कोई नहीं झेल सकता। वैसे ही जैसे रावण पंचवटी में लक्ष्मण रेखा की आंच को नहीं झेल सका था।

कांग्रेस वाले भी घर-घर तिरंगा अभियान पर कटाक्ष कर रहे हैं। संविधान में धर्म निरपेक्ष और समाजवाद जैसी कुटिल घुसपैठ करने और भारतीय संविधान को आधा सरिया कानून बनाने की कोशिश करने वाली जमात को आजादी का जश्न मनाने वाला भारतीय समाज सुहाए भी तो किस तरह? जम्मू-कश्मीर में हर दिन यह देश आतंकवादियों से जंग लड़ रहा है और इस देश के कुछ राजनीतिक दल सैन्य कार्रवाई पर ही सवाल उठा रहे हैं । आधी रात को देश की गुपचुप आजादी लेने वाले तो अब बचे नहीं लेकिन उनके अपने खानदानी भी आजादी का सही अर्थ आज तक नहीं समझ पाए। आज स्वतंत्रता को स्वच्छंदता मानने की भूल वे आज भी कर रहे हैं। सोच सकारात्मक हो, इरादे मजबूत हों, देश के लिए कुछ कर गुजरने की ललक हो तभी देश मजबूत होता है। आत्मनिर्भर होता है। आज अगर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया भी भारत का तेजस खरीदना चाहते हैं तो समझ जाना चाहिए कि देश की साख दुनिया में बढ़ रही है। जब हम कश्मीर में दुनिया का सबसे ऊंचा पुल बनाते हैं तो देश का गौरव बढ़ता है न कि राजनीतिक छिद्रान्वेषण से।

देश को आजाद हुए 75 साल हो गए लेकिन आज तक यह देश आजादी का मतलब नहीं समझ सका। सत्तारूढ़ दल को तो आजादी का कुछ पता होता भी है लेकिन सत्ता से पैदल दलों के मन की डाल पर तो आजादी की चिड़िया बैठती ही नहीं। चहचहाना तो दूर की बात है। आजकल ऐसा ही हो रहा है। हर साल स्वतंत्रता दिवस पर कुछ लोग अपने घरों पर पाकिस्तान का झंडा फहराते हैं। एक दिन पहले ही यूपी के एक जिले में एक व्यक्ति को अपने घर पर पाकिस्तान का झंडा फहराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।सहारनपुर में पकड़े गए आतंकी नदीम और राजस्थान में आईएसआई के लिए जासूसी करते पकड़े गए तीन देशद्रोहियों से तो तिरंगा लहराने की यह देश उम्मीद नहीं कर सकता। घृणा और द्वेष से भरा मिजाज बेहद खतरनाक होता है। देश में राष्टभक्ति के भाव भरने का काम अनवरत होना चाहिए था लेकिन विपक्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर तिरंगा न फैलाने के आरोप लगाता रहा और अब तो संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी नागपुर मुख्यालय पर राष्ट्रध्वज फहरा दिया है। भाजयुमो ने कांग्रेस को आजादी का इतिहास पढ़ाने का संकल्प लिया है, जिससे उसका यह मुगालता दूर हो जाए कि आजादी की जंग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का योगदान था या नहीं।

आजादी सबके लिए होती है। वह व्यक्तिगत कम, सार्वजनिक ज्यादा होती है। स्वतंत्रता की सही व्याख्या तो तत्कालीन जनरल मानिक शाह भी नही कर सके थे। उन्होंने जाने अनजाने इसे फ्री यानी मुफ्त से जोड़ दिया था। आजकल मुफ्त की रेवड़ी पर बहस चल रही है। राजनीतिक दल और सुप्रीम कोर्ट के स्तर पर अलग-अलग विचार आए हैं। हम देशवासियों को यह समझना होगा कि मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता। हर मुफ्त कही जाने वाली सुविधाओं की यह देश बड़ी कीमत अदा करता है। एक कवि ने तो यहां तक लिखा है कि व्यक्ति ही नहीं, प्रकृति को भी श्रम का मूल्य चुकाना पड़ता है। श्रम का मूल्य चुकाना होगा,आज नहीं तो क्या कल है सुमन तुम्हें मुरझाना होगा। देश आज अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है लेकिन हमें याद रखना होगा कि यह आजादी कितने संघर्षों, त्याग, तपस्या और बलिदानों की बिना पर मिली है। जो राष्ट्र और समाज अपने अतीत को भूल जाता है, वह अपनी जड़ों से कट जाता है। यह अच्छी बात है कि भारत ने एक साल पहले से 14 अगस्त को भारत विभाजन की त्रासदी दिवस के रूप में मनाना शुरू किया है। जो देश अपनी गुलामी को भूल जाता है, वह आजादी के मार्ग से भी भटक जाता है। एक तिरंगा ही तो है तो विविध धर्मों, संप्रदायों, जातियों, उपजातियों, भाषाओं-संस्कृतियों, पूजा-पद्धतियों में बंटे और अनेकता में एकता का संदेश देते भारत राष्ट्र को एक कर सकता है।

आजादी का यह मतलब हरगिज नहीं कि कुछ लोगों के फ्लैट और दीवारों से धन की ढेरियां निकलें और कुछ लोग मुफ्त सरकारी अनाज पाने लिए घंटों तपती धूप में खड़े रहें। इस प्रवृत्ति पर अंकुश में ही आजादी का वास्तविक मर्म छिपा है। अपराधी अपराधी है लेकिन कुछ लोग उनकी आजादी के सवाल उठा रहे हैं। देश के दुश्मन चीन और पाकिस्तान में ही नहीं रहते, हमारे अपने बीच भी रहते हैं। ऐसे लोगों को पहचानना होगा।उनके मुखौटे उतारने होंगे तभी हम आजादी के नजदीक पहुंच पाएंगे। चीन अपने जासूसी जहाज के साथ श्रीलंका के बंदरगाह पर पहुंच गया है। पाकिस्तान का पॉट भी वहां पहुंच गया है। चीन और पाकिस्तान कभी भी विश्वसनीय पड़ोसी नहीं रहे। ऐसे में सतर्कता बरतकर ही यह देश अपनी आजादी की रक्षा कर सकता है।

आजादी का मतलब है दायित्व। तिरंगे के तीन रंग केसरिया जहां हमें उच्च बलिदान, उत्तम स्वास्थ्य और श्रेष्ठ पराक्रम की प्रेरणा देता है। बीच का सफेद रंग देशवासियों के धवल चरित्र,उज्ज्वल बेदाग कार्य संस्कृति का परिचायक है। इसका हर रंग देश की प्रसन्नता,संपन्नता और प्रकृति संरक्षण का द्योतक है। काश,हम इस दिशा में सोच पाते। गुलामी और आजादी का फर्क समझ पाते। सबको साथ जोड़कर चल पाते।आजादी का त्योहार केवल प्रतीक नहीं है,यह अपने तरह की समवेत राष्ट्र साधना है।अपने साथ ही राष्ट को अभ्युदय के शिखर तक ले जाने की उद्दाम भावना है। देश सबको मौका देता है। हमें विचलित नहीं होना है। मार्गच्युत नहीं होना है। यह देश सबका है। इसलिए अधिकार नहीं, कर्तव्य को महत्व देना है। देश सर्वोपरि है,जब तक इस भाव भूमि के तहत काम नहीं होगा, हम आजादी के तत्व दर्शन से दूर ही रहेंगे। दूसरों को महत्व दिए बगैर खुद को समझना बेहद कठिन होता। अपनी पीठ के बाल देखना किसी के लिए भी सम्भव नहीं। इसलिए गुलामी और आजादी को तौलें जरूर, तब पता चलेगा कि हमारे लिए इन दोनों में कौन अधिक वजनी है? कौन अधिक कीमती है। आजादी के अमृत और गुलामी के विष का फर्क हम अब नहीं तो कब समझेंगे।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से सम्बद्ध हैं।)