Friday, November 22"खबर जो असर करे"

विधानसभा चुनावों की तपन और रुख बदलती सियासी पवन

– ऋतुपर्ण दवे

पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे के बाद कांग्रेस और भाजपा में जिस तरह से उठापटक का नजारा दिख रहा है वो नया नहीं है। लेकिन नवंबर-2023 में होने जा रहे पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव जरूर तमाम रणनीतिक गतिविधियों के चलते अलग नजर आ रहे हैं। जिस रास्ते भाजपा और काँग्रेस चल रही है वह खुद बड़ा संकेत है। भाजपा ने भले मध्य प्रदेश से बेहद पुरानी शुरुआत को नए लिबास में कर तीनों अहम हिन्दी पट्टी राज्यों में भी प्रयोग दोहरा, मौजूदा सांसदों या केन्द्रीय मंत्रियों को जंग में उतार तमाम दिग्गजों सहित खुद भाजपाइयों को अचरज में डाल दिया। इसकी खबर प्रत्याशी के सिवाय किसी को कानों कान नहीं थी। इसी तरह काँग्रेस ने भी भाजपा से आए लोगों को टिकट देने में गुरेज न कर बड़ा दाँव खेला है। अब दोनों ही दल कार्यकर्ताओं के विरोध को झेल रहे हैं। लेकिन आखिर में हमेशा की तरह सब ठीक हो जाएगा।

ऐसा लगता है कि भाजपा ने अपनी महीन चुनावी रणनीति के तहत सांसदों व मंत्रियों को मैदान में उतारा है। यह बहुत सोची, समझी, सधी हुई चाल है जिसमें एक साथ कई-कई संदेश छिपे हैं। परिस्थितियों वश भाजपा किसे आगे करे, किसे मुखौटा बनाए के बजाए सबको आपस में उलझाए रखने जैसी रणनीति अपना रही है जो कहीं न कहीं छिपा डैमेज कंट्रोल तो नहीं? मध्य प्रदेश में भाजपा उदारवादी मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज का चेहरा सामने रखने में सत्ता विरोधी लहर और दूसरे अन्दरूनी डर से भले डरी हो लेकिन काँग्रेस अभी भी संगठनात्मक रूप से यहाँ उतनी मजबूत नहीं हो पाई है जो होना था। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार, संगठन व लोकप्रियता में भाजपा को जरूर बड़ी चुनौती नजर आ रहे हैं।

राजस्थान में विजयाराजे सिंधिया के वजूद और सचिन पायलट की हां-ना के बीच पशोपेश की स्थिति से लगता है कि वहाँ भी दोनों दलों में आंतरिक चुनौतियां कम नहीं हैं। राजस्थान में कांग्रेस से ज्यादा चुनौती भाजपा में हैं। हाल ही में सचिन पायलट कई बार कह चुके हैं कि 5 साल में सरकार बदलने का रिवाज अब टूटेगा। छत्तीसगढ़ में सत्ता विरोधी लहर जैसा कुछ समझ तो नहीं आ रहा है। हो सकता है कि यहां काँग्रेस 2018 के मुकाबले और सुधार करे। यहां भी भाजपा ने कई मौजूदा सांसदों और केन्द्रीय मंत्रियों को विधानसभा टिकट देकर जो प्रयोग किया है उसके नतीजों पर सबकी निगाहें होंगी। तेलंगाना में मुख्य मुकाबला बीआरएस, कांग्रेस और भाजपा के बीच है। टीडीपी और एआईएमआईएम भी ताल ठोक रही है। मिजोरम में मुकाबला एमएनएफ, जेडपीएम, कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होगा।

टिकट वितरण में बड़े चेहरों पर ज्यादा भरोसा दिखाने के साथ दूसरे दलों से आकर टिकट हथियाने वालों से साधारण कार्यकर्ताओं में भले ही जबरदस्त असंतोष दिखे। लेकिन इससे हवा के रुख पर फर्क जरूर दिख रहा है। भाजपा और काँग्रेस प्रत्याशियों की घोषणा के बाद कम से कम हिन्दी पट्टी क्षेत्रों में स्थिति टिकट वितरण के पहले और अब काफी बदली हुई लग रही है। विरोध के स्वर और नेताओं के उवाच लोगों को हैरान कर रहे हैं। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की कथित मीठी नोंक-झोंक जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है उसे मप्र में अलग नजरिए से देखा जा रहा है। भाजपा कार्यकर्ताओं में भी पैराशूट खासकर कांग्रेस से आए प्रत्याशियों को लेकर भीतर ही भीतर सुलग रही अंतर्विरोध की आग बुझेगी या बढ़ेगी इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा। मध्य प्रदेश में कई सीटों पर बसपा, सपा और आप की मौजूदगी भाजपा से ज्यादा काँग्रेस के लिए बड़ी चुनौती जरूर बनती दिख रही है। ये तीनों ही दल ज्यादातर काँग्रेस के वोट बैंक को ही चोट पहुंचाते नजर आ रहे हैं।

चुनावी रण में किसका पलड़ा ज्यादा भारी है कहना अभी जल्दबाजी होगी। टिकटों खुलासे से पहले जहां हवा का रुख कुछ अलग था वो अब अलग है। पहले मप्र व राजस्थान में कांग्रेस खेमा सत्ता के सिंहासन को बेहद भरोसे से करीब देख रहा था। लेकिन अब अंदरूनी तौर पर थोड़ा सशंकित है। हवा कुछ प्रदूषित सी लगने लगी है। पहले घर बैठे जीत का मन बना चुके प्रत्याशी भी कार्यकर्ताओं के घरों पर याचक बन दस्तक देते नजर आ रहे हैं। वहीं भाजपा भी अपने तमाम कार्यकर्ताओं से लेकर, पन्ना प्रमुख, वार्ड प्रभारी, बूथ कार्यकर्ताओं, सेक्टर प्रभारियों की सूची को बार-बार क्लिक करते दिख रही है। काँग्रेस के पास अपने पुराने बरसों पुराने कार्यकर्ताओं का ही भरोसा है। इन्हीं के दम पर बीते बरस स्थानीय निकाय के चुनाव के दौरान भी काँग्रेस ने खासा दमखम दिखाया था। कहीं जीतकर भी हारे तो कहीं हारकर भी जीते जैसी स्थितियों से काफी हंसी हुई थी। इन्हीं उधेड़बुन के बीच जो तस्वीरें मध्यप्रदेश से आ रही हैं वो काफी चौंकाने वाली हैं।

कमलनाथ के घर के सामने आत्मदाह की कोशिश तो पंगत बिठा सार्वजनिक भोज कराने का अलग नजारा रहा। सेवड़ा, जावरा, मलहरा, डॅा.आंबेडकर नगर(महू), खरगापुर, निवाड़ी, सोहागपुर, शुजालपुर, गोविंदपुरा, बैरसिया, बड़नगर, खातेगांव, गोटेगांव सहित कुछ अन्य सीटों के प्रत्याशियों का जमकर विरोध हो रहा है। वहीं भोपाल, ग्वालियर जबलपुर, भिंड, मुरैना, बुरहानपुर, टीकमगढ़, सिंगरौली सहित कई अन्य जगह भाजपा कार्यकर्ताओं का गुस्सा क्या रंग दिखाएगा देखना होगा। सतना, रीवा, उचेहरा, मैहर में बयार उल्टी बहती दिख रही है। प्रदेश के उत्तर-पूर्व में स्थित शहडोल संभाग जो नर्मदा-सोन, बांधवगढ़, विराट मंदिर से अपनी अलग पहचान रखने के बावजूद दुर्भाग्यवश देश भर में नाम बदलने के दौर के बावजूद ऐतिहासिक, धार्मिक और पुरातात्विक नामों से नहीं जाना जा सका, बंटा-बंटा सा दिख रहा है। कोतमा और जयसिंहनगर के परिणाम चौंका सकते हैं तो अनूपपुर और मानपुर के नतीजे रोचक हो सकते हैं। जयसिंहनगर और पुष्पराजगढ़ का दांव भाजपा का अपना है।

मध्य प्रदेश में वायदों की लड़ी और हर रोज खातों को टटोलती बहनों का रुख तो काँग्रेस के वचनपत्र के अंतर्द्वन्द में फंसे मतदाताओं की राय बंटी-बंटी सी है। कमोबेश राजस्थान में भी भाजपा का प्रचार कांग्रेस के लिए चुनौती जैसा है। यहाँ भी गुटबाजी के चलते स्थिति थोड़ी घुमावदार है। इधर, शिवराज सिंह चौहान के ताबड़तोड़ दौरों में पहले के मुकाबले आई कमी के मायने चाहे जो हों लेकिन मैदान में वो समूचे विपक्ष के लिए प्रधानमंत्री के चेहरे के बाद दूसरी सबसे बड़ी चुनौती जरूर हैं। यदि काँग्रेस महीने भर पहले ही प्रत्याशियों की घोषणा कर देती तो नजारे आज दिख रहे हैं, वो नहीं दिखते।

इन चुनावों में छत्तीसगढ़ को लेकर ज्यादा हाय-तौबा जैसा कुछ दिखता नहीं है। वहां पर अमित शाह पूरी तरह से निगाह जमाए हुए हैं। लेकिन भाजपा कितना अच्छा कर पाएगी सबकी निगाहें इसी पर है। भूपेश बघेल ने जिस तरीके से सत्ता, संगठन में मजबूत पकड़ के साथ मतदाताओं से कनेक्शन जोड़ रखा है उसका उन्हें क्या फल मिलेगा इस पर किसी को संदेह ज्यादा नहीं है। गाय-गोबर से लेकर किसान व दूर-दराज से सीधा कनेक्शन की मजबूती से काँग्रेस आश्वस्त दिखती है। लेकिन भाजपा भी अपनी लड़ाई में कोई कमी नहीं छोड़ काँग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बनने में कोई कमी नहीं कर रही है।

हिन्दी पट्टी राज्यों के इन अहम विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दिग्गजों को प्रचार के मैदान में उतारा है जिनमें नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, नितिन गडकरी, जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी सहित दिग्गजों की बड़ी फौज है। वहीं काँग्रेस राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी, मल्लिकार्जुन खरगे, कमलनाथ, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, रणदीप सुरजेवाला सहित कई नए नामों को प्रचार में झोंक सकती है। फिलहाल जोड़-तोड़, आयाराम-गयाराम, जुबानी जंग में आदर्श आचार संहिता की नकेल के बीच पाँचों राज्य धीरे-धीरे पूरी तरह से चुनावी मोड में जाते जा रहे हैं। नतीजों को लेकर गुलाबी ठण्ड के बीच बहती पुरवा और पछुवा हवा किसको फायदा किसको नुकसान पहुंचाएगी, इसके लिए 3 दिसंबर तक इंतजार करना होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)