– हृदयनारायण दीक्षित
बांग्लादेश में हिंदू चुन-चुन कर मारे जा रहे हैं। कत्लेआम जारी है। हिंदू महिलाओं के साथ बर्बरता के वीभत्स तरीके अपनाए जा रहे हैं। महिलाओं पर अत्याचार के चित्र कठोर से कठोर व्यक्ति को विचलित करने वाले हैं। बांग्लादेशी हिंदुओं का कोई भी काम न तो सेना के खिलाफ है और न ही सेना की कठपुतली कथित सरकार के खिलाफ।अंतरराष्ट्रीय जिज्ञासा है कि इस रक्तपात की वजह क्या है? बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदू आबादी का प्रतिशत पहले ही घट रहा है। हिंदू आबादी का प्रतिशत घटने के कारण क्या हैं? दोनों देशों में हिंदू आबादी की संख्या अत्याचार, उत्पीड़न और हिंसा से घटी है। जोर जबरदस्ती का मतांतरण भी प्रमुख कारण है। मिशनरी लोगों से सम्बंधित साधारण घटनाएं भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनती हैं। धर्मांतरण करने वाली शक्तियां अपना गैरकानूनी काम करती रहती हैं। उनके गलत काम का विरोध भी सारी दुनिया में चर्चा का विषय बनता है। मगर हिंदूओं की सुनियोजित हत्या पर भी कोई हलचल नहीं होती।
हिंदू थोक के भाव मारे जाते हैं, मारे जा रहे हैं। आखिरकार थोक के भाव हिंदुओं की हत्या अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के लिए कोई बड़ी घटना क्यों नहीं है। हिंदुओं की हत्या का मूल कारण है क्या? आहत मन कुछ मौलिक प्रश्न उठते हैं। क्या हिंदू होना एक अभिशाप है? हिंदू सारी दुनिया का लोकमंगल चाहते हैं। हिंदुओं ने कभी किसी दूसरे देश पर हमला नहीं किया। केवल हिंदू होने के कारण ही वे मौत के घाट उतार दिए जाते हैं। अबोध बच्चियों के साथ भी बलात्कार हो रहे हैं।
बांग्लादेश की सेना नियंत्रित सरकार हिंदुओं की रक्षा में असफल हुई है। हिन्दू उत्पीड़न के सरोकार बड़े हैं। भारत विभाजन के पूर्व मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की थी। इस मांग को लेकर भी हिंदुओं का भयंकर रक्तपात हुआ था। ‘डायरेक्ट एक्शन डे‘ के नाम से व्यापक नरसंहार हुआ था। अविभाजित भारत की अंतिम जनगणना 1941 में हुई थी। तब हिंदू 84.44 प्रतिशत और मुस्लिम 13.38 प्रतिशत थे। मुसलमानों के इस प्रतिशत में आज के पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमान भी शामिल थे। 1947 में भारत विभाजन हुआ। स्वतंत्र भारत की प्रथम जनगणना (1951) में पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुस्लिम जनसंख्या नहीं रही। इसलिए हिंदू आबादी का अनुपात 87.24 प्रतिशत हो गया। यहां की मुस्लिम आबादी 10.43 प्रतिशत रह गई। 50 वर्ष बाद 2001 में भारत में जनगणना हुई। हिंदू आबादी घटी और 84.21 प्रतिशत रह गई। मुस्लिम आबादी का अनुपात अविभाजित भारत के 13.38 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गया। जनसंख्या के इसी अनुपात पर मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान मांगा था। पाया था। अब एक और पाकिस्तान की जनसंख्या हो गई है। हिंदू इस सवाल को उठाते हैं तो उन्हें सांप्रदायिक कहा जाता है। हिंदू आबादी ही सर्वपंथ समभाव और लोकतंत्र की गारंटी है।
बांग्लादेश की सीमाओं पर प्राण रक्षा के लिए व्यथित हिंदू अल्पसंख्यक हैं। वे इसीलिए मारे जा रहे हैं कि बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या कम है। सेकुलर दल हिंदू संहार पर मौन रहते हैं। बांग्लादेश से भारत के लिए अवैध प्रवेश होता रहा है। भारतीय संसद में अनेक बार बांग्लादेशी घुसपैठ स्वीकार की गई है। भारत के अधिकांश राजनैतिक दल हिंदू नाम के प्रयोग से डरते हैं। फिलिस्तीन को लेकर देश के सेकुलरपंथी दुख व्यक्त करते हैं। लेकिन हिंदू प्रजाति के खात्में को लेकर मौन हैं। वाम दल भी हिंदू नरसंहार पर मौन हैं। समूची हिंदू जाति पर संकट है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार नागरिकता संशोधन कानून लायी थी। कट्टरपंथियों ने इसका विरोध किया था। वे हिंसक हो गए थे। बांग्लादेश के हिंदू आखिरकार कहां शरण लें? क्या करें? पाकिस्तानी गैर मुसलमान और हिंदू भी उत्पीड़न के शिकार हैं। पाकिस्तान में भी हिंदू हिंसा का शिकार होते हैं। ईशनिंदा कानून में बड़ी सजा है। पाकिस्तानी सरकार हिंदुओं के विरुद्ध इसका इस्तेमाल करती है। संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार चार्टर भी बांग्लादेश के हिंदुओं की रक्षा नहीं कर पा रहा है। जाति, वंश, लिंग आधारित भेदभाव को निषिद्ध बताने वाले सेक्युलर हिंदू नरसंहार पर चुप हैं। प्रख्यात इतिहासकार डॉ. हर्ष नारायण ने लिखा है कि, ‘‘वास्तव में इस्लाम कहीं भी काफिरों के साथ सहअस्तित्व को न प्रोत्साहन देता है और न अनुमति। वह इसकी संभावना पर भी विचार नहीं करता।
हिंदू अपने चिंतन दर्शन में समूची धरती को परिवार मानते हैं लेकिन इस्लामी राजनीतिक चिंतन में इसकी कोई गुंजाइश नहीं। ‘संस्कृति के चार अध्याय‘ (पृष्ठ 302) में रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ ने लिखा है कि, ‘‘भारत में इस्लाम का आरंभिक इतिहास मारकाट और खुरेंजी, धर्म परिवर्तन, अभद्रता और अन्याय का इतिहास है। मुसलमान एक आदर्श मजहब और एक सुगठित समाज में जिस प्रकार आबद्ध थे, उससे उन्हें अपार नैतिक बल प्राप्त होता था। इसके विपरीत हिंदुत्व ढीला हो चुका था। हिंदुओं के धर्म, आदर्श और सिद्धांत के अनेक रूप थे। फिर भी भारत में इस्लाम की धाक उस आसानी से नहीं जमी।‘‘ इस्लामिक कट्टरता नई बात नहीं थी और न ही हिंदू सहिष्णुता। दिनकर के अनुसार अलबेरूनी ने लिखा है कि, ‘‘हिंदू जन्मजात अहिंसक थे। अनेक धर्मों का स्वागत करते थे। वे धार्मिक मामलों में बहुत ही सहिष्णु हो गए थे। महमूद से पहले जो मुसलमान भारत आए थे उन्हें यहां के राजाओं ने अच्छा प्रश्रय दिया था।‘‘ हिंदू अपने सहिष्णु स्वभाव के कारण बढ़-चढ़ कर नहीं लड़ते थे। दिनकर ने लिखा है कि, ‘‘लड़ाई और मारकाट के दृश्य तो हिंदुओं ने बहुत देखे थे। उन्हें सपने में भी यह ख्याल नहीं था कि दुनिया की एकाध जाति ऐसी भी हो सकती हैं जो मूर्तियों को तोड़ने और मंदिरों को ध्वस्त करने में ही सुख माने। मुस्लिम आक्रमण के साथ मंदिरों और मूर्तियों पर विपत्ति आई। हिंदुओं का हृदय फट गया।‘‘
मंदिरों और मूर्तियों पर हमले का लंबा इतिहास है। भारत में लाखों मंदिर ध्वस्त किए गए थे। लेकिन बात यहीं आकर समाप्त नहीं हुई। वे हिंदू समाज को समाप्त करने के मकसद से किसी भी तरह की लड़ाई पर आमादा रहे हैं। हिंदू और मुसलमान के बीच की दूरी पाट कर एक सहअस्तित्वपूर्ण समाज बनाने के अनेक उपाय किए गए। महात्मा गांधी ने हिंदू मुस्लिम एकता का व्रत लिया था। अंत में उन्होंने लिखा कि, ‘‘हिंदू मुस्लिम एकता के प्रश्न पर मैं हार गया।‘‘ दिनकर के अनुसार इस्लाम केवल नया मत नहीं था। यह हिंदुत्व का ठीक विरोधी मत था। हिंदुत्व की शिक्षा थी कि किसी भी धर्म का अनादर मत करो। मुसलमान मानते थे कि जो धर्म मूर्ति पूजा में विश्वास करता है उसे नस्तेनाबूत कर देना चाहिए।‘‘
प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार के अनुसार जीवन जीने का अधिकार है और अपने अंतःकरण के अनुसार मत, मजहब, रिलीजन को मानने का भी। बांग्लादेश के मामले में विचार या आस्था का कोई प्रश्न नहीं है। बच्चों और महिलाओं के अंग भंग करना, जान से मार देना सारी दुनिया को अनुचित और बर्बर लगा है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया निराशाजनक है। हिंदुओं के विरुद्ध जारी हिंसा का सम्बंध रक्तपात करने में विश्वास करने वाली मानसिकता से है। हिंदू मारे जा रहे हैं और हम कुछ नहीं कर सकते। ऐसी विवशता और लाचारी हृदयविदारक है।
(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)