Friday, September 20"खबर जो असर करे"

क्लास रूम तक ड्रग्स की दस्तक, शिक्षण संस्थाएं फिर भी चुप?

– डॉ. रमेश ठाकुर

ड्रग्स तस्करी में छात्रों की गिरफ्तारी ने ‘शिक्षा मंदिरों’ की विश्वसनीयता पर सीधे सवाल खड़े कर दिए हैं। एनसीआर क्षेत्र के विभिन्न नामी शिक्षण संस्थाओं में फैला ‘ड्रग्स का सिंडिकेट खेल, कोई आज का नहीं, बहुत पहले का है। कॉलेजों के भीतर छिटपुट घटनाएं पूर्व में भी बहुतेरी हुई जिसे कॉलेज प्रशासन द्वारा दबाया गया। कई बार क्लास रूम में छात्रों ने नशे में साथी क्लासमेट के साथ खूनी वारदात को भी अंजाम दिया, फिर भी कोई एक्शन नहीं लिया गया। इस पूरे खेल की जानकारियां शिक्षा संस्थाओं के टॉप मैनेजमेंट को बहुत पहले से थी। लेकिन, बदनामी का डर कहें, या शिक्षा की दुकानें बंद होने भय? इन दोनों के डर के चलते सच्चाई पर पर्दा डाला जाता रहा। स्थानीय पुलिस-प्रशासन के बड़े ओहदेदार अफसर इस बात को स्वीकारते हैं कि उन्हें पूरे तंत्र की जानकारियां मौखिक रूप से तो थी, लेकिन, ठोस सबूत और मुकम्मल सूचनाएं नहीं होने से कार्रवाई से वंचित थे। पर, बीते सोमवार यानी 27 नवंबर का दिन शायद मुकर्रर था जिसके बाद पूरा तंत्र एक्सपोज हुआ।

मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने कई ड्रग्स तस्करों के एक साथ नोएडा में दबोचा। लेकिन ये कार्रवाई अचंभित करने वाली रही। पुलिस भी दंग रह गई, जो तस्कर दबोचे गए इनमें ज्यादातर नोएडा के नामी शिक्षण संस्थानों के छात्र हैं। पूछताछ हुई तो प्रशासन के होथ ही उड़ गए। आरोपी छात्रों ने कबूला कि वो एक नहीं, बल्कि नोएडा के तकरीबन सभी प्रसिद्ध कॉलेजों में ड्रग्स की सप्लाई सालों से करते आए हैं। इस खेल में छात्र ही नहीं, हर क्षेत्र के लोग संलिप्त बताए जाते हैं। छात्र ड्रग्स की सप्लाई स्नैपचैट, टेलीग्राम, व्हाट्स ऐप व छोटा पार्सल के जरिए करते थे। उन्हें नशीला पदार्थ देता कौन था? उपलब्ध कहां से और कौन करवाता था? इसका भी उन्होंने खुलासा करके कइयों को नंगा कर दिया। सफेदपोश से लेकर इस खेल के तार विदेशों तक जुड़े हैं। जो गिरोह फिलहाल पकड़ा गया है उसका मुखिया मियां-बीवी बताए गए हैं। पति नोएडा में ही रहता है और उसकी बीवी विदेश में रहकर समुद्र के जरिए नोएडा में ड्रग्स भिजवाती थी। छात्र इस तंत्र में कैसे फंसे, इसका भी खुलासा हुआ है। दरअसल, ड्रग्स तस्कर अच्छे से जानते हैं कि छात्रों को लालच देकर आसानी से फंसाया जा सकता है। सबसे पहले उन्हें इसका सेवन करवाते थे। फिर ज्यादा कमाने की लालच देते थे।

कॉलेजों के अलावा छात्र नोएडा में कई सफेदपोशों, व्यापारियों, अधिकारियों आदि को भी उनकी डिमांड पर ड्रग्स मुहैया करवाते थे। ड्रग सिंडिकेट के इस तंत्र के एक्सपोज होने के बाद पेरेंट्स को होशियार होना होगा? अभिभावक अपने सपनों को सच करने के लिए अपनी कमाई का सारा हिस्सा पेट काटकर अपने बच्चों को नामी शिक्षण संस्थाओं में भेजते हैं। लेकिन उन्हें क्या पता, उनका बच्चा वहां पढ़ाई करता है या फिर कुछ और? नशा एक ऐसा चस्का है जो एक बार चख ले, फिर आसानी से नहीं छोड़ता। प्रत्यक्ष रूप से शिक्षण संस्थाओं को दोष इसलिए नहीं दे सकते, क्योंकि उन्हें तो शिक्षा के नाम से व्यापार करना होता है? उनके यहां आपका बच्चा नहीं पढ़ेगा, तो किसी दूसरे का पढ़ेगा? यहां जरूरी ये हो जाता है कि शिक्षण संस्थाओं के अलावा अभिभावकों को भी अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ बाकी अन्य गतिविधियों पर बराबर नजर बनाए रखनी की आवश्यकता है।

कुछ प्वाइंटों पर अभिभावकों को सतर्क होना पड़ेगा। जैसे, अगर बच्चों के हाथों में महंगे फोन्स, मार्डन इलेक्ट्रानिक्स गैजेट्स, पार्टी-फंक्शन में जाने वाले महंगे से महंगे कपड़े जब देखें, तो तंरत सावधान हो जाएं और बिना देर किए उनसे सवाल करके पूछना चाहिए कि ये सब कहां से आए? नामी शिक्षण संस्थाएं बेशक छात्रों को अपने यहां सभी सुविधाएं उपलब्ध क्यों न करवाते हो? बावजूद इसके अभिभावकों को समय निकालकर बच्चों के हॉस्टल जाकर उनकी तमाम गतिविधियों और सामानों की निगरानी करनी चाहिए। जरा भी शक हो, कॉलेज प्रबंधन को अवगत कराएं और हो सके तो मनोचिकित्सकों से अपने बच्चों की काउंसिलिंग भी करवाएं। नोएडा ड्रग्स तस्करी में जितने भी छात्र धरे गए हैं, अधिकांश गरीब और बेहद सामान्य घरों से ताल्लुक रखते हैं। पर, उनके शौक, महंगी गाड़ियां, फैशनेबल कपड़े, बड़े होटलों में रोजाना करते पार्टियों को देखकर कोई भी नहीं कह सकता था, ये मध्यम परिवारों के बच्चे हैं। मादक तस्करी में कूदे सभी छात्र जल्दी और ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना चाहते थे।

आधुनिकता की चकाचौंध ने यूनिवर्सिटीज के छात्रों को फैशन, टशन, हीरो जैसे दिखने और सहपाठियों से बेहतर करने की लालसा भरी प्रवृति ने जकड़ लिया है। ऐ ऐसे कुछ कारण हैं जिसके चलते छात्र नशे के आदी होते जा रहे हैं। दरकार यही है कि समय रहते छात्रों को इन आफतों से बचाया जाए। उन्हें ऐसे चक्रव्यूहों से निकालने की जिम्मेदारी सिर्फ कॉलेज प्रबंधकों पर नहीं होनी चाहिए, बल्कि अभिभावकों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। नोएडा की धरपकड़ में जो सरगना पकड़ा गया है, वो स्नातक पास छात्र है, जो शुरू से नशे का आदी रहा। इससे साफ अनुमान लगा सकते हैं कि कॉलेजों में ड्रग्स का धंधा कब से जारी था। कॉलेज-प्रशासन सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने थे। उनको पता था अगर ड्रग्स को लेकर बदनामी एक बार हो गई? तो उनके व्यवसाय पर ताले पड़ जाएंगे। अगले सेशन में नए छात्र भी दाखिला नहीं लेंगे। वैसे, देखा जाए तो बात सिर्फ नोएडा के बड़े शैक्षिक संस्थान की ही नहीं? सूचनाएं ऐसी भी हैं कि देश के बाकी शिक्षण संस्थाएं भी सुरक्षित नहीं? शैक्षिक संस्थानों के छात्र-छात्राओं में तेजी से पनपते नशीले मादक पदार्थ रैकेट का अब पर्दाफाश होना ही चाहिए। केंद्र व राज्य सरकारों को भी स्नैपचैट, टेलीग्राम व व्हाट्स ऐप के माध्यम से उपलब्ध करवाने वाले तस्करों पर तगड़ी चोट मारनी होगी। मादक तस्करी का धंधा ज्यादातर ई-कॉमर्स कंपनियां के जरिए ही होता है। इन पर भी बंदिशों की दरकार है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)