Friday, November 22"खबर जो असर करे"

गुणवत्ता मानकों पर कफ सीरप सैंपल्स की विफलता

– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

देश की 54 दवा निर्माता कंपनियों के कफ सीरप के 128 सैंपल्स का गुणवत्ता के मामलों में खरा नहीं उतरना चिंता का विषय होने के साथ जघन्य अपराध से कम नहीं आका जाना चाहिए। मामला सीधे स्वास्थ्य से जुड़ा होने के साथ देश की अस्मिता को भी प्रभावित करने वाला है। दरअसल भारतीय दवा निर्माता कंपनियों द्वारा निर्यात किए जाने वाले कफ सीरप की गुणवत्ता को लेकर गाम्बिया में 70 बच्चों और उज्बेकिस्तान के 18 बच्चों के कफ सीरप के कारण किडनी पर गंभीर असर होने से मौत होने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह मुद्दा गंभीरता से उठ गया और ऐसे हालात में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गंभीर चिंता जताने में कोई देरी नहीं की। लाख सफाई देने के बावजूद इससे ना केवल देश की प्रतिष्ठा पर प्रभाव पड़ा है अपितु भारत के दवा उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदा होना पड़ा है।

हालांकि इस घटना के बाद भारत सरकार ने 1 जून, 2023 से ही देश से बाहर निर्यात होने वाले कफ सीरप की गुणवत्ता व मानकों पर खरा होने का सरकारी प्रयोगशाला से परीक्षण कराकर विश्लेषण प्रमाणपत्र प्राप्त करना जरूरी कर दिया है। दरअसल, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय दवा उद्योग का दबदबा होने के साथ वैक्सीन निर्माण, गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धात्मक दरों पर उपलब्ध होना बड़ी उपलब्धि रही है। हमारे देश में बनी जेनेरिक दवाओं की तो अमेरिका सहित दुनिया के देशों में जबरदस्त मांग है।

देखा जाये तो भारतीय दवा उद्योग की विश्वव्यापी पहचान और धाक है। कोरोना का उदाहरण हमारे सामने है जब अमेरिका द्वारा मलेरिया की दवा प्राप्त करने के लिए भारत पर दबाव बनाया गया, वहीं दुनिया के देशों को सर्वाधिक कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराने में भारत की भूमिका को समूचे विश्व द्वारा सराहा गया। ऐसे में कफ सीरप की गुणवत्ता को लेकर उठाया गया प्रश्न ना केवल चिंता का विषय है अपितु विश्वसनीयता को भी प्रभावित करता है। दवाओं के निर्यात में भारत की भूमिका को इसी से देखा जा सकता है कि भारत द्वारा वित्तीय वर्ष 2022-23 में 17.6 बिलियन डॉलर के केवल कफ सीरप का निर्यात किया गया। दुनिया के देशों की टीकों की मांग की 50 प्रतिशत आपूर्ति हमारे देश द्वारा की जा रही है। अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की 50 प्रतिशत मांग को हमारे यहां से किया जा रहा है। इंग्लैण्ड में दवाओं की मांग की 25 प्रतिशत पूर्ति भारत द्वारा की जा रही है।

समूचे विश्व में भारतीय दवाओं की मांग है। इसका एक कारण गुणवत्ता है तो दूसरी ओर तुलनात्मक रूप से सस्ती होना भी है। ऐसे में कफ सीरप के कुछ सैंपल का गुणवत्ता मानकों पर खरा नहीं उतरने की रिपोर्ट पर भारत सरकार गंभीर हो गई। सवाल यह उठता है कि ऐसे हालात ही क्यों आए? आखिर निर्यात करने वाली दवा कंपनियों का भी दायित्व होता है। जब कोई वस्तु निर्यात की जाती है तो उसके गुणवत्ता मानकों पर खरा होना भी सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। वैसे भी दवा जीवनरक्षक होती है अगर यह जीवन लेने का कारण बन जाए तो यह गंभीर अपराध हो जाता है।

कोई दो राय नहीं कि भारत सरकार गुणवत्ता को लेकर और अधिक गंभीर हो गई है पर सैंपल जांच के जो परिणाम प्राप्त हुए हैं यह अपने आप में गंभीर है। प्राप्त सरकारी आंकड़ों के अनुसार केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन संस्थान द्वारा विभिन्न कंपनियों के कफ सीरप के सैंपल्स का परीक्षण किया गया, इनमें से 54 कंपनियों के 128 सैंपल्स गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरे। अब कहा यह जा रहा है कि केवल 6 प्रतिशत सैंपल्स विफल रहे हैं पर सवाल 6 प्रतिशत का नहीं है। यह सफाई भी नहीं दी जा सकती कि सैंपल तो एक भी विफल होता है तो वह किसी की जान लेने का कारण बन सकता है।

गुणवत्ता मानकों की जांच से यह तथ्य सामने आया है और यह तब है जब दवा निर्माता कंपनियों का अपना परीक्षण का सेटअप होता है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि दवा निर्माता कंपनियों की प्रयोगशालाएं गुणवत्ता जांच को लेकर उतनी गंभीर नहीं है जितनी गंभीरता होनी चाहिए। केन्द्र सरकार का कहना है कि 125 से अधिक कंपनियों का जोखिम आधारित विश्लेषण किया गया जिसमें से 71 कंपनियों को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा गया है। 18 कंपनियों को बंद करने के नोटिस दिए गए हैं। इसे सरकार की सकारात्मक पहल माना जा सकता है पर जो कुछ किया जा रहा है वह नाकाफी है। सरकार को कड़े कदम उठाने ही होंगे। कंपनियों को बंद करना कोई इलाज नहीं है क्योंकि कल यही किसी दूसरे नाम से कंपनी बनाकर सामने आ जाएंगे। वैसे भी नकली दवा बनाना या गुणवत्ता मानकों में दवाओं का विफल रहना किसी क्रिमिनल अपराध से कमतर नहीं माना जाना चाहिए। ऐसे में कठोर से कठोर सजा के प्रावधान के साथ ऐसे उदाहरण भी सामने आने चाहिए कि नकली या गुणवत्ता पर खरी नहीं उतरने पर दवा निर्माता को कठोर दंड दिया गया। कपंनियों को भी अपनी प्रयोगशाला को अधिक आधुनिक व इंटरनेशनल मानकों के मुताबिक बनानी होगी ताकि इस तरह के हालात ना आयें।दवा चाहे खांसी की हो या किसी सामान्य बीमारी की, गुणवत्ता के मानकों को उसे पूरा करना ही होगा। इसे सरकार को जहां सुनिश्चित कराना होगा वहीं निर्माता कंपनियों को भी सुनिश्चित करना होगा।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)