Friday, November 22"खबर जो असर करे"

विश्व वन्यजीव दिवस: विलुप्त होने से पहले इन्हें बचा लो!

– आयुषी दवे

जब हम वन्यजीव या वाइल्डलाइफ जैसे शब्द सुनते हैं तो अमूमन हमारे दिमाग में सबसे पहले जंगल और वहां रहने वाले शेर, चीता, भालू जैसे बड़े जानवरों का ख्याल आता है। दरअसल वन्यजीव उन सभी जीवों को कहा जाता है जिन्हें मनुष्य ने पालतू न बनाया गया हो। वन्यजीवों में न केवल जानवर बल्कि वह सभी पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, कवक और सूक्ष्म जीव भी आते हैं जो अपने प्राकृतिक वातावरण में बिना मनुष्य के दखल के रहते हैं। वन्यजीव पृथ्वी के हर महाद्वीप और लगभग सभी देशों में पाए जाते हैं। ये हमारी प्राकृतिक धरोहर का एक बहुत अहम हिस्सा हैं, क्योंकिपृथ्वी में पाए जाने वाले हर पारितंत्र यानी इको सिस्टम जैसे वन, रेगिस्तान, घास भूमि, मैदान, पर्वत, समुद्री क्षेत्र में इनकी अच्छी खासी संख्या देखी जा सकती है।

पर्यावरण को संतुलित करने में वन्यजीव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वन्य जीवन प्रकृति की विभिन्न प्रक्रिया को स्थिरता प्रदान करता है। प्रत्येक जीवित वस्तु आपस में जुड़ी हुई है। यदि केवल एक जीव भी खतरे में पड़ जाता है या विलुप्त हो जाता है, तो इसका पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ता है। यह खाद्य शृंखला यानी फूड चेन को भी बाधित करता है, जिससे पर्यावरण में सदमे की लहर फैल जाती है। इसीलिए इनका संरक्षण बेहद अहम हो जाता है। इस दिशा में विश्व के बहुत सारे सरकारी, गैर-सरकारी संगठन निरंतर प्रयासरत हैं। यह संगठन अपने तमाम कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को इनके संरक्षण के प्रति जागरूक भी करते हैं।

ऐसे ही बड़े प्रयास के अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर, 2013 को 68वें सेशन में हर साल तीन मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस मनाने की घोषणा की थी। तीन मार्च की तिथि को इसलिए निर्धारित किया गया, क्योंकि तीन मार्च, 1973 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्सेर्वटिव ऑफ नेचर के 80 सदस्यों ने सीआईटीईएस (साइट्स) समझौते पर हस्त्ताक्षर किए थे। साइट्स जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन सरकारों के बीच अहम अंतरराष्ट्रीय समझौता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जंगली जानवरों और पौधों के नमूनों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार से प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा न हो। इस साल इसका विषय है “लोगों और ग्रह को जोड़ना: वन्यजीव संरक्षण में डिजिटल नवाचार की खोज”।

विश्व वन्यजीव दिवस का उद्देश्य लोगों को प्रकृति से जोड़ना और उन्हें जानवरों और पेड़ पौधों के संरक्षण के लिए प्रेरित करना है। भारत में भी इस दिशा में सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं। 1972 में वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट नामक सख्त कानून पारित किया गया। नेशनल पार्क, वन्यजीव अभयारण्य, टाइगर रिजर्व, हाथी रिजर्व जैसे बहुत से संरक्षित क्षेत्र भी घोषित किए गए। समय-समय पर इनकी गणना भी की जाती है। इनकी संख्या बढ़ाने के लिए प्रोजेक्ट टाइगर, प्रोजेक्ट एलीफैंट, प्रोजेक्ट राइनो, प्रोजेक्ट स्नो लैपर्ड, प्रोजेक्ट वल्चर आदि शुरू किए गए। वन्यजीव और प्रकृति बड़े पैमाने पर भावनात्मक और सामाजिक कारणों से मनुष्य से जुड़े हुए हैं। वन्य जीवन के महत्व को पारिस्थितिक, आर्थिक और खोजपूर्ण महत्व के साथ-साथ जैव विविधता के संरक्षण आदि के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र के लिए विविधता आवश्यक होती है। उदाहरण के लिए पौधों पर विचार करें। पौधों की विस्तृत विविधता का अर्थ है अधिक उत्पादकता और बेहतर स्वास्थ्य। यदि पौधों की प्रजातियां कम होंगी तो उन्हें प्रभावित करने वाली बीमारी तेजी से और अधिक प्रभावी ढंग से फैलती है। अधिक विविधता का अर्थ है बेहतर प्रतिरोध।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा वन्यजीव और प्रकृति में माध्यम से आता है। बहुत से लोग अपनी जीविका के लिए कहीं न कहीं वन और वन्यजीवों पर आश्रित हैं। इसीलिए इनका संरक्षण और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है। वन्यजीवों का न केवल आर्थिक और सामाजिक महत्व बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी है। ये शुरू से ही हमारी सभ्यता और संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं। इतना ही नहीं एक बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी प्रकृति और वन्यजीवों के करीब रहने की सलाह दी जाती है।

हर जगह लोग भोजन से लेकर ईंधन, दवाएं, आवास और कपड़े तक अपनी सारी जरूरतों को पूरा करने के लिए वन्यजीवन और जैव विविधता आधारित संसाधनों पर निर्भर हैं। प्रकृति हमें और हमारे ग्रह को जो लाभ और सुंदरता प्रदान करती है उसका आनंद लेने के लिए यह जरूरी है की लोग यह सुनिश्चित करें कि पारिस्थितिकी तंत्र फलने-फूलने में सक्षम हो और पौधों तथा जानवरों की प्रजातियां भविष्य की पीढ़ियों के लिए अस्तित्व में रहने में सक्षम हों।

निश्चित ही इस दिशा में वैसे तो बहुत से काम किए जा रहे हैं परन्तु पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बनाए रखने के लिए अभी और प्रयासों की आवश्यकता है। जरूरत यह भी है कि हम वन्यजीवों के महत्व को समझें। उनका होना एक वरदान समझ कर उनके होने का जश्न मनाएं। उनके संरक्षण की बात को केवल कागजी बात न मान कर उसे अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाते हुए इस दिशा में निरंतर प्रयास करते रहें।

(लेखिका, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)