Friday, November 22"खबर जो असर करे"

चार सौ पार के नारे के इर्द-गिर्द सिमटा चुनावी विमर्श

– विकास सक्सेना

देश में लोकतंत्र का महापर्व आम चुनाव चल रहा है। मतदाताओं को लुभा कर उन्हें अपने पाले में लाने के लिए सभी राजनैतिक दल पूरी ताकत के साथ जुटे हुए हैं। लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव पिछले चुनावों के मुकाबले कई मायनों में अलग है। देश की सामरिक, आर्थिक, औद्योगिक और सांस्कृतिक प्रगति के साथ कूटनीतिक सफलता से उत्साहित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब से अबकी बार 400 पार का नारा दिया है, पूरा चुनावी विमर्श इसी के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गया है। केंद्र की सत्ताधारी भाजपा और उसके समर्थक दलों के नेता ये साबित करने का प्रयास कर रहे हैं कि इस बार उन्हें 400 से ज्यादा सीटों पर विजय मिलने जा रही है और विपक्षी पूरी ताकत से दावा कर रहे हैं 400 पार का नारा भाजपा का ख्याली पुलाव भर है जो कभी पूरा नहीं होगा। इस सबके बीच लोकसभा चुनाव 2024 के बाद देश की सत्ता कौन संभालेगा इसको लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष में किसी प्रकार का मतभेद दिखाई नहीं दे रहा है।

आमतौर पर चुनावों के दौरान मतदाताओं के रुख को भांप कर संभावित नतीजों का अनुमान लगाने वाले विश्लेषकों के लिए सबसे आकर्षित करने वाला तथ्य सत्ता विरोधी रुझान होता है लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 के बाद अब 2024 में भी यह तथ्य अप्रासंगिक-सा दिखाई दे रहा है। इसके अलावा चुनावों में राजनेताओं का भ्रष्टाचार हमेशा एक बड़ा मुद्दा होता था। प्रख्यात समाजसेवी अण्णा हजारे, बाबा रामदेव और दूसरे गैर राजनैतिक संगठनों के आंदोलनों की वजह से लोकसभा चुनाव 2014 का पूरा विमर्श कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार के दौरान हुए घोटालों के चारों ओर सिमट कर रह गया गया था। लाखों करोड़ रुपये के कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला और कोयला घोटाला समेत अनेक घोटालों की वजह से आम जनता में सत्ताधारी कांग्रेस के खिलाफ खासी नाराजगी थी। इस चुनाव में देश की जनता ने भ्रष्टाचार और सत्ताधारी दल के अहंकार के विरुद्ध जनादेश देकर तीन दशक बाद देश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाई।

इसके पांच साल बाद जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुए तो सत्ताधारी दल के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई गंभीर मामला उठाने में विपक्ष पूरी तरह नाकाम रहा। हालांकि कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल लड़ाकू विमान की खरीद में घोटाले की बात जोर-शोर से उठाने का प्रयास किया था। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को घेरने के लिए ‘‘चौकीदार चोर है’’ का नारा लगाकर रक्षा खरीद में घोटाले का विमर्श खड़ा करने का असफल प्रयास किया लेकिन चुनावी नतीजे भाजपा के पक्ष में आए उसकी सीटें 282 ये बढ़ कर 303 हो गईं और राजग 350 पार हो गया। इसके बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने अपना दर्द साझा करते हुए यहां तक कह दिया कि ‘‘चौकीदार चोर है’’ के नारे पर उन्हें अपनी ही पार्टी के नेताओं का पर्याप्त समर्थन प्राप्त नहीं हुआ। हालांकि इस तरह के आरोप लगाने से पहले राहुल गांधी को तमाम रक्षा विशेषज्ञों, आर्थिक और राजनैतिक विश्लेषकों की प्रतिक्रियाओं के साथ अपनी ही पार्टी के नेताओं के मन को भी टटोलना चाहिए था जो राफेल खरीद में घोटाले के आधारहीन और अतार्किक आरोपों से सहमत नहीं थे।

इस बार के चुनाव में भी भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है लेकिन निशाने पर सत्ताधारी भाजपा और उसके सहयोगी दलों के नेता नहीं बल्कि विपक्षी नेता हैं। लोकसभा का चुनाव राष्ट्रीय चुनाव है, इसके आधार पर केंद्र की सरकार का गठन होता है। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद विपक्षी दल इस बार के चुनावों में भी सत्ताधारी दल के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई प्रभावशाली मुद्दा नहीं उठा सके हैं। उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय के बाद चुनावी बॉन्ड का मामला उछालने का प्रयास किया गया। विपक्षी नेताओं ने इसे दुनिया सबसे बड़ा घोटाला करार दिया लेकिन ये मुद्दा भी आम लोगों को ज्यादा प्रभावित करता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। क्योंकि 2019 में चुनावी बॉन्ड योजना शुरू होने के बाद 2024 तक कुल लगभग 12 हजार करोड़ रुपये का चुनावी चंदा इस योजना के तहत दिया दिया गया। जिसमें से लगभग छह हजार करोड़ रुपये भाजपा और शेष विपक्षी दलों को दिया गया। भाजपा के लोकसभा में 303 सांसद हैं और इस दौरान उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात समेत देश के अधिकांश राज्यों में सरकारें है। फिर भी टीएमसी और डीएमके जैसे क्षेत्रीय दल आनुपातिक दृष्टिकोण से भाजपा से ज्यादा चंदा प्राप्त कर रहे थे।

इसके अलावा मनमोहन सिंह सरकार के समय लाखों करोड़ रुपये के जिन घोटालों का खुलासा हुआ था उनमें न्यायालय की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसलिए आम जनता चुनावी बॉन्ड में घपले-घोटाले के आरोप से ज्यादा प्रभावित होती दिखाई नहीं दे रही है। इसके विपरीत अलग-अलग राज्यों में सत्ताधारी विपक्षी दलों के तमाम नेता, मंत्री और यहां तक कि मुख्यमंत्री तक भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में जेल की सलाखों के पीछे हैं। इसके अलावा कुछ जमानत पर बाहर हैं तो कुछ को किसी भी समय जेल जाने के भय सता रहा है। भ्रष्टाचार के आरोपों पर जांच एजेंसियों की गिरफ्त में आने के बाद ये नेता भले ही प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई और आयकर विभाग आदि के दुरुपयोग के आरोप लगाकर खुद को निर्दोष बताने का प्रयास कर रहे हों लेकिन न्यायालय से भी राहत न मिलने से इन नेताओं की विश्वसनीयता को गहरी ठेस पहुंची है।

लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा की प्रचण्ड जीत ने विपक्षी दलों के होश उड़ा दिए। सत्ता विरोधी रुझान का राग अलापने वाले विश्लेषकों ने चुप्पी साध ली। इसके बाद विपक्षी दलों ने अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों का उत्साह बनाए रखने के लिए नई रणनीति पर काम करना शुरू किया। चुनावी नतीजों को भाजपा के खिलाफ बताते हुए वे दावा करने लगे कि भले ही भाजपा ने 303 और उसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने भले ही 354 सीटों पर विजय हासिल की हो लेकिन यह जनादेश भाजपा के पक्ष में नहीं है क्योंकि भाजपा को 37.43 प्रतिशत और राजग को 45 प्रतिशत मत हासिल हुए हैं। इस तरह देश की लगभग 55 प्रतिशत आबादी राजग के खिलाफ है। वे दावा कर रहे थे कि भाजपा की जीत के पीछे सबसे बड़ा कारण भाजपा विरोधी मतों का बंटवारा है इसलिए अगर सभी विपक्षी दल मिलकर भाजपा के विरुद्ध साझा उम्मीदवार उतारें तो भाजपा को आसानी से सत्ता से बाहर किया जा सकता है।

तमाम प्रयासों के बाद इसके लिए इंडी गठबंधन बनाया गया लेकिन बसपा, टीएमसी और वामदलों के रुख ने इस गठबंधन को अप्रासंगिक बना दिया। आज का विपक्षी गठबंधन 2019 के संप्रग और विपक्षी गठबंधन से भी कमजोर दिखाई दे रहा है। इसके अलावा संदेशखाली की महिलाओं पर हुए अत्याचार, संसद के नए भवन के लोकार्पण तथा रामलला के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बहिष्कार और सीएए, अनुच्छेद 370, तीन तलाक जैसे मुद्दों पर विपक्षी दलों के रुख पर आम लोगों की नाराजगी से भाजपा और उसके समर्थक उत्साहित हैं। देश की सामरिक, आर्थिक प्रगति और दुनिया भर में उसका दबदबा बढ़ने से उनका मनोबल बढ़ा है।

इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अबकी बार 400 पार का नारा देकर पूरे चुनावी विमर्श को बदल दिया है। पत्रकार, बुद्धिजीवियों और राजनैतिक विश्लेषकों में ही नहीं बल्कि विपक्षी दलों के नेताओं में भी इस बार बहुमत का जादुई आंकड़ा 272 कौन पार करेगा इस पर कहीं चर्चा नहीं हो रही बल्कि चुनावी विमर्श इस बात पर अटका हुआ है कि राजग 400 का आंकड़ा पार कर सकेगा या नहीं।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)