Friday, November 22"खबर जो असर करे"

दुश्मन हो ‘साथी’ तो कैसे बचेंगे हाथी

– मुकुंद

दुनिया में हाथियों की घटती संख्या चिंता का ही नहीं, भविष्य के प्रकृतिजन्य संकट का आभास भी करा रही है। केरल के पेरियार में 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस के मुख्य आयोजन पर तमाम नई-पुरानी संरक्षण की योजनाओं पर चर्चा की गई। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे के अलावा केरल के वन और वन्यजीव मंत्री एके शशिंद्रन आदि ने पेरियार की धरा से हाथियों के संरक्षण के संकल्प को दोहराया। हाथियों की लगातार घटती संख्या से चिंतित दुनिया में 12 अगस्त, 2012 को आधिकारिक तौर पर विश्व हाथी दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। भारत में हाथियों की गणना आखिरी बार 2017 में हुई थी। तब भारत में हाथियों की कुल संख्या 30 हजार थी। जैसे-जैसे साल गुजरते गए, इनकी आबादी कम होती गई।

भारत में हाथियों की घटती संख्या की बड़ी वजह एशियाई बाजारों में हाथी दांत की चाहत का होना है। इस कारण लोग हाथियों का शिकार करते हैं। चंदन तस्कर वीरप्पन के बारे में कहा जाता है कि अकेले उसके गिरोह ने 2000 हाथियों का शिकार किया था। दुनिया में लगभग 50,000 से 60,000 एशियाई हाथी हैं। भारत में इन हाथियों की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है। यह सुखद है।

बावजूद इसके हमें यह ध्यान रखना होगा कि पिछले एक दशक में हाथियों की संख्या में 62 फीसदी तक की गिरावट आई है। यही हाल रहा तो कुछ देशों में अगले दशक के अंत तक हाथी विलुप्त हो सकते हैं। ऐसा अनुमान है कि अफ्रीका में हर दिन 100 हाथियों का शिकार होता है। एशियाई हाथियों को संकटग्रस्त प्रजातियों की आईयूसीएन की रेड लिस्ट में ‘विलुप्तप्राय’ प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। हालांकि ऐसा भारत को छोड़कर अधिकांश हाथी वाले देशों के संदर्भ में किया गया है। स्टेट ऑफ इंडियाज एन्वायरमेंट 2022 के फिगर्स के मुताबिक भारत में वर्ष 2019 से 2022 (जनवरी से मार्च) तक कम से कम 71 जंगली हाथियों का अवैध शिकार हुआ।

सभ्यता के समूचे इतिहास के क्रम में हाथी और इंसान एक साथ लंबा सफर तय कर चुके हैं। अफ्रीकी हाथी के प्राकृतिक वातावरण के विस्तार के साथ-साथ इनका आकार विशाल है। एशियाई हाथी 4,000 से अधिक वर्षों से मनुष्य के साथ है। एशिया में हाथी विभिन्न सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रीति-रिवाजों से जुड़ा पूजनीय पशु है। थाईलैंड में तो हाथी राष्ट्रीय प्रतीक है। यहां एक दिन का राष्ट्रीय अवकाश पूरी तरह से हाथियों के लिए समर्पित रहता है।

मनुष्य और हाथी के साथ-साथ होने के तमाम उदाहरणों के बावजूद हम अपने साथी को संरक्षित नहीं कर पा रहे। पूरे एशिया और अफ्रीका में उनके आवश्यक जैव विविधता वाले आवासों को खतरे में डाल रहे हैं। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार 2009-10 और 2020-21 के मध्य पूरे भारत में ट्रेनों की चपेट में आने से कुल 186 हाथियों की मौत हुई है। यह मौतें तकलीफदेह हैं। रेल दुर्घटनाओं से होने वाली हाथियों की मौत को रोकने के लिए रेल मंत्रालय और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के बीच स्थायी समन्वय समिति का गठन किया गया है। भारत में इस वन्यप्राणी के संरक्षण के लिए हाथी परियोजना पर भी भारी भरकम रकम खर्च हो रही है। मंत्रालय ने 2011-12 और 2020-21 के बीच इस परियोजना के तहत हाथी रेंज वाले राज्यों को 212.49 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।

हाथियों की घटती संख्या की दूसरी बड़ी वजह उसका मनुष्य से टकराव भी है। 26 अक्टूबर, 2015 को इस संबंध में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। इसमें कहा गया था कि हाथियों का आवासीय क्षेत्र लगातार घटने से मनुष्यों के लिए खतरा बढ़ गया है। इस टकराव में 100 से ज्यादा हाथियों और 400 से ज्यादा लोगों की औसतन जान जा रही है। टकराव रोकने के लिए सरकार हाथियों की संख्या रोकने के लिए गर्भनिरोधक के इस्तेमाल पर विचार कर रही है। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसे पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शुरू किया जा सकता है। केंद्र ने साफ किया था कि भारत में एशियाई हाथी असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नगालैंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में पाए जाते हैं। 2012 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में हाथियों की संख्या 29,391 है। संरक्षित हाथियों को मिलाकर यह संख्या 30,711 है। हाथियों पर गर्भनिरोधक के प्रयोग का नतीजा या हश्र क्या हुआ, यह सरकार की फाइलों से बाहर नहीं आ पाया है।

केंद्र ने 1992 में हाथी परियोजना के अंतर्गत हाथी संरक्षण क्षेत्र बनाने का निर्णय लिया था। देश के 16 राज्यों ने इस योजना के अंतर्गत विभिन्न हाथी संरक्षण क्षेत्रों का निर्माण किया है। ये राज्य हैं- आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, कर्नाटक, केरल, तमिल नाडु, महाराष्ट्र, मेघालय, नागालैंड, ओडिशा, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड। इससे पहले 2010 में हाथी को भारत का राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित किया गया। इन प्रयासों के अंतर्गत झारखंड सरकार हाथी को राजकीय पशु घोषित कर चुकी है।

अच्छी बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस संकट से वाकिफ हैं। उन्होंने विश्व हाथी दिवस पर इस वन्य जीव के संरक्षण में लगे लोगों की सराहना करते हुए हाथियों के संरक्षण के लिए भारत की प्रतिबद्धता दोहराई है। उन्होंने कहा है कि भारत में एशियाई हाथियों की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है और पिछले आठ सालों में हाथी अभयारण्यों की संख्या में इजाफा हुआ है। हाथियों के संरक्षण की सफलता को भारत में मानव और पशुओं के बीच टकराव को कम करने और पर्यावरणीय चेतना को आगे बढ़ाने के लिए स्थानीय समुदायों और उनके पारंपरिक ज्ञान के मिश्रण से किए जा रहे वृहद प्रयासों के नजरिए से अवश्य देखा जाना चाहिए।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)