– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
इस बार चुनाव के दौरान संविधान से संबंधित मुद्दे चर्चा में रहे। चुनाव प्रचार के दौरान सत्ता पक्ष पर संविधान बदलने का आरोप लगाया गया लेकिन यह मुद्दा कौआ कान ले गया कहावत को चरितार्थ करने वाला था। जिस सरकार ने दस वर्षों तक संविधान बदलने का कोई प्रयास नहीं किया, उस पर संविधान बदलने का आरोप निराधार था। भारत में संविधान बदलना संभव भी नहीं है। इतना अवश्य है कि सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाया। यह संविधान का अस्थाई उपबंध था। इसको हटाना संविधान सम्मत था। इसके आलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में उत्पीड़ित लोगों के लिए नागरिकता कानून में संशोधन किया। यह मानवीय निर्णय था। इससे बड़ी संख्या में हिंदू, सिख और जैन परिवारों को उत्पीड़न से मुक्ति मिली।
सरकार ने संविधान दिवस मनाने का निर्णय किया था। यह संविधान और संविधान निर्माताओं के प्रति सम्मान था। डॉ. आंबेडकर के जीवन से जुड़े पंच तीर्थों को भव्य रूप में प्रतिष्ठित किया गया। यह संविधान के शिल्पी के प्रति सम्मान था। संविधान में संशोधन हो सकते हैं। बयालीसवें संविधान संशोधन को तो लघु संविधान तक कहा गया। यह कांग्रेस सरकार के समय हुआ था लेकिन किसी सरकार पर यह आरोप लगाना हास्यास्पद है कि वह पांच वर्ष में संविधान बदल देगी। भारतीय संविधान इतना कमजोर भी नहीं है। भारत जैसे विशाल और विविधापूर्ण देश में नया संविधान बनाना आसान भी नहीं है। भारतीय संविधान सभा को भारत के संविधान बनाने में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन लगे थे। 26 नवम्बर 1949 को संविधान राष्ट्र को समर्पित किया था। गणतंत्र भारत में 26 जनवरी 1950 से संविधान अमल में आया। वर्तमान सरकार ने संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 को पहली बार संविधान दिवस में मनाया गया। उसके बाद से प्रत्येक वर्ष संविधान दिवस मनाया जा रहा है। इससे पहले इसे राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था।
संविधान के मूल ढांचे में बदलाव संभव भी नहीं है। 1973 में केशवानंद भारती मामले के तहत सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की मूल संरचना या मूल ढांचा का सिद्धांत दिया जिसके तहत भारतीय संसद संविधान में उसी हद तक संशोधन कर सकती है जहां तक संविधान के मूल ढांचे पर कोई प्रभाव ना पड़े। संविधान की सर्वोच्चता, कानून का शासन, संसदीय प्रणाली, न्यायिक समीक्षा, राष्ट्र की एकता और अखंडता, संघीय स्वरूप, विधायिका कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के बीच शक्ति का विभाजन, गणराज्य, लोकतंत्र, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव, न्यायपालिका की स्वतंत्रता आदि में बदलाव नहीं किया जा सकता। चुनाव में राजनीतिक पार्टियों की जय-पराजय स्वाभाविक है। सरकारें बनती हैं, बदलती हैं। लेकिन बड़ी बात यह कि भारत की संवैधानिक व्यवस्था मजबूत है। संविधान पर खतरा बताना, संविधान को बदलने की बात करना व्यर्थ है। यह सम्भव भी नहीं है। आम चुनाव ने एक बार फिर संवैधानिक व्यवस्था की मजबूती को प्रमाणित किया। एक बार फिर लोकतंत्र विजयी हुआ।
बेहद प्रतिकूल मौसम में चुनाव हुए। कष्ट सहते हुए लोगों ने मतदान किया। चुनाव आयोग ने यह मान लिया कि उसे एक माह पहले चुनाव कराना चाहिए था। भीषण गर्मी में चुनाव प्रचार करने वालों, मतदाताओं, चुनाव कराने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों, सुरक्षाकर्मियों सभी को यातना झेलनी पड़ी। चुनाव की अवधि भी इतनी अधिक नहीं होनी चाहिए। चुनाव आयोग ने सोलह मार्च को चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की थी। चुनाव प्रक्रिया लगभग ढाई माह तक चली। तापमान 50 डिग्री तक जा पहुंचा। भविष्य के लिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मई-जून में चुनाव न कराए जाएं। फिर भी जिन्होंने मतदान किया, उन्होंने लोकतन्त्र और संविधान के प्रति सम्मान व्यक्त किया है। मजबूत और आत्मनिर्भर भारत के लिए जनादेश दिया। यह बिना भेदभाव के कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को अपना समर्थन दिया। सरकार ने सबको लेकर चलने के महत्व को समझा। सबका साथ व सबका विकास पर अमल किया गया। इसके अनुरूप कार्य योजना बनाई गई। इनका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया गया है।
सबका साथ, सबका विकास’ वस्तुतः डॉ आंबेडकर के विचारों की अभिव्यक्ति है। इस पर हुए अमल ने एक नया आयाम जोड़ा है। अब ‘सबका साथ, सबका विकास’ के साथ सबका विश्वास और सबका प्रयास भी जुड़ गया है। डॉ आंबेडकर की प्रतिष्ठा में सर्वाधिक कार्य वर्तमान केंद्र सरकार ने किए हैं। इसमें उनके जीवन से संबंधित स्थलों का भव्य निर्माण भी शामिल है। इसके साथ ही दलित वर्ग के लोगों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ वंचित वर्ग को तक पहुंच रहा है।
प्रधानमंत्री ने डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवन से जुड़े पांच स्थानों को भव्य स्मारक का रूप प्रदान किया। इसमे लंदन स्थित आवास, उनके जन्मस्थान, दीक्षा स्थल इंदुमिल मुम्बई और नई दिल्ली का अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान शामिल हैं। यह अपने ढंग का अद्भुत संस्थान है, जिसमें एक ही छत के नीचे डॉ आंबेडकर के जीवन को आधुनिक तकनीक के माध्यम से देखा-समझा जा सकता है। शासन में भी, डॉ आंबेडकर की भावनाओं के अनुरूप भारत के निर्माण के लिए बिना भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने का कार्य किया। अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक शासन की योजनाओं का लाभ पहुंचाया गया। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की दिशा में प्रयास तेज हो चुके हैं।
सरकार का प्रत्येक निर्णय लोक कल्याण व राष्ट्रीय हित के अनुरूप है। प्रधानमंत्री मोदी ने दशकों से लंबित फैसलों को लागू किया। कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन गई। मगर भारत की अर्थव्यवस्था अब भी विकास की राह पर है। बीस लाख करोड़ रुपये के आत्मनिर्भर भारत पैकेज के सहारे भारत की विकास यात्रा को नई गति मिली है तथा देश आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ा है। आजादी के बाद सात दशकों में देश के केवल साढ़े तीन करोड़ ग्रामीण घरों में ही पानी के कनेक्शन थे। भारत ने डिजिटल लेनदेन में दुनिया को नई दिशा दिखाने का काम किया है। रिकॉर्ड सैटेलाइट प्रक्षेपित किये जा रहे हैं। रिकॉर्ड सड़कें बनाई जा हैं। दशकों से लंबित अनेक योजनाएं पूरी की गई हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मेरे जीवन का हर पल डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा दिए गए भारत के संविधान के महान मूल्यों के प्रति समर्पित है। यह हमारा संविधान ही है, जिससे एक गरीब और पिछड़े परिवार में पैदा हुए मुझ जैसे व्यक्ति को भी राष्ट्रसेवा का अवसर मिला है। ये हमारा संविधान ही है, जिसकी वजह से आज करोड़ों देशवासियों को उम्मीद, सामर्थ्य और गरिमापूर्ण जीवन मिल रहा है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)