Friday, November 22"खबर जो असर करे"

परीक्षा में नकल रोकने की साहसिक पहल

– डा. रमेश शर्मा

अलग-अलग कोर्स में प्रवेश के लिए आयोजित होने वाली प्रवेश परीक्षा हो या नौकरी के लिए प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया हो या फिर स्कूल और कॉलेज की नियमित रूप में होने वाली परीक्षा हो। नकल, धोखाधड़ी और गुंडागर्दी एक रूटीन का मामला बन गया है। अनेक तरह कोशिश के बाद भी इस अपराध पर अंकुश लगाना संभव नहीं हो पाया। नकल रोकने के प्रयास हिंसा या प्रतिशोध के कारण विफल रहे हैं । दबाव के आगे समर्थ भी खामोश रहते देखे जाते रहे हैं। परिस्थिति के दौरान गलत को सही और सही को गलत समझने का भ्रम अनुभव होता है। परीक्षा माफिया पर अब लगाम लगनी तय है।

संसद द्वारा इस संबंध में कानून बनाया जाना सचमुच सही दिशा में एक भगीरथी प्रयास है। अचानक सब ठीक हो जाएगा ऐसा मानना थोड़ी जल्दबाजी होगी क्योंकि नासूर की जड़ बहुत ही गहरी है। लेकिन यह इस दिशा में एक मील का पत्थर और एक साहसिक एवं स्वागतयोग्य कदम है जो धीरे-धीरे इस क्षेत्र की भ्रष्ट प्रणाली में वांछित परिणाम देगा । प्रतियोगी परीक्षाओं में युवा सारे साधन झोंक देते हैं और कई बार तो स्वयं को आहत भी कर रहे हैं। कोटा जैसे संस्थान इसके उदाहरण हैं। उम्मीदवार के साथ साथ परिवार और पूरी व्यवस्था को अपूरणीय क्षति के दौर से गुजरना पड़ता है। यह राष्ट्रीय कलंक है।

विगत वर्षों में कई राज्यों के राजनेता और अधिकारी इस तरह के भ्रष्टाचार में संलिप्त पाये गए हैं और जेल में हैं। नौकरी देने वाली संस्थाएं, लोकसेवा आयोग के मुखिया और सदस्यों सहित प्रभावशाली वर्ग की भूमिका संदेह के दायरे में रही है। आर्थिक संपन्न समूह का डंका बजता है जिस से सभी स्तर पर निराशापूर्ण माहौल पैदा होता है। यह कानून इस दिशा में युगांतकारी और आशातीत फल देगा ऐसा विश्वास किया जाना चाहिए।शिक्षण संस्थानों में इस समस्या के अलग आयाम हैं। यह कानून एक करोड़ रुपये जुर्माना और दस साल तक की सजा का प्रावधान करता है तथा संबंधित संस्थान की अयोग्यता को सस्पेंड करता है।

इस तरह के नियम स्कूल और कॉलेज के लिए भी बनने चाहिए । नकल के खेल में उम्मीदवार, परीक्षक, अभिभावक यानी समाज, माफिया और कानून की एजेंसियां मुख्य किरदार रहते हैं। यह कानून इन सभी पक्षों से सहयोग की अपेक्षा रखता है । कहीं एक, कहीं दो और कहीं सभी समूह की सहभागिता निश्चित परिणाम देने में सक्षम होगी ऐसा माना जाना होगा। नकल के स्वर्णिम सिद्धांत के अनुसार यदि अध्यापक चाहेगा तो नकल होगी यदि नहीं चाहेगा तो नहीं होगी लेकिन उसे परिवेश का वरदहस्त चाहिए क्योंकि उसे खामोश करने के बड़े रास्ते हैं जो माफिया समूह जानता है। इस कानून को पूरे देश में पूरी तन्मयता के साथ अपनाकर पूरी निष्ठा के साथ लागू किया जाएगा और युवावर्ग और देश की प्रतिभा के साथ न्याय करते हुए देश की उन्नति सुनिश्चित हो पाएगी तभी यह कानून अपनी दिशा में वरदान साबित हो सकता है।