बगदाद। इराक के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि लेबनान के आतंकवादी संगठन हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की इजरायल द्वारा हत्या किए जाने के बाद से लगभग सौ नवजात बच्चों का नाम ‘नसरल्लाह” रखा गया है. मंत्रालय ने इराक के विभिन्न क्षेत्रों में नसरल्लाह नाम वाले 100 बच्चों के जन्मों का रजिस्ट्रेशन किया. इराक के कई स्थानीय मीडिया आउटलेट ने बुधवार को यह जानकारी दी. एक न्यूज चैनल ने कहा कि यह कदम ‘प्रतिरोध के शहीद के सम्मान में’ उठाया गया है. ऐसा लगता है कि नसरल्लाह की मौत के बाद उसका नाम नई पीढ़ी के लोगों में प्रेरणा का जरिया बन रहा है, जिसे कहीं से भी अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता.
बीते 27 सितंबर को हिजबुल्लाह का गढ़ माने जाने वाले बेरूत के दहियेह में इजरायली सेना ने हमला नसरल्लाह की हत्या कर दी. अरब देशों में ‘नसरल्लाह’ नाम अपनी एक खास अहमियत रखता है. इसका मतलब होता है ‘खुदा की जीत’. इसके साथ ही यह नाम संघर्ष और प्रतिरोध की भावना को भी जाहिर करता है. नसरल्लाह की मौत के बाद तो यह नाम और भी तेजी से लोकप्रिया होता जा रहा है.
नसरल्लाह की मौत को हिजबुल्लाह के साथ ही ईरान, लेबनान, इराक, हमास, फिलिस्तीन और सीरिया के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था, लेकिन अब लगता है कि नसरल्लाह की लोकप्रियता इन देशों में और तेजी से बढ़ रही है. इतना ही नहीं, नसरल्लाह के लिए सम्मान में भी इजाफा हुआ है. यही वजह है कि लोग नसरल्लाह के नाम पर अपने बच्चों के नाम रख रहे हैं.
हिजबुल्लाह को ताकतवर बनाने में नसरल्ला का बड़ा रोल
1960 में जन्मे नसरल्लाह 1982 में हिजबुल्लाह में शामिल हुए, जिस साल लेबनान पर हमला करने वाले इजरायली बलों के खिलाफ लड़ने के लिए ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की मदद से इसका गठन किया गया था. ऐसा माना जाता है कि हिजबुल्लाह को पश्चिम एशिया में एक शक्तिशाली अर्धसैनिक एवं राजनीतिक ताकत में तब्दील करने में 64 वर्षीय हसन नसरल्ला की बड़ी भूमिका थी. नसरल्लाह ने 2006 में इजरायल के खिलाफ हिजबुल्लाह के युद्ध की अगुवाई की थी. उसी के नेतृत्व में समूह पड़ोसी देश सीरिया के क्रूर संघर्ष में शामिल हुआ था.
करीब 30 सालों तक हिजबुल्लाह की अगुवाई की
1992 में इजरायली मिसाइल हमले में हिजबुल्लाह के उस समय के चीफ की मौत के बाद नसरल्लाह ने समूह की कमान संभाली थी और तीन दशक तक संगठन का नेतृत्व किया. उसके नेतृत्व संभालने के पांच साल बाद अमेरिका ने हिजबुल्लाह को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था. नसरल्लाह को उसके समर्थक करिश्माई और निपुण रणनीतिकार मानते थे. उसने हिजबुल्लाह को इजरायल के कट्टर दुश्मन के रूप में बदल दिया और ईरान के शीर्ष धार्मिक नेताओं और हमास जैसे फिलिस्तीनी आतंकवादी समूहों के साथ गठबंधन को मजबूत किया.
नसरल्लाह को मिली थी सैय्यद की उपाधि
वह अपने लेबनानी शिया अनुयायियों का आदर्श तथा अरब एवं इस्लामी जगत के लाखों लोगों के बीच सम्मानित था. उसे सैय्यद की उपाधि दी गई थी जो एक सम्मानजनक उपाधि थी, जिसका मकसद शिया धर्मगुरु के वंश को दर्शाना था, जो इस्लाम के संस्थापक पैगम्बर मुहम्मद तक जाती है. नसरल्लाह की छवि लेबनान भर में समूह के गढ़ के पोस्टर-बैनर दिखाई देती है. विशेष रूप से दक्षिणी बेरूत में जहां हिजबुल्लाह का मुख्यालय है. उसकी तस्वीर न केवल लेबनान में, बल्कि सीरिया और इराक जैसे देशों में भी दुकानों में दिखाई देती है.
क्यों लेबनान में अहमियत रखता है नसरल्लाह?
ताकतवर होने के बावजूद नसरल्लाह अपने जीवन के अंतिम वर्षों में इजरायली हमले के डर से अधिकतर समय छिपकर रहा और सैटेलाइट मोबाइल फोन से तकरीर दी. नसरल्लाह के नेतृत्व में हिजबुल्लाह ने 2006 में 34 दिनों के युद्ध के दौरान इजरायल के साथ गतिरोध की स्थिति पैदा कर दी थी. उसे उस युद्ध का नेतृत्व करने का श्रेय दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप 18 साल के कब्जे के बाद 2000 में दक्षिणी लेबनान से इजरायली सैनिकों की वापसी हुई. नसरल्लाह का सबसे बड़ा बेटा हादी 1997 में इजरायली सेना के खिलाफ लड़ाई में मारा गया था. सीरिया में 2011 में जब लड़ाई शुरू हुई तो नसरल्ला ने सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद के बलों का साथ दिया.
बेरूत में हुआ था नसरल्लाह का जन्म
नसरल्लाह नौ भाई-बहनों में सबसे बड़ा था और उसका जन्म बेरूत के उत्तरी उपनगर शारशाबूक में एक गरीब परिवार में हुआ था. वह 16 साल की उम्र में इराक के पवित्र शिया शहर नजफ गया, जहां ईरान की 1979 की इस्लामी क्रांति के नेता दिवंगत अयातुल्ला खुमैनी उस समय निर्वासन में रहते थे और धर्म की शिक्षा देते थे. बाद में नसरल्लाह ने कौम शहर में पढ़ाई की थी. नसरल्लाह के परिवार में उसकी पत्नी फातिमा यासीन, तीन बेटे जवाद, मोहम्मद-महदी और मोहम्मद अली और एक बेटी जैनब हैं. साथ ही कई पोते-पोतियां भी हैं.