Friday, November 22"खबर जो असर करे"

खेत-खलिहान के प्रयोगधर्मियों के नवाचारों को संरक्षण आज की जरूरत

बदलते सिनेरियो में सरकार को अब विश्वविद्यालयों की बड़ी-बड़ी और संसाधनयुक्त प्रयोगशालाओं से अलग खेत को ही प्रयोगशाला बनाकर अपनी मेहनत, नवाचारी, परंपरागत और आधुनिकतम खेती के बीच सामंजस्य बनाते हुए नित नए प्रयोग करने वाले प्रयोगधर्मी किसानों की मेहनत को मान्यता, संरक्षण और पहचान देने की पहल भी करनी होगी। इसमें कोई दोराय नहीं की देश के कृषि विश्वविद्यालयों में शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में विश्वस्तरीय कार्य हो रहा है और आज खेती किसानी के क्षेत्र में देश नित-नए आयाम स्थापित कर रहा है।

कृषि के क्षेत्र में भारत आज अग्रणी देश बन गया है। हालात यह हो गए है कि आज गेहूं और धान के निर्यात पर रोक के बावजूद देश के किसानों की ही मेहनत का फल है कि बागवानी व अन्य कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाकर देश निर्यात के नए कीर्तिमान स्थापित करने की और अग्रसर है। पर यहां हमें यह नहीं भूलना होगा कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण जहां गेहूं, धान आदि के उत्पादन के हालात सेचुरेशन वाले हो गये हैं वहीं भूमि की उर्वरा शक्ति प्रभावित होने के साथ ही पानी का अत्यधिक दोहन, स्वास्थ्य और सेहत के लिए हानिकारक होता जा रहा है। आज देश जैविक व परंपरागत खेती की और बढ़ रहा है।

हालांकि यह भी उपलब्धि है कि हमारा सिक्किम दुनिया का पहले नंबर पर जैविक अनाज उत्पादक प्रदेश बन गया है। खैर इस सबके बीच हमें उन प्रयोगधर्मी भूमिपुत्रों को प्रोत्साहित और उनकी मेहनत को संरक्षित और आगे बढ़ाने के लिए आगे आना होगा जो अपनी सीमित साधन, संसाधन और विपरीत वित्तीय परिस्थितियों के बावजूद नई इबारत लिख रहे हैं। सही मायने में देखा जाये तो इन प्रयोगधर्मी अन्नदाताओं की मेहनत व लगन को किसी कृषि वैज्ञानिक से कम नहीं आका जा सकता।

देश के अनेक प्रयोगधर्मी भूमिपुत्रों में से अपनी खेती-अपना खाद, अपना बीज-अपना स्वाद को ध्येय बनाकर उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के टड़िया गांव के किसान वैज्ञानिक श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी ऐसे ही देश कुछ गिने-चुने खेत को ही प्रयोगशाला बनाकर जुटे हुए हैं। सच ही कहा गया है कि ईश्वर किसी ना किसी तरह से न्याय अवश्य करता है। इसी का जीता जागता उदाहरण श्रीप्रकाश रघुवंशी है। 23 साल की आयु में बीमारी के दौरान पेनिसिलिन की इंजेक्शन के दुष्प्रभाव से आंखों पर अधिक असर पड़ने के कारण आंखों की परेशानी के कारण खेत और खेती को ही प्रयोगशाला बनाकर श्रीप्रकाश ने जो नवाचार और प्रयोग किए आज उन्हें संरक्षित करने की अधिक आवश्यकता है। निकट भविष्य में श्रीप्रकाश को पूरी तरह से दिखाई देना बंद होने की संभावना के अहसास के डर से लग रहा है कि ऐसी विकट स्थिति आई तो कृषि क्षेत्र में उनकी शोध यात्रा थम जाएगी। उन्हें चिन्ता है कि गेहूं, अरहर, सरसों आदि की उनके द्वारा विकसित ‘कुदरत’ और करिश्मा प्रजाति के बीज और 200 प्रकार के देसी बीजों के खजाने का क्या होगा।

श्रीप्रकाश ने नित नए प्रयोग करते हुए 200 प्रकार की देशी वैरायटी के बीज विकसित किए हैं। इनमें गेहूं की 80 प्रजाति, धान की 20 प्रजाति, अरहर की 5 प्रजाति, सरसों की 3 प्रजाति सहित हमारी जलवायु और वातावरण में अच्छी, जल्दी पकने वाली देशी प्रजातियों को विकसित करने का अहम काम किया गया है। ‘गेहूं कुदरत-9 और कुदरत-8 विश्वनाथ लम्बे बाली वाला होता है। एक बाली में 80-90 दाने होते हैं। तेज पानी, हवा से पौधा गिरता नहीं। उत्पादन क्षमता 25 से 30 क्विंटल प्रति एकड़ है। दाना मोटा, चमकदार और वजनदार होता होता है। खास बात यह है कि देश के कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा किए जा रहे दावों को जांचा परखा गया है और गुणवत्ता पर खरे उतरे हैं। देश के कई हिस्सों में खासतौर से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब हरियाणा आदि में 100, 50, 25 ग्राम के सैंपल्स उपलब्ध कराकर प्रयोग किया गया है और यह प्रयोग सफल रहा है। अब श्रीप्रकाश की चिंता यही है कि इन स्वदेशी बीजों का बैंक बन जाए तो इनका उपयोग, उत्पादन और संरक्षण का काम हो सकेगा। इसका लाभ अंततोगत्वा देश के कृषि क्षेत्र को ही मिलेगा।

श्रीप्रकाश के बहाने यहां चिंतनीय और विचारणीय हालात यह हो जाता है कि देश के ऐसे भूमि पुत्रों को राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जाना ही पर्याप्त नहीं है। सम्मान अपने आपमें मायने रखता है पर इनकी मेहनत और प्रयोग को जब उपादेय माना जाता है तो उसके संरक्षण और संवर्द्धन किया जाना चाहिए। मेरा मानना है कि केन्द्र व राज्य सरकार के कृषि मंत्रालयों को ऐसे नवाचारी, अपनी धुन में मस्त, मानव समाज और कृषि जगत के लिए किये जा रहे कार्यों को पहचान के साथ ही प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। बल्कि होना तो यह चाहिए कि मंत्रालयों में एक अनुभाग ऐसा होना चाहिए जो केवल ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करने, उन्हें सहयोग करने, आवश्यकतानुसार संसाधन उपलब्ध कराने और परीक्षण के बाद खरी उतरने वाले प्रयोगों को सरकार द्वारा अपने हाथ में लेकर आगे बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए। आज किसानों को भ्रमण कराया जाता है। यदि ऐसे नवाचारी भूमिपुत्रों के खेत खलिहान का भ्रमण कराया जाता है, अनुभवों से रूबरू कराया जाता है तो यह अधिक लाभदायक होगा इसमें कोई संदेह नहीं किया जाना चाहिए।

देखा जाए तो श्रीप्रकाश तो एक बहाना है। हां यह अवश्य है कि उत्तर प्रदेश सरकार और केन्द्र सरकार के कृषि मंत्रालय को आगे आकर श्रीप्रकाश द्वारा 200 से अधिक किए गए 20 प्रजाति के बीज बैंक की स्थापना कर संरक्षित करने के लिए आगे आना चाहिए। श्रीप्रकाश के स्वास्थ्य की विपरीत परिस्थिति को देखते हुए संबल प्रदान करना चाहिए। यह केवल श्रीप्रकाश की ही बात नहीं हैं देश के हर कोने में इस तरह के कर्मयोगी मिल जाएंगे। मिशन फार्मर साइंटिस्ट परिवार के महेन्द्र मधुप ने इस तरह के कर्मयोगियों व उनके प्रयोगों को अन्वेषक किसान सहित अपनी पुस्तकों व अनवरत लेखकीय प्रयासों से सामने लाने की पहल की है। सरकार को इन्हें मान्यता देनी चाहिए। केवल पुरस्कारों से कुछ होने वाला नहीं हैं अपितु इनकी मेहनत के नवाचारों को विस्तारित किया जाना चाहिए। इसमें कोई दोराय नहीं कि सरकार पहले जांचें परखें पर जांच परख के बाद जब उपयोगी सिद्ध होती है तो फिर सरकार को ऐसे प्रयोगों को आगे बढ़ाना चाहिए। भले ही विश्वविद्यालयों में अन्य पीठों की तरह इस तरह की नवाचारी प्रयोगधर्मी भूमि पुत्रों के लिए भी पीठ की स्थापना कर आगे आ सकती है। कोरोना के बाद विश्व में नए हालात आए हैं जलवायु परिवर्तन और तापमान में बढ़ोतरी के कारण नई परिस्थितियां सामने आ रही है। विश्व में आसन्न खाद्यान्न संकट को लेकर चेताया जा रहा है। तब इस तरह की पहल की आवश्यकता और अधिक हो जाती है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)