Friday, November 22"खबर जो असर करे"

चुनावी भंवर में फंसी कांग्रेस

– डॉ. अनिल कुमार निगम

लोकसभा चुनाव का आगाज होने से पहले 14 जनवरी से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी न्याय यात्रा शुरू करने वाले हैं। उनकी 67 दिन की यह प्रस्तावित यात्रा 67 जिलों और 14 राज्यों से गुजरेगी। राहुल की यह न्याय यात्रा निसंदेह चुनावी माहौल को कांग्रेस के लिए अनुकूल बनाने के लिए होगी, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस बिना सशक्त विचारधारा, स्पष्ट नीतियों और सशक्त नेतृत्व के बिना सत्ताधारी दल भाजपा को लोकसभा चुनाव में चुनौती दे पाएगी? क्या यह सच नहीं है कि लगभग 140 साल पुराना सियासी दल कांग्रेस इस समय लचर नेतृत्व और स्पष्ट विचारधारा के संकट से गुजर रहा है?

वर्तमान में सत्ताधारी दल भाजपा काफी मजबूत स्थिति में है। भाजपा का मुकाबला करने के लिए 28 विपक्षी दलों ने मिलकर इंडिया नामक एक एलायंस बनाया है। लेकिन सीटों के बंटवारे और प्रधानमंत्री पद के चेहरे को लेकर जिस तरीके से इन दलों के बीच परस्पर मतभेद उभरे हैं, उससे इस गठबंधन की एकजुटता पर भी सवालिया निशान लग गया है। इस एलायंस का प्रमुख घटक दल कांग्रेस है। इस पार्टी ने देश के स्वतंत्र होने के बाद कई दशकों तक देश में शासन किया है। लेकिन आज यह पार्टी संकट के दौर से गुजर रही है। अपनी विचारधारा और सशक्त नेतृत्व के चलते ही कांग्रेस महज एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि आंदोलन था। सर्वविदित है कि देश की आजादी में कांग्रेस का अहम योगदान रहा है। लेकिन समय के साथ-साथ यह दल खुद को बदलने में पूरी तरह विफल रहा। अपनी लचर नीतियों एवं नेतृत्व के चलते ही उसे हाल ही में संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में तीन प्रमुख तीन राज्यों-राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में बुरी तरह से शिकस्त का सामना करना पड़ा।

वर्ष 1885 में कांग्रेस का गठन हुआ था, उसके बाद से पार्टी की एक स्पष्ट विचारधारा विकसित हुई थी। आजादी के बाद पार्टी गांधीवादी विचारधारा से ओतप्रोत होकर सर्वजन हिताय की बात करती थी। पार्टी ने जवाहर लाल नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री रहते कुछ हद तक इस विचारधारा को कायम रखा। लेकिन इंदिरा गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद चीजें बदलने लगीं। हालांकि उस दौरान स्थिति उतनी खराब नहीं थी, लेकिन सोनिया गांधी और राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी में जबरदस्त तरीके से स्पष्ट विचारधारा का अभाव देखने को मिलता है। पिछले कुछ दशकों में कांग्रेस के ‘गांधीवाद’ में भयंकर घालमेल हुआ है। बाहरी मुखौटा तो गांधी दर्शन का है, किंतु आंतरिक चरित्र अवसरवादी बन गया है।

आज कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल कभी खुद हिंदूवादी होने का दिखावा करते हैं तो कभी जे.एन.यू. में देशद्रोह मामले में आरोपितों के साथ खड़े दिखाई देते हैं, तो कई बार भारतीय सैनिकों की शौर्य-क्षमता पर ही सवाल उठा देते हैं। यही नहीं, वे इस्लामी आतंकियों और जिहादियों के प्रति सहानुभूति तक दिखा देते हैं। ऐसे में कांग्रेस की खुद की अपनी विचारधारा क्या है, यह पता लगना बेहद जटिल है।

इसके अलावा कांग्रेस में सशक्त नेतृत्व का जबरदस्त संकट है। नेतृत्व और नीतिगत मोर्चे पर कांग्रेस आज बुरी तरह विफल रही है। पहले सोनिया गांधी पार्टी की अध्यक्ष रहीं और उसके बाद राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष रहे। कांग्रेस 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित हो चुकी है। राहुल ने खुद की इमेज को ठीक करने के लिए भारत जोड़ो यात्रा सहित बहुत प्रयास किए और अब 14 जनवरी से न्याय यात्रा पर निकल रहे हैं। यही नहीं, 28 दलों के गठबंधन में जिस तरीके से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पद का कैंडीडेट राहुल की जगह कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रस्तावित कर दिया, उससे यह पता चलता है कि विपक्षी दल भी राहुल को इस पद का चेहरा नहीं मानते। यह कमजोर नेतृत्व का ही परिणाम है कि राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के झगड़े सार्वजनिक रूप से चलते रहे और राहुल गांधी कुछ नहीं कर पाए। इसी तरीके से पार्टी में उपेक्षित होने के चलते युवा नेता ज्योतिरादित्त्य सिंधिया, जतिन प्रसाद और आरपीएन सिंह जैसे नेताओं ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया।

पार्टी में कमजोर नेतृत्व के अलावा पार्टी की स्पष्ट नीति का अभाव भी देखने को मिलता है। कांग्रेस कई बार बड़े मुद्दों को ठीक तरीके से नहीं उठा पाती है। मामला चाहे कृषि कानूनों का रहा हो या देश में चल रहे भ्रष्टाचार का, उसमें पार्टी स्पष्ट स्टैंड नहीं ले पाई। उसके पास अंतरराष्ट्रीय समस्याओं पर नीतियों का नितांत अभाव देखने को मिलता है। नीतियों के नाम पर बदलते हुए जुमले और समय-समय पर परिवर्तन होने वाले केवल नारे तो दिखते हैं, पर ठोस नीति नहीं होती। अब हम अगर खाली सनातन धर्म पर कांग्रेस के ढुलमुल नीति की बात करें तो राहुल गांधी मंदिरों के दर्शन एवं भगवान की पूजा अर्चना करते दिखाई देते हैं तो कई बार सनातन का अपमान करने वालों पर कुछ बोलने की जगह चुप्पी साध लेते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी के ही वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कहा है कि सनातन धर्म के विरोध का पाप और जातिवाद की राजनीति कांग्रेस को ले डूबेगी।

खुद सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। उनसे नेशनल हेराल्ड की संपत्ति के मामले में ईडी पूछताछ कर रही है। इनकम टैक्स विभाग ने हाल ही में कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य धीरज साहू के ओडिशा एवं झारखंड आवास पर छापेमारी कर 351 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति जब्त की गई है। वास्तविकता तो यह है कि बिना विचारधारा के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के इस युग में ढुलमुल सोच एवं नीतियों वाली पार्टियां बिलकुल नहीं टिक सकतीं। अगर कांग्रेस को भाजपा से मुकाबला करना है तो उसे अपना न केवल सांगठनिक तानाबाना सशक्त करना होगा बल्कि नेतृत्व, विचारधारा और नीति के मामले में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)