– डॉ. रमेश ठाकुर
आधुनिक चकाचौंध में टेक्नोलॉजी से लबरेज युग में देसी मटकों का क्रेज आज भी बरकरार है। दूषित पानी के इस्तेताल से बढ़ते मरीजों को जबसे चिकित्सकों ने मटके का पानी पीने की सलाह दी है, लोगों का रुझान अनायास घड़ों की ओर दौड़ा है। मिट्टी का ये आइटम न सिर्फ मन को भाता है, बल्कि चिलचिलाती गर्मी में सूखे गलों को भी तरबतर कर देता है। घड़े का पानी पीने में तरावट आती है। गले में अलौकिक ठंड़क पड़ती है, क्योंकि घड़े के पानी में मिट्टी की सोंधी-सोंधी सुगंध जो आती है। घड़े का पानी जमीन से तुरंत निकले ताजे पानी जैसा अहसास करवाता है। गर्मियों में जब घड़ों की डिमांड बढ़ती है तो कुम्हारों का व्यवसाय भी खूब फलने-फूलने लगता है। इस सीजन में उनकी आमदनी में अचानक से उछाल आता है।
इस समय मटकों की कीमत दो सौ से लेकर हजार रुपए तक पहुंची हुई है। मटको की बढ़ती डिमांड को देखकर अब ऑनलाइन सेल्स कंपनियां भी कूद पड़ी हैं। वो कुम्हारों को ऑर्डर देकर मटके बनवाते हैं, फिर उच्च दामों में ऑनलाइन बेचती हैं। मटके का पानी ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है, शरीर का बैड कोलेस्ट्रॉल कम करता है और ब्लड सर्कुलेशन नियंत्रित रखने में मदद करता है। मई-जून में गर्मी का सितम जब नॉनस्टॉप होता है तो लोगों को देसी मटके की याद अचानक से आनी शुरू हो जाती है। आधुनिक युग में शायद ही कोई घर ऐसा हो, जिनके यहां फ्रिज न हो। बावजूद इसके देसी मटको का क्रेज अपने जगह बरकरार है। एक प्रचलित कहावत है कि ‘सोने की खोज में, हीरे को भूल गए। कुछ ऐसा ही हुआ, जब जमाने ने बदलाव के लिए करवट ली, तो जनमानस ने देसी परंपराओं के साथ प्राचीन धरोहर कही जाने वाली वस्तुओं से भी तौबा कर लिया। पर, वक्त का पहिया फिर बदला है। इसलिए लोग पुराने जमाने की ओर फिर से मुड़ने लगे हैं। मई आधी से ज्यादा बीत चुकी है, पिछले सप्ताह से समूचे हिंदुस्तान में चिलचिलाती गर्मी ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है। फ्रिज का पानी आनंद नहीं दे रहा, इसलिए लोग मटको को पसंद कर रहे हैं। मटकों का पानी आज भी फ्रिज के मुकाबले ठंडा और स्वादिष्ट लगता है।
चंगे शरीर के लिए ताजा पानी लाभदायक होता है। इसलिए, देसी घड़े का पानी न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए बल्कि हजामा दुरुस्त के लिए भी गुणकारी होता है। चिकित्सीय सर्वेक्षण बताते हैं कि सर्दियों के मुकाबले गर्मियों में मटके का ठंडा पानी शरीर के लिए बहुत उपयोगी होता है। क्योंकि मटके की दीवारें से पानी धीरे-धीरे रिसता है और बर्तन की सतह से वाष्पित होता है। इसका भीतरी वातावरण वाष्पीकरण ऊष्मा ठंड़क का उतार्जन करता है जिससे अंदर जमा पानी चंद मिनटों में ठंडा हो जाता है। दरअसल, वाष्पीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पानी की तरलता से गैसीय अवस्था में बदलती है। जब पानी वाष्पित होता है, तो यह अपने आसपास की गर्मी को अवशोषित कर लेता है। बढ़ता तापमान मटके में मौजूद पानी को गर्मी से बचाता है। मटका मिट्टी से निर्मित होता है जिसमें सूक्ष्म छिद्र होते हैं, जो पानी को वाष्पित होने में मदद करते हैं। घड़े की मिट्टी पानी को इन्सुलेटर करती है जिसके इस्तेमाल से शरीर हाइड्रेट रहता है और पाचन प्रक्रिया हमेशा दुरुस्त रहती है।
बीते एक सप्ताह से गर्मी रिकॉर्ड तोड़ रही है। पहाड़ी क्षेत्रो में तापमान चालीस पार है, मैदानी क्षेत्रों में तो कहीं-कहीं पचास तक जा चुका है। ऐसे में पेट की ठंड़क मटकों पर निर्भर हो गई है। प्रत्येक चौथा व्यक्ति मटका खरीद रहा है। दरअसल, मटका एक प्राकृतिक कटोरा है जो मानव द्वारा निर्मित मात्र है जिसकी अंदरुनी दीवारें पानी को ठंडा बनाती हैं। मटके के धातु और मिट्टी के भीतर रखे गए पानी के संपर्क से पानी की ठंडक सूखने की प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है जिसमें पानी लंबे वक्त तक ठंडा रहता है। शायद ये भी एक कुदरती प्रक्रिया ही है कि जितनी गर्मी बढ़ेगी, मटके का पानी भी उतना ही ठंडा होगा। फ्रिज और आरओ पानी की आदत इंसान को कई बीमारियों से घेर रही है। जबकि, घड़े का पानी कई बीमारियों से लड़ने की ताकत
रखता है। तभी तो घरों के बुजुर्ग अभी भी मिट्टी के बर्तनों का पानी पीने को कहते हैं। हालांकि, आधुनिक जमाने में बुजुर्गों के अनुभव कोई लेता कहां? मटके का पानी सिर्फ ठंडा-ठंडा, कूल-कूल ही नहीं करता, बल्कि कई बीमारियों से बचाव भी करता है।
मटके की सबसे बड़ी खासियत को भी हमें जानना चाहिए। मटका आरओ द्वारा प्यूरीफायर किए पानी से मर चुके मिनरल्स को भी दोबारा जिंदा कर देता है। अगर आरओ से पानी निकालकर घड़े में सिर्फ पंद्रह मिनट तक रखा जाए, तो उसके मरे हुए मिनरल्स वापस पनप जाते हैं। क्योंकि मिट्टी के घड़े में कैल्शियम की मात्रा बहुतायत रूप में रहती है। शहरों में अक्सर लोग अब यही करने लगे हैं, पानी को पहले प्यूरीफायर कर लेते हैं, फिर उसे घडे में उलट देते हैं जिससे पानी दोबारा से पहले से हो जाता है। चिकित्सक शुरू से कहते आए हैं कि आरओ के पानी में मिनरल्स बिल्कुल भी नहीं बचते, मर जाते हैं। आरओ द्वारा प्यूरीफायर पानी से सारे मिनरल्स निकल जाते है, जिस कारण उसका टीडीएस लेवल बहुत कम हो जाता है जिसके सेवन से लोगों की पाचन प्रक्रिया दिनोंदिन प्रभावित हो रही है। तमाम अन्य बीमारियां भी लग रही हैं।
चिकित्सकों की माने तो आरओ पानी में बैक्टीरियल इन्फेक्शन और फंगल इन्फेक्शन की संभावना सबसे ज्यादा रहती हैं। इसके अलावा पेट से संबंधित अधिकांश बीमारी भी दूषित पानी के इस्तेमाल से पनपती हैं। आरओ पानी को पीने की कोई भी सलाह नहीं देता, विशेषकर बच्चों को? उनके लिए सबसे घातक होता है ये पानी? आरओ पानी का मतलब है टोटल डिसोल्वड सालिबिलिटी? मतलब उस पानी में साधारण पानी की अपेक्षाकृत कम खनिज लवणों का होना, जिसमें हानिकारक तत्व बेहताशा घुले होते हैं। पानी को दो-तीन मर्तबा छानने या फिल्टर करने का मतलब होता है पानी की आत्मा को अंदर खींचकर शरीर से अलग कर देना। यही कारण है कि चिकित्सक मरीजों को मटके का ही पानी पीने की सलाह देते हैं। लोग भी अब समझ गए हैं, इसलिए गर्मी शुरू होते ही मटकों की खरीदारी करनी आरंभ कर देते हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)