Friday, November 22"खबर जो असर करे"

सड़कों पर कैसे थमे अराजकता

– आर.के. सिन्हा

यकीन मानिए कि किसी देश और वहां के लोगों को जानने के लिए आपको कोई बहुत घुमक्कड़ी करने की जरूरत नहीं है। आप जिस देश के समाज को जानना चाहते हैं, उसके एयरपोर्ट से उतरने के बाद वहां की सड़कों में चल रहे यातायात को देख भर लें। आपको सब कुछ पता चल जाएगा कि वहां का समाज कितना अनुशासन प्रिय है या अराजकता में कितना यकीन करता है। राजधानी दिल्ली की सड़कों से गुजरते हुए यहां पहली बार आने वाले शख्स को इतना तो पता ही चल जाता होगा कि इधर की सड़कों पर यातायात नियमों को मानना भी लोग अपनी शान के खिलाफ समझते हैं।

बेशक, राजधानी दिल्ली की सड़कों का नजारा देखकर डर लगता है। दो पहिया चलाने वाले न जाने कितने ड्राइवर दिखाई देते हैं, जिन्होंने हेलमेट नहीं पहना होता है। बात यहीं खत्म नहीं होती। वे बेखौफ ड्राइवर भी भरपूर मात्रा में मिल जाते हैं जो अपनी मोटरसाइकिल या स्कूटी चलाते हुए लगातार मोबाइल पर बात भी कर रहे होते हैं या म्यूजिक सुन रहे होते हैं । यह बहुत साफ है कि ड्राइविंग करते समय मोबाइल फोन का उपयोग करने से दुर्घटना का खतरा भयंकर रूप से बढ़ जाता है। जिस इंसान को अपनी जान की ही चिंता नहीं होगी, वह यातायात के नियमों को क्यों मानेगा।
दिल्ली पुलिस की साल 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार, राजधानी में सड़क दुर्घटनाओं में पैदल चलने वालों के बाद दोपहिया वाहन चालक दूसरे सबसे अधिक पीड़ित हैं। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 2022 में 539 दोपहिया वाहन चालकों की मृत्यु हुई, जो 2021 में 459 थी। ज्यादातर मामलों में, यह दोपहिया वाहन भारी वाहनों की चपेट में आए, उसके बाद चार पहिया वाहन आए। दिल्ली में पंजीकृत दोपहिया वाहनों की भारी संख्या को देखते हुए, इन सवारों की भलाई के लिए एक सुरक्षित डिजाइन प्रणाली सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण हो जाता है।

दोपहिया वाहन चालकों की सुरक्षा को प्रभावित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है हेलमेट का उपयोग न करना। हालांकि हेलमेट पहनना दिल्ली में वाहन चालकों और पीछे बैठने वालों के लिए भी अनिवार्य है। दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, बिना हेलमेट के गाड़ी चलाने के मामले हर साल बढ़ ही रहे हैं। इस साल 15 अप्रैल तक, पुलिस ने बिना सीट बेल्ट के गाड़ी चलाने या बिना हेलमेट के दोपहिया वाहन चलाने पर 20,822 चालकों पर जुर्माना किया है। 2023 में, हेलमेट नहीं पहनने पर 572,866 लोगों पर जुर्माना किया गया, जो पिछले वर्ष 212,440 की तुलना में 250 फीसद अधिक है।

याद रख लें कि हेलमेट पहनने का तरीका भी महत्वपूर्ण। अध्ययनों से पता चला है कि दिल्ली में हेलमेट पहनने वालों में से बहुत कम लोग इसे ठीक से बांधते हैं, जिससे दुर्घटना की स्थिति में सिर की गंभीर चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है। कहने की जरूरत नहीं है कि ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत है। वे ऐसे लापरवाह लोग हैं जो अपनी जान के साथ-साथ दूसरों की जान से भी खिलवाड़ करते हैं I उन पुलिस वालों पर भी कठोर एक्शन लेना ही होगा जो यातायात नियमों को तोड़ने वालों से घूस लेते हैं और छोड़ देते हैं । अब कोई यह न कहे कि पुलिस महकमे में घूसखोर नहीं बैठे हैं। वहां घूसखोरों की कोई कमी नहीं है। क्या यह देश भूल गया है कि सड़क हादसों में ही केन्द्रीय मंत्री राजेश पायलट, दिल्ली के मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा, केन्द्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे और मशहूर एक्टर जसपाल भट्टी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था? इन हादसों में कितने लोग जीवन भर के लिए विकलांग हो जाते हैं, इसका तो कहीं से कभी कोई आंकड़ा मिल ही नहीं सकता।

बहरहाल, लोगों को हेलमेट और सीट बेल्ट के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए लगातार अभियान चलाए जाने चाहिए। गुणवत्तापूर्ण हेलमेट और सीट बेल्ट की उपलब्धता सुनिश्चित करना भी जरूरी है। लोगों को मानक हेलमेट और सीट बेल्ट खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही सड़कों की खराब स्थिति, अपर्याप्त साइनेज और पैदल चलने वालों के लिए सुविधाओं की भारी कमी जैसे मुद्दों को दूर करने की आवश्यकता है। देखिए दिल्ली का तो यहां उदाहरण दे दिया गया। यातायात नियमों की तो सारे देश में अनदेखी हो रही है। यह अफसोसजनक स्थिति है।

एक बात और कहने का मन कर रहा है I जब बात सड़कों के चौड़ीकरण, सौदर्यकरण और इनके विस्तार पर होती है तो पैदलयात्री के बारे में कोई नहीं सोचता। उसकी एक वजह यह भी है कि वह समाज का सबसे बेबस व्यक्ति है। वह गरीब है। उसकी आर्थिक-सामाजिक हैसियत कमजोर है। तो क्या इसलिए वो सड़क पर तड़प-तड़प कर मरने के लिए अभिशप्त है। क्या अमीरजादे सड़कों पर पैदलयात्रियों को कुचलते रहेंगे? पैदलयात्रियों का सड़कों पर कुचला जाना और यातायात के नियमों अनदेखी का सीधा संबंध है। कारों और दूसरे वाहनों की बिक्री को तो रोका नहीं जा सकता । लेकिन, सरकार कड़े उपाय करके पैदलयात्रिओं को राहत तो दे ही सकती है। फुटपाथों को फिर से कायम तो किया ही जा सकता है । सड़कों के किनारे जहां स्कूल, अस्पताल, मंदिर, मस्जिद आदि सार्वजनिक स्थान हों वहां तो अंडरपास या फुट ओवरब्रिज बनाए ही जा सकते हैं । कम से कम स्कूल की छुट्टी के समय एक ट्रैफिक का सिपाही तो तैनात हो ही सकता है । आज तो फुटपाथों की स्थिति यह हो गई है कि वहां पुलिस हफ्ते वसूल कर बाजार लगवा रही है I यह हर फुटपाथ पर आप देख सकते हैं I

जरा सोचिए कि सड़क हादसों में मरने वालों में 50 फीसद 14-35 साल की उम्र के होते हैं। इनमें से बहुत सारे अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य होते हैं। यूं तो सड़क हादसों के तमाम कारण गिनाए जा सकते हैं। पर 66 फीसद हादसों का कारण तेज रफ्तार से और लापरवाही पूर्वक वाहन चलाना है। तो इस पर हर हाल में नियत्रंण करना होगा। इसके लिए तेज वाहन चलाने वालों पर कठोर दंड लगाया जाना बिल्कुल सही माना जा सकता है। इस सवाल पर कोई बहस हो ही नहीं सकती। सड़क हादसों को रोकने के लिए नागरिकों और पुलिस को समान रूप से अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा। सबका सहयोग नहीं रहेगा तो मौजूदा हालात में बदलाव संभव नहीं है।

(लेखक. वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)