Friday, November 22"खबर जो असर करे"

वैदिक अनुसंधान की आधुनिक प्रेरणा

– डॉ दिलीप अग्निहोत्री

भारत जब विश्वगुरु था, तब दुनिया में मानवीय सभ्यता का विकास नहीं हुआ था। लोग भारत में आकर ज्ञान प्राप्त करते थे। वर्तमान सरकार ने इस गौरव को शिक्षा नीति में स्थान दिया। इसके अनुरूप शिक्षा क्षेत्र में व्यापक सुधार हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे आत्मसात किया। अब राज्य में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक में व्यापक सुधार देखने को मिल रहे हैं। यही कारण है कि विदेशी अखबारों ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था के विषय में लिखा कि उत्तर प्रदेश की शिक्षा में क्रांतिकारी सुधार हो रहा है। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल का लखनऊ विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह का संदेश विद्यार्थियों को नई प्रेरणा देने वाला है। वह भारत की गौरवशाली विरासत पर गर्व करती हैं। वह कहती हैं कि ज्ञान और अनुसंधान के आधार पर ही भारत विश्व गुरु के पद पर प्रतिष्ठित था। नई शिक्षा नीति के माध्यम से भारत को फिर विश्व गुरु बनाना संभव होगा।

लखनऊ विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में राज्यपाल का संबोधन ऐतिहासिक रहा। उन्होंने कहा कि वैदिक काल से ही हमारे अनुसंधान अत्यंत समृद्ध थे। महर्षि भारद्वाज के विमान प्रौद्योगिकी पर किए गए शोध तो सदैव प्रेरणादायी हैं। उन्होंने कहा कि राइट ब्रदर्स द्वारा विमान के आविष्कार से आठ वर्ष पहले ही भारत में मुंबई की चौपाटी पर अठारह सौ फीट की ऊंचाई पर विमान का परीक्षण किया गया था। भारत में एक ही साथ जल, थल एवं नभ पर उड़ान भर सकने वाले विमान का निर्माण प्राचीन काल में ही किया जा चुका था, इसका वर्णन प्राचीन साहित्य में मिलता है। हमें इस बात का गौरव होना चाहिए।

खास बात यह है कि जलधारा अर्पण करके जल संरक्षण के संदेश के साथ विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह का शुभारम्भ किया गया। महत्वपूर्ण यह है कि लखनऊ विश्वविद्यालय को यूजीसी द्वारा एकेडमिक ऑटोनमी में ग्रेड वन का दर्जा दिया गया है। एनआईआरएफ में 200वीं रैंक मिली है। दरअसल भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति विदेशी छात्रों को भी भा रही है। भारत आज स्पेस, स्टार्टअप, ड्रोन, एनिमेशन,इलेक्ट्रिक व्हीकल, सेमीकंडक्टर जैसे कई सेक्टर में युवाओं के लिए नए अवसर तैयार कर रहा है।

कुलपति प्रो आलोक राय ने विश्वविद्यालय की प्रगति आख्या में कहा कि भारत में शिक्षा के महत्व की चर्चा बहुत प्राचीन और विश्व प्रसिद्ध है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने फिर से भारतीय मानस के अद्भुत योगदान की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया। भारत में शिक्षा के महत्व को सदैव स्वीकार किया गया है। हमारा मानना था कि शिक्षा मुक्तिदाता होनी चाहिए जो हमें सभी बंधनों से मुक्त कर दे। हम सभी अपने मूल सृजनात्मक शुद्ध स्वभाव से सत्यान्वेषी, सत्यनिष्ठ एवं सदाचारी बनें, ऐसी प्रार्थनाएं हमारे सभी गुरुकुलों में गूंजती रही हैं। अतीत के गौरव को याद करने का महत्व भविष्य में ऊर्जा प्रदान करने में सहायक बन सकता है जिसे हम अपने कार्यों और संकल्पों के माध्यम से उज्ज्वल बना सकते हैं।

पद्मश्री प्रो. बलराम भार्गव का विचार है कि यह समय हमारी आजादी का अमृत काल है। आज दुनिया में छह में से एक डॉक्टर भारतीय है। इसी तरह पूरी दुनिया में पांच में से एक नर्स भारतीय है। इस विश्वविद्यालय में आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में ऐसे महान विद्वान, वैज्ञानिक, लोक सेवक, सामाजिक कार्यकर्ता, विचारक और लेखक हैं। यह हम सबके लिए गर्व की बात है कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ। शंकर दयाल शर्मा भी यहीं के विद्वान विद्वान थे। विश्वविद्यालय का उद्देश्य शिक्षा, अनुसंधान और नवीन तरीकों के माध्यम से ज्ञान के प्रसार के लिए मानव संसाधन विकसित करना है।

भारत में 900 से अधिक विश्वविद्यालय और पचास हजार से अधिक उच्च शिक्षा संस्थान हैं। इनमें तीन करोड़ से अधिक विद्यार्थी हैं। भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। सबसे बड़ी ऊंचाई यह है कि इस समय भारत में करीब अस्सी हजार विदेशी छात्र हैं जबकि सात लाख भारतीय छात्र विदेश में पढ़ रहे हैं। एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज के अनुसार भारत में कई अंतरराष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित करने की जबरदस्त क्षमता है। राष्ट्रीय क्षमताओं और संसाधनों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)