रतलाम। एक समय था जब रतलाम जयंत विटामिन्स, सज्जन मिल जैसे उद्योगों के कारण पहचाना जाता था और इन जैसे उद्योगों के कारण देश ही नहीं विदेशों में भी रतलाम का नाम मशहूर था। वर्तमान में कहा जाता है सोना-साड़ी और सेव जबकि साड़ी से रतलाम का कोई लेना-देना नहीं है। यहां साड़ी नहीं बनती बल्कि लाकर बेची जाती है। सज्जन मिल का कपड़ा भले ही मशहूर था, जिसे सोना, सेव के साथ जोड़ा जाता था। पहले जब भी कोई रतलाम आता तो रतलाम रेलवे स्टेशन के पहले से सारे शहर के उद्योगों की चिमनी से धुआं निकलता दिखाई देता था,लेकिन अब केवल चिमनी दिखाई देते ही धुआ गायब हो गया।
इस रतलाम शहर के हजारों मजदूर आज बैकार है। कारखानों की चिमनी से धुआ निकलना आज बंद हो गया है। सज्जन मिल बंद हुआ, जयंत विटामिन्स बंद हुआ, सज्जन केमिकल, मोहता,माडेला और फरफेक्ट पाटरीज,अल्कोहल प्लांट जैसे दर्जनों कारखानें बंद हो गए। इसे शासन की नीति कहे या मिल मालिकों की बदनियती जिनके कारण हजारों श्रमिक बैरोजगार हो गए।
मजदूरों के शोषण की लम्बी दास्तान है
जो उद्योग वर्तमान में चल रहे है वे ठेकेदारी प्रथा पर चल रहे है और मनमाने तरीके से चलाए जा रहे है। जहां मजदूरों के शोषण की लम्बी दास्तांन है। मजदूरों को वेतन भी बराबर नहीं मिलता और काम अधिक लिया जाता है। ठेकेदारी प्रथा पर चलने वाले यह उद्योग मजदूरों का शोषण तो करते ही है स्वयं रातोरात करोड़ पति बन गए है, जिनकी निगरानी और पकड़ करने वाला कोई नहीं है।
सज्जन मिल और जेवीएल मजदूरों का काफी बकाया
सज्जन मिल और जयंत विटामिन्स के मजदूरों का काफी पैसा अभी भी प्रबंधन में बकाया है जिनके प्रकरण न्यायालय में चल रहे है। मिल मजदूरों की कमाई से बने मंदिर और मंदिर के ट्रस्ट अभी भी है, जो उनके पुरखों के नाम पर बने हुए है।
सरकार बंद उद्योगों को चालू करवाती
कई बार मांग उठी की सरकार नए उद्योग तो स्थापित नहीं कर पा रही है। यदि पुराने बंद उद्योगों को सरकार मदद देकर या सहकारिता के आधार पर चलवाती तो आज कई कारखाने पुनर्जीवित हो जाते और श्रमिकों को रोजगार मिल जाता। करोड़ों की मशीनें इन कारखानों की दीवारों के अंदर बंद है। कुछ मशीनें तो मिल मालिक ले गए और कुछ को मजदूरों ने ले जाने नहीं दिया।
केवल सपना दिखाया
बैरोजगार और लाचार मजदूरों की थाह लेने वाला आज कोई नजर नहीं आता। सरकारें बदलती रही, मुख्यमंत्री बदलते रहे, नेता बदलते रहे लेकिन बैरोजगार श्रमिकों को रोजगार देने की चिंता किसी ने नहीं की। केवल ज्ञापन, अभिनंदन और स्वागत के भरोसे हमारे कर्णधार जनता-जनार्दन और बैरोजगार मजदूरों को सपना दिखाते रहे है। यही नियती इस शहर की बन गई है।
सभी दलों की सरकारें रही
पहले देश-प्रदेश में कांग्रेस की सरकारें थी, फिर केंद्र में कांग्रेस और प्रदेश में भाजपा की सरकार आई। फिर केंद्र व प्रदेश में भाजपा की सरकारें आई, लेकिन बंद कारखानों के श्रमिकों को न्याय दिलाने की बात कही लेकिन इन सरकारों ने आज तक श्रमिकों के साथ कोई न्याय नहीं किया। कारखाने तो चालू नहीं हो पाए लेकिन कारखानों की संपत्ति बेचकर श्रमिकों को बकाया राशि देने के आश्वासन दिए गए लेकिन आज दिनांक तक इन मजदूरों की बकाया राशि नहीं मिल पाई और ना ही मजदूरों को वैकल्पिक रोजगार देने का वादा पूरा किया गया।
सज्जन मिल का कपड़ा विदेेश तक फैमस था
सज्जन मिल जो देशभर में कपड़े बनाने की मशहूर मिल थी यहां का पर्दे का कपड़ा देश नहीं विदेश में भी प्रसिद्ध था। श्रमिकों का करोड़ों रुपया बकाया छोडक़र पता नहीं क्या कारण रहा कि मिल मालिक मिल बंद करकर चले गए। बाद में मिल की संपत्ति व जमीन कोडिय़ों के भाव बैच दी गई है। कहते है कि इसमें भी अधिकारी और नेताओं की मिलीभगत थी, जिस कारण सस्ते दरों पर जमीने बिक गई। कई नेताओं ने सज्जन मिल के जमीनों को बेचने की सीबीआई जांच की मांग की थी, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ। भूमाफियाओं ने करोडों की जमीन खरीदकर अच्छा मुनाफा प्राप्त कर बेच दी और आज सज्जनमिल की जमीन पर कई बड़े-बड़े भवन लोगों ने बना लिए और जिनके खून-पसीने से सज्जनमिल की पूंजी में वृद्धि हुई थी वह मजदूर आज भी फटे हाल जी रहे है। कई श्रमिक भूखमरी का शिकार होकर इस दुनिया से अलविदा कर गए।
न्यायालय के भरोसे है श्रमिक
मिल को लेकर न्यायालय में प्रकरण चल रहे है। मिल श्रमिक कर्मचारी परिवार इस उम्मीद में है कि उनकी बकाया राशि कभी तो मिलेगी। इसी इंतजार में कई श्रमिक कर्मचारी समय से पहले मौत के आगोश में चल गए और कई तो जवानी में वृद्ध दिखने लगे है। इनके परिवार की दशा अब क्या होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
देशभर में प्रसिद्ध है मांगल्य मंदिर
यही हाल जयंत विटामिन्स जैसी दवाई बनाने वाली प्रसिद्ध कंपनी का है। इस पर भी करोड़ों रुपये का कर्ज है। सैकड़ों बीघा जमीन इस फेक्ट्री की है। मांगल्य मंदिर भी जयंत विटामिन्स परिसर में बना है, जिस पर आसाराम बापू का आधिपत्य बताया जाता है। यह मंदिर भी भारतभर में प्रसिद्ध रहा। इसका मामला भी न्यायालय में चल रहा है। कारखाना मालिक इतना होशियार था कि उसने कारखाना तो रतलाम में डाला लेकिन सारे अधिकार अपने पास रखते हुए कार्यालय मुंबई में स्थानांतरित करवा लिया, जिसके सारे प्रकरण मुंबई के विभिन्न न्यायालयों तथा मध्यप्रदेश के न्यायालयों में अभी भी झुल रहे है और फेक्ट्री की जमीन भी कोडिय़ों के दाम पर बेच दी गई या बिक गई।
मजदूर आंदोलन भी थक गया
मजदूर आंदोलन अपने हकों के लिए लड़ते-लड़ते थक गया । न आर्थिक सहयोग मिल पाया और ना ही राजनीतिक मदद मिल पाई। राजनीतिक दांव पेंच में उलझा सारा मामला श्रमिकों को न्याय नहीं दिला पाया।
पता नहीं इस शहर को किसकी नजर लग गई ?
यहीं स्थिति अन्य उद्योगों की है जो मिल मालिकों की बदनियती से कहे या सरकार की दोषपूर्ण नीति या रा-मटेरियल की कमी से बंद हो गए। जिनका क्या हुआ आज तक पता नहीं लगा? लेकिन उन उद्योगों के श्रमिक भी बैरोजगारी के शिकार हो गए। रतलाम ऐसा शहर है जहां हर सुविधा है, जो उद्योगपति की आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है। यदि कोई कारखाना रतलाम में स्थापित होता है तो बैरोजगार श्रमिकों और युवाओं को रोजगार मिल सकता है, लेकिन राजनैतिक उठापठक के कारण कोई उद्योग यहां स्थापित नहीं हो रहा है और ना ही सामुहिक रुप से उद्योग स्थापना के कोई प्रयास हो रहे है। केवल एक-दूसरे को नीचा दिखाना, आरोप-प्रत्यारोप लगाना ही इस शहर की नियती बन गई है। पता नहीं इस शहर को किसकी नजर लग गई है जो हर क्षेत्र में पिछड़ता ही जा रहा है। प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री ने विकास की गंगा बहाने का हर संभव प्रयास किया। अनेक क्षेत्रों में काम भी हुए लेकिन औद्योगिक विकास की दृष्टि से यह शहर लगातार पिछड़ा ही रहा और पिछड़ता ही जा रहा है।