– सुरेश हिंदुस्तानी
पाकिस्तान के बनने के पश्चात प्रारंभ से पैदा हुई उसकी राजनीतिक दुश्वारियां अभी तक पीछा नहीं छोड़ रही हैं। सत्ता के संघर्ष के इस खेल में पाकिस्तान ने पाया कुछ नहीं, इसके विपरीत खोया बहुत है। आम चुनाव में पाकिस्तान के राजनीतिक आसमान में फिर से अस्थिरता के बादल उमड़ते-घुमड़ते दिखाई दिए। पाकिस्तान की सेना और आतंकियों के संकेत पर जबरदस्ती पदच्युत किए गए पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए इस चुनाव में राह को कठिन बनाने की भरपूर राजनीति की गई। इसके बाद भी पाकिस्तान में एक बड़ी ताकत के रूप में अपना स्थान कायम रखा। इसे इमरान खान की लोकप्रियता ही कहा जाएगा कि उनके विरोधी दल ताल ठोककर मैदान में सामने खड़े थे, इसके बाद भी इमरान की पार्टी पाकिस्तान-तहरीक-ए-इंसाफ सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आई। वहीं नवाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग नवाज दूसरे और बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी तीसरे स्थान को ही प्राप्त कर सके।
इसके यह भी निहितार्थ हैं कि इन दोनों से इमरान खान ज्यादा लोकप्रिय हैं। जैसा कि पाकिस्तान का चरित्र रहा है कि वहां प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने वाला व्यक्ति तब तक कुछ नहीं कर सकता, जब तक सेना और आतंकी आकाओं का आदेश नहीं मिल जाए। इसे इस रूप में कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पाकिस्तान की सत्ता का निर्धारण सेना के हाथ में ही रहता है। पाकिस्तान में कहने को ही लोकतंत्र है, सच मायनों में वहां सेना का तंत्र ही कार्य करता है। सेना के अधिकारी जब चाहें जैसा चाहें, निर्णय कर सकते हैं। वहां सेना के मुख्य अधिकारी सत्ता को गिराने का काम करते आए हैं। उल्लेखनीय है कि परवेज मुशर्रफ सेना के अधिकारी ही थे, जिन्होंने पाकिस्तान में तख्तापलट करते हुए शासन की बागडोर संभाली थी। इसी प्रकार अन्य भी कई उदाहरण हैं।
यह पाकिस्तान की नियति बन चुकी है कि वहां अभी तक कोई भी राजनीतिक दल सत्ता का संचालन पूरे कार्यकाल तक नहीं कर सका है। क्योंकि वहां सरकार के कामों में सेना का हस्तक्षेप बहुत ज्यादा है। ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि पाकिस्तान में सेना ने ज्यादातर शासन किया है। एक प्रकार से पाकिस्तान बनने के बाद से ही सेना की राजनीतिक सक्रियता रही है। जिसके कारण पाकिस्तान में लोकतंत्र होते हुए भी सैनिक शासन जैसा ही रहा है। इस बार के चुनाव में लोकतंत्र के हिसाब से इमरान खान काफी मजबूत दिखाई दे रहे थे, जो चुनाव के परिणामों ने भी स्पष्ट किया, लेकिन इमरान खान की पार्टी बहुमत के आंकड़े से बहुत दूर रही। इमरान खान की पार्टी के नेताओं ने दावा किया था कि उनकी पार्टी 150 से ज्यादा सीटों पर विजय प्राप्त कर रही है। यह आंकड़े मतों की गिनती होते समय प्रारंभिक रूप से दिखने लगे थे, लेकिन उसके बाद स्थिति अचानक से बदल गई। उसके जो उम्मीदवार आगे चल रहे थे, वे पीछे होते चले गए।
इस चुनाव में एक बार फिर राजनीतिक विद्वेष की खाई और ज्यादा चौड़ी होती दिखाई दी। नवाज शरीफ के पार्टी ने अपने रास्ते साफ करने के लिए इमरान को जेल भेजने का कुचक्र रचा। इमरान को चार मामलों में सजा भी मिली है, जिसके कारण चुनाव के दौरान इमरान जेल में ही रहे। इसे चुनाव प्रचार से दूर करने की कवायद के रूप में देखा जा गया। इतना ही नहीं इमरान की पार्टी के नेताओं के सामने भी कई प्रकार के संकट खड़े किए गए। फिर भी इमरान को नहीं रोक सके। अब इमरान को रोकने के लिए एक बार फिर से पाकिस्तान गठबंधन सरकार बनाने की ओर कदम बढ़ा चुका है। यानी फिर से पाकिस्तान में ऐसा राजनीतिक भंवर बन रहा है, जिसमें पाकिस्तान निकलने की कवायद कर रहा था।
पाकिस्तान में कहा यह भी जा रहा कि सेना के हस्तक्षेप के चलते इमरान को सत्ता के मुहाने पर आकर रोक दिया है। चुनाव परिणाम के बाद पाकिस्तान में इमरान के समर्थक सड़कों पर उतर आए और जमकर विरोध किया। इमरान समर्थकों की यह कवायद थम जाएगी, ऐसा फिलहाल तो नहीं लगता। इसलिए कहा यह भी जा रहा है कि पाकिस्तान में आगामी हालात राजनीतिक रूप से रस्साकसी वाले ही रहेंगे, जिससे फिर राजनीतिक अस्थिरता होगी और पाकिस्तान के बिगड़े हुए हालात और भी ज्यादा खराब होते जाएंगे, यह तय है।
आज पाकिस्तान की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। पाकिस्तान में भुखमरी के हालात हैं। इसका एक बड़ा कारण पाकिस्तान में लोकतंत्र का गिरवी होना ही है। स्थिति यह है कि पाकिस्तान में राजनेता मौज कर रही है और जनता दर दर की ठोकर खाने के लिए मजबूर है। शासन की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने देश की स्थिति को संभाले, परंतु पाकिस्तान में सरकार को संभालने की राजनीति ही की जाती रही है। जिसके कारण पाकिस्तान के ऐसे हालात बने। इतना ही वहां के राजनेता आतंकी आकाओं और सेना की कठपुतली ही बने रहे, जिसके चलते उनको सत्ता का सुख भी प्राप्त हुआ।
पाकिस्तान की मौजूदा परिस्थितियां वहां के राजनीतिक नेताओं की देन हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान आज बर्बादी के कगार पर जा चुका है। हम जानते हैं कि इमरान के शासनकाल के दौरान जनता अपना पेट भरने के लिए सड़कों पर उतर आई। लूटपाट भी की, लेकिन राजनेताओं ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और पाकिस्तान की दुर्गति होती चली गई। अब पाकिस्तान के हालात उससे भी बुरे हो सकते हैं, क्योंकि वहां जोड़तोड़ करके जो सरकार बनेगी, उसके सामने एक मजबूत विपक्ष होगा, जो सरकार की निरंकुश कार्रवाई पर लगाम लगाने में समर्थ होगी। अब अगर पाकिस्तान को अपनी स्थिति सुधारना है तो उसे सत्ता की राजनीति करने की बजाय जनहित की राजनीति पर ध्यान देने पर बल देना होगा। तभी पाकिस्तान का संकट समाप्त हो सकेगा।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)