Friday, November 22"खबर जो असर करे"

प्रदूषण से मुक्ति के लिए गंभीरता की दरकार

– डॉ. अनिल कुमार निगम

दिल्ली और एनसीआर की हवा में एक बार फिर जहर घुल गया है। दीपोत्सव का त्योहार अभी दूर है लेकिन देश की राजधानी की हवा की गुणवत्ता का इंडेक्स (एक्यूआई) 300 के पार चला गया है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। हर वर्ष प्रदूषण का कारण दिवाली में आतिशबाजी से होने वाले प्रदूषण, पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जलाई जाने वाली पराली को मानकर कुछ चंद उपाय कर लोगों को प्रदूषण के दंश को झेलने के लिए छोड़ दिया जाता है। पिछले लगभग एक दशक में अक्टूबर से जनवरी के बीच हर साल यह समस्या गहरा जाती है। दिल्ली सरकार भी ‘जब आग लगे तो खोदो कुआं’ वाली कहावत चरितार्थ करते हुए प्रदूषण कम करने के चंद उपाय करती है जिससे कुछ तात्कालिक राहत भी मिल जाती है, लेकिन इस समस्या का स्थायी समाधान निकाले जाने के बारे में गंभीर प्रयास देखने को नहीं मिलते।

प्रदूषण की गंभीरता को यहां से समझना चाहिए कि अक्टूबर आते ही सांस और दमा के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। इसीलिए उच्चतम न्यायालय ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) से दिल्ली और उसके आसपास वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर रिपोर्ट मांगी है।

दिल्ली-एनसीआर में हर साल अक्टूबर से नवंबर में प्रदूषण स्तर बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। प्रदूषण बढ़ने का प्रमुख कारण सर्दियों में हवा का घनत्व बढ़ना और तापमान का गिरना है। इसके चलते प्रदूषण नीचे ही रह जाता है और स्मॉग के तौर पर दिखता है। यही स्मॉग कोहरे के साथ मिलकर प्रदूषण और तरह-तरह की गैस एक घातक मिश्रण को जन्म देती है। सर्दियों में हवा भी काफी कम चलती है, ऐसे में प्रदूषण लगातार बढ़ता रहता है। गर्मियों में तापमान अधिक होने से हवा में घनत्व काफी कम हो जाता है और प्रदूषण आसानी से छंट जाता है।

दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण बढ़ने के अन्य कारण भी हैं। दिल्ली की आबादी पिछले एक दशक में बहुत तेजी से बढ़ी है। यहां की आबादी 3 करोड़ से अधिक हो चुकी है। इसी तरह एनसीआर की आबादी लगभग साढ़े 4 करोड़ से अधिक है। आबादी का ग्रोथ रेट काफी अधिक है। आबादी बढ़ने के साथ ही दिल्ली एवं एनसीआर में वाहनों का दबाव भी तेजी से बढ़ा रहा है। दिल्ली का विश्व में सबसे अधिक वाहनों वाला शहर माना जाता है। यहां के निवासी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का इस्तेमाल करने की जगह निजी वाहनों का प्रयोग अधिक करते हैं। विकास के नाम पर दिल्ली एवं एनसीआर में निर्माण कार्य भी बेतरतीब तरीके से होता रहता है। इससे धूल के कण हवा में जहर घोलने का काम करते हैं।

इसके अलावा खेतों में पराली जलना भी प्रदूषण का बड़ा कारण है। हरियाणा और पंजाब समेत कई राज्यों में किसान इन महीनों में पराली जलाते हैं, जिससे स्मॉग की समस्या बढ़ जाती है। प्रदेश सरकारें आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकाल सकी हैं। सरकारें किसानों को यह चेतावनी देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती हैं कि अगर किसानों ने पराली जलाई तो उनको जुर्माना देना होगा, लेकिन सरकारें भी यह बात अच्छी तरीके से जानती हैं कि किसान के पास पराली को डिस्पोज करने का कोई विकल्प नहीं है। पराली का डिस्पोजल इतना महंगा है कि किसान सरकार के सहयोग के बिना उसे कर ही नहीं सकते है।

दिल्ली में हवा अत्यधिक खराब होने के कारण वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने अधिकारियों को ग्रेडेड रिस्पांस के चरण दो को लागू करने का निर्देश दिया है। ग्रेप-2 के नियमों के तहत केंद्र सरकार दिल्ली और एनसीआर में पार्किंग शुल्क बढ़ा देगी, जिससे पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जाए। सरकार मेट्रो और इलेक्ट्रिक बसों के फेरे भी बढ़ाएगी। इसके अलावा सड़कों पर रेस्ट्रोरेंट में कोयले के इस्तेमाल पर प्रतिबंध, धूल के कणों को कम करने के लिए पानी के छिड़काव करने के भी निर्देश दिए गए हैं।

इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने भी वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) से दिल्ली और उसके आसपास वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर रिपोर्ट मांगी है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने प्रदूषण के मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह की सर्दियों के दौरान वायु प्रदूषण की समस्या और फसल अवशेष जलाने के बारे में दी गई दलीलों का संज्ञान लिया। अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को होनी है।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह सभी प्रयास अक्टूबर और नवंबर महीने में ही क्यों किए जाते हैं? क्या इस जहरीली हवा से लोगों को निजात दिलाने के लिए स्थायी प्रयास नहीं किए जा सकते? सवाल यह भी है कि क्या सभी प्रयास सरकारों को ही करने होंगे? वास्तविकता यह है कि सुरसा की मुंह की तरह बड़ी होती इस समस्या के स्थायी निवारण के लिए दिल्ली-एनसीआर बोर्ड को स्वायत्त बना कर उसे निर्णय लेने की शक्तियों से संपन्न बनाना होगा। बोर्ड को दीर्घकालीन योजना बनाकर लोगों को इस संकट से मुक्ति दिलानी होगी। लेकिन यह कार्य अकेले एनसीआर बोर्ड नहीं कर सकता। इसके लिए दिल्ली एनसीआर में रहने वाले नागरिकों को अपने कर्तव्य को समझना होगा। उन्हें वह हर काम करना होगा अथवा उसमें सहयोग करना होगा जिससे वायु प्रदूषण को कम किया जा सके और लोग खुली हवा में सांस ले सकें।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)