– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
संकल्प से सिद्धि की दृष्टि से मोदी सरकार के आठ साल बेमिसाल रहे हैं। यह सरकार अपने संकल्प के अनुरूप गरीबों के प्रति समर्पित रही है। अर्थिक स्वावलंबन का अभियान चलाया गया। गरीबों के जीवनस्तर को ऊपर उठाने के प्रयास किए गए। मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता के लिए अनेक योजनाएं क्रियान्वित की गई। पद्म सम्मानों का अभूतपूर्व अध्याय शुरू हुआ। नरेन्द्र मोदी को दो बार राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार चयन का अवसर मिला। दोनों बार उन्होंने समाज के वंचित वर्ग को सम्मानित किया। पहले रामनाथ कोविंद और वनवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू को देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचाया। रामनाथ कोविंद के सम्मान में आयोजित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रात्रि भोज में इन आठ सालों की झलक दिखाई दी। भोज में मौजूद पद्म पुरस्कार विजेताओं, आदिवासी समुदाय के नेताओं और अन्य लोगों का प्रधानमंत्री ने स्वागत किया। ऐसे रात्रिभोज में सिर्फ मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों,नौकरशाहों और दिल्ली में सत्ता के गलियारों के इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों और मशहूर हस्तियों को ही बुलाने की पुरानी परम्परा का मोदी ने पालन नहीं किया। इसमें अपने सामाजिक संकल्प के अनुरूप सुधार किया।
समारोह में वनवासी और वंचित समुदाय के लोगों को सम्मलित होने का अवसर मिला। मोदी ने आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान आयोजित भोज में जनजातीय समाज को महत्व दिया। स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समाज के उपेक्षित प्रसंगों को उजागर किया। प्राय: ऐसे लोगों को यह पुरस्कार मिलता रहा है ,जिनका योगदान प्रत्यक्ष दिखाई देता है। इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने इस संबंध में एक नायाब कदम बढ़ाया। यह उनके कुछ नया करने की इच्छाशक्ति का प्रमाण भी है। इसके अंतर्गत बुनियाद बन कर समाज सेवा करने वालों को सम्मानित करने का निर्णय किया गया। भवन की बुनियाद दिखाई नहीं देती। लेकिन विशाल महलों,अट्टालिकाओं का अस्तित्व उसी पर निर्भर करता है।
बावजूद इसके लोग सामने दिखने वाले भवन की प्रशंसा करते हैं। बुनियाद की चर्चा भी नहीं होती। ऐसे ही समाज में बहुत से लोगों ने अपना जीवन लगा दिया,लेकिन वह खुद नींव की तरह ही बने रहे। पद, वैभव, यश की कोई कामना नहीं की। पुरस्कार या सम्मान देने वालों की भी उनपर नजर नहीं पड़ी। नरेन्द्र मोदी ने नींव पर भी ध्यान दिया। अनेक लोग दिखाई दिए। इनके मन में किसी पुरस्कार की रंचमात्र भी इच्छा नहीं थी। वह इन सीमित विचारों से बहुत आगे निकल चुके थे। ऐसे अनेक लोग इस सरकार में पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किए गए। इसमें गुमनाम समाजसेवकों, कलाकारों आदि को भी शामिल किया गया। इस प्रकार यह प्रतिष्ठित पुरस्कार गांव ही नहीं वनवासी क्षेत्रों तक पहुंच गया।
इस बार के सम्मान समारोह में अद्भुत दृश्य दिखाई दिए। अक्सर चित्र भी अपने में बहुत कुछ कह जाते हैं। शायद यही कारण रहा होगा कि मूल संविधान में अनेक चित्र दिए गए थे। इनकी प्रेरणा यह थी कि शासन को आमजन के प्रति समर्पित होना चाहिए। समय के साथ ये चित्र तो विलुप्त हो गए। फिर भी शीर्ष संवैधानिक पदों से संबंधित कतिपय चित्र प्रभावित करते हैं। पिछले कुछ ही दिनों में ऐसे ही दो चित्र प्रभावित करने वाले थे। पहला वह जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रयागराज कुंभ में सफाई कर्मियों के पैर धो रहे हैं, दूसरा वह जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द पदम् पुरस्कार प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने सम्मान देते हुए एक समाजसेवी महिला के सामने सिर झुका दिया। इस बुजुर्ग महिला ने उनके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। इस चित्र पर विचार करते हैं तो एक नया अध्याय उभरता है। इनमें से कोई पहाड़ तोड़ कर अकेले ही सड़क बनाता रहा। कइयों ने गावों में हजारों जल संरचनाएं निर्मित कीं। शिव गंगा ,हलमा जैसे भगीरथी संघर्ष से सूखे खेतों को पानी पहुंचाया।
पद्मश्री हलधर नाग भी प्रधानमंत्री के इस भोज में शामिल हुए थे। उनके पास वर्तमान में तीन जोड़ी कपड़े ,एक टूटी रबड़ की चप्पल, एक बिन कमानी का चश्मा और जमा पूंजी सात सौ बत्तीस रुपये है। पद्मश्री सम्मान की सूचना मिली तो उन्होंने जवाब भेजा कि साहब नई दिल्ली आने के पैसे नहीं है। कृपया पुरस्कार डाक से भिजवा दें। कहने में गुरेज नहीं कि मोदी सरकार ऐसे लोगों के द्वार तक पहुंच रही है। सम्मान दे रही है। यह संकल्प सिद्धि का नया भारत है। इन नये भारत के नायक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)