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जनजातीय कार्य मंत्री ने किया पाँच दिवसीय “महुआ महोत्सव’’ का शुभारंभ

– महुआ महोत्सव जनजातीय कला-संस्कृति से परिचित कराने का प्रयासः मंत्री शाह

भोपाल (Bhopal)। जनजातीय जीवन (Tribal life.), देशज ज्ञान परम्परा और सौन्दर्यबोध एकाग्र मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय (Madhya Pradesh Tribal Museum.) की स्थापना के ग्यारहवें वर्षगांठ समारोह (Eleventh anniversary celebration.) का ’महुआ महोत्सव’ के रूप में शुभारंभ हुआ। जनजातीय कार्य मंत्री डॉ. कुंवर विजय शाह ने गुरुवार शाम को दीप प्रज्जवलित कर पांच दिवसीय महोत्सव का मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में शुभारंभ किया।

इस अवसर पर मंत्री शाह ने कहा कि ‘महुआ महोत्सव’ जनजातीय संस्कृति, कला और व्यंजनों से परिचित कराने का प्रयास है। जनजातियों के सामाजिक जीवन-शैली और अनुभव को वास्तविक बनाने के लिए बड़े बड़े आर्किटेक्ट के बजाय जनजातीय कलाकारों ने संग्रहालय स्वयं अपने हाथों से बनाया गया है। मंत्री शाह ने प्रदेश और देश के संस्कृति प्रेमियों और पर्यटकों को जनजातीय संग्रहालय आने के लिए आमन्त्रित किया।

मंत्री शाह ने संग्रहालय में नव-निर्मित जनजातीय आवास एवं लौह शिल्प का लोकार्पण भी किया। इस अवसर पर संचालक, संस्कृति संचालनालय एनपी नामदेव एवं निदेशक, जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी डॉ. धर्मेंद्र पारे, जनजातीय संग्रहालय संग्रहाध्यक्ष अशोक मिश्र एवं अन्य अधिकारी उपस्थित थे। इसके पहले महोत्सव में दोपहर दो बजे से शिल्प एवं व्यंजन मेला, बच्चों के लिए कठपुतली प्रदर्शन एवं जनजातीय नृत्यों की प्रस्तुतियाँ संयोजित की गई।

नव-निर्मित जीवन्त जनजातीय आवास
जनजातीय समुदाय की जीवन शैली को समझने और उसे करीब से देखने के लिए प्रदेश की प्रमुख जनजातियों गोण्ड, भील, बैगा, कोरकू, भारिया, सहरिया और कोल के सात आवास बनाए गए हैं। इन घरों में जनजातियों के परिवार रहेंगे। इन आवासों के माध्यम से दर्शक और पर्यटक को जनजातीय समुदायों के व्यंजन और उनकी कला को देखने का अवसर भी मिलेगा। इन आवास में अनाज रखने की कोठी, खाट, रोज उपयोग में आने वाली सामग्री और रसोई विशेष रूप से रखी गई है।

धरती और संगीत लौह शिल्प
मध्यप्रदेश की लगभग सभी जनजातियों में यह मान्यता है कि कभी इस सृष्टि में जल प्रलय हुआ था। जल से धरती को निकालने के लिए महादेव ने कौए से कहा कि मिट्टी खोज कर ले आओ। कौआ उड़ता हुआ धरती की खोज में भटकता रहा। उसे केंचुए की याद आई कि उसके पास तो मिट्टी अवश्य होगी। कौए ने केकड़े से मिट्टी लाने को कहा। केकड़े ने केंचुए से मिट्टी लेकर कौए को दी। कौए ने वह मिट्टी महादेव को सौंपी। महादेव ने उस मिट्टी का गोला बनाकर जल के ऊपर रख दिया, वह मिट्टी ही यह धरती है, फिर धरती पर जीवन आया। सबसे पहले मछली के रूप में, फिर पेड़ और पौधे। इन्हीं पेड़ और पौधों से सारा संगीत और नृत्य उपजा। इसी प्रकृति की गाथा को केन्द्र में रखकर लौह शिल्प का प्रदर्शन किया गया है।

महोत्सव के पहले दिन स्वाति उखले एवं साथी, उज्जैन और अजय गांगुलिया एवं साथी, उज्जैन द्वारा मालवा लोक संगीत की प्रस्तुति दी गई। दूसरी प्रस्तुति वीरांगना रानी दुर्गावती नृत्य-नाटिका रामचंद्र सिंह, भोपाल के निर्देशन में संयोजित की गई। प्रस्तुति का आलेख योगेश त्रिपाठी, रीवा द्वारा किया गया है। नृत्य-नाटिका में मातृभूमि की रक्षा करने के लिए महारानी दुर्गावती का बलिदान, साहस और पराक्रम की गाथा प्रदर्शित की गई।

शिल्प मेले में विभिन्न राज्यों का कौशल प्रदर्शित
शिल्प मेले में दोपहर 2 बजे से विभिन्न राज्यों के शिल्पों के प्रदर्शन एवं विक्रय किया जा रहा है। मेले में पांच राज्यों के पारंपरिक शिल्पियों को आमंत्रित किया गया है, जिसमें बांस, धातु, कपड़ा, ज्वैलरी, खराद एवं अन्य शिल्प शामिल हैं। वहीं व्यंजन मेले में भी मध्यप्रदेश के साथ ही गुजरात, उड़ीसा, मणिपुर के व्यंजनकारों द्वारा सुस्वादु व्यंजनों का प्रदर्शन सह-विक्रय किया जा रहा है।

अन्य राज्यों के नृत्यों की प्रस्तुतियाँ
महुआ महोत्सव अंतर्गत 7 से 10 जून, 2024 तक प्रतिदिन शाम 6.30 बजे से मध्यप्रदेश के लोक संगीत के साथ-साथ गुजरात, तेलंगाना, उड़ीसा एवं मणिपुर राज्यों की विभिन्न नृत्य प्रस्तुतियाँ संयोजित की जायेगी।