– डॉ. श्रीगोपाल नारसन
नेपाल में धरती से पांच किलोमीटर नीचे भूकंप के केंद्र बिंदु ने तीन अक्टूबर की दोपहर 2 बजकर 51 मिनट पर पहले 4.6 तीव्रता व एक मिनट के ही अंतराल में 6.2 तीव्रता ने सबको हिलाकर रख दिया। सम्पूर्ण नेपाल और उत्तर भारत में जयपुर, दिल्ली, लखनऊ, देहरादून आदि क्षेत्रों में धरती डोलती रही। लोग घर, दफ्तर और दुकानों से बाहर निकल आए। भूकंप के इन शक्तिशाली झटकों से लोग अभी दहशत में है। बीते साल भी 8 और 9 नवंबर की रात 1:57 बजे आए भूकंप का मैग्नीट्यूड 6.3 था और इसका असर भारत के अलावा नेपाल और चीन में भी देखा गया। भूकंप का केंद्र तब भी नेपाल था। दिल्ली के साथ ही नोएडा और गुरुग्राम में भी कई सेकंड धरती डोलती रही।
ऐसा पृथ्वी के स्थल मंडल में ऊर्जा के अचानक मुक्त हो जाने के कारण उत्पन्न होने वाली तरंगों की वजह से होता है। भूकंप कभी इतने विनाशकारी होते हैं कि शहर के शहर जमींदोज हो जाते हैं। भूकंप का मापन भूकंपमापी यंत्र से किया जाता है। इसे सीस्मोग्राफ कहते है। तीन या उस से कम रिक्टर परिमाण की तीव्रता का भूकंप अक्सर अगोचर होता है, जबकि 7 रिक्टर की तीव्रता का भूकंप बड़े क्षेत्रों में गंभीर क्षति का कारण बन जाता है। भूकंप के झटकों की तीव्रता का मापन मरकैली पैमाने पर किया जाता है। पृथ्वी की सतह पर भूकंप भूमि को हिलाकर या विस्थापित कर प्रभाव डालता है। जब कोई बड़ा भूकंप उपरिकेंद्र अपतटीय स्थिति में होता है तो यह समुद्र के किनारे पर पर्याप्त मात्रा में विस्थापन का कारण बनता है।
भूकंप के झटके कभी-कभी भूस्खलन और ज्वालामुखी फटने का भी कारण बनते हैं। भूकंप अकसर भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं। 2021 में 11 सितंबर को जोशीमठ से 31 किलोमीटर पश्चिम-दक्षिण में सुबह 5:58 बजे भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। इस भूकंप की रिक्टर स्केल पर तीव्रता 4.6 थी। उत्तराखंड में इस भूकंप का प्रभाव चमोली, पौड़ी, अल्मोड़ा आदि जिलों में था । इससे पूर्व 24 जुलाई, 2021 को उत्तरकाशी से 23 किलोमीटर दूर करीब 1 बजकर 28 मिनट पर भूकंप आया था। इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 3.4 मापी गई थी। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी के साथ डुंडा, मनेरी, मानपुर, चिन्यालीसौड़, बड़कोट, पुरोला व मोरी में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए थे।
हरिद्वार जिले में वर्ष 2020 में एक दिसम्बर को नौ बजकर 42 मिनट पर भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 3.9 मैग्नीट्यड मापी गई थी, जिसकी गहराई लगभग 10 किलोमीटर तक थी। इस भूकंप से कोई क्षति तो नहीं हुई थी। लेकिन इसे भविष्य में किसी बड़े भूकंप का संकेत अवश्य माना गया था। उत्तराखंड भूकंप के दृष्टि से अति संवेदनशील है। यहां सालभर भूगर्भीय हलचल होती रहती है। 25 अगस्त, 2020 को भी उत्तरकाशी में भूकंप आया था। भूकंप का केंद्र टिहरी गढ़वाल था। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 3.4 मापी गई थी। इससे पहले चमोली और रुद्रप्रयाग जिलों में 21 अप्रैल, 2020 को भूकंप के झटके महसूस हुए थे। इसका केंद्र चमोली जिले में था। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 3.3 थी। देवभूमि उत्तराखंड से लेकर गुजरात तक भूकंप का खतरा लगातार बना हुआ है।
14 जून, 2020 की शाम गुजरात के भचाऊ, राजकोट और अहमदाबाद में 5.5 तीव्रता के भूकंप ने सबकी नींद उड़ा दी थी। 2015 में नेपाल में आए भूकंप ने भारी तबाही मचाई थी। नेपाल और उत्तर भारत में ढाई हजार से अधिक लोग काल कलवित हो गए थे। इसकी तीव्रता उस समय सात दशमलव नौ से अधिक थी। यह हिरोशिमा बम विस्फोट से पांच सौ चार गुना ताकतवर था। इससे उत्तराखंड में भी दहशत फैल गई थी। हिरोशिमा बम विस्फोट से साढ़े 12 किलोटन ऑफ टीएनटी एनर्जी रिलीज हुई थी जबकि इस भूकंप से 79 लाख टन ऑफ टीएनटी एनर्जी रिलीज हुई।
उत्तराखंड भूकंप की त्रासदी झेल चुका है। उत्तरकाशी, पिथौरागढ़,अल्मोड़ा, द्वारहाट, चमोली जिले भूकंप के निशाने पर है। दरअसल उत्तराखंड भूकंप के मुहाने पर खड़ा है, यहां कभी भी भूकंप से धरती डोल सकती है। इससे उत्तराखंड कभी भी तबाह हो सकता है। अपनी भौगोलिक परिस्थिति के कारण बादल फटने, जल प्रलय और भूस्खलन के कारण हजारों मौतों के साथ ही मकानों तथा खेत-खलिहानों के नष्ट होने का कारण बनता रहा है। भू-वैज्ञानिको की माने तो उत्तराखंड कभी भी भूकंप आपदा से प्रभावित हो सकता है। भूकंप का सबसे बडा खतरा टिहरी बांध से है। अगर कभी इतनी तीव्रता का भूकंप आया तो उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की बात छोड़िए, दिल्ली तक नहीं बच पाएगी।
उत्तराखंड में हर 11 साल के अंतराल पर एक बड़ा भूकंप आता है। इस अंतराल के हिसाब से उत्तराखंड में बडा भूकंप आना सम्भावित है। इसका संकेत हाल का भूकंप हो सकता है। इसके लिए सावधानी ही बचाव सबसे बड़ा फार्मूला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पशु-पक्षियों के व्यवहार में बदलाव से भूकंप का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है । फिर भी कोई सटीक ऐसा पैमाना नहीं है जिससे भूकंप का पहले से पता लगाया जा सकता हो। फिरभी अगर भूकंपरोधी भवन हो और भूकंप आने पर बचाव के उपाय जनसामान्य जान जाए तो भूकंप से होने वाले जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकता है। भूकंप को लेकर दुनिया के कई देशों में शोधकार्य चल रहे हैं। आईआईटी रुड़की के भूकंप अभियान्त्रिकी विभाग एवं भूविज्ञान विभाग में भी भूकंप पूर्वानुमान पर काम किया जा रहा है। भूकंप पर शोध कार्य कर रहे प्रोफेसर डॉ. दयाशंकर का कहना है कि कुछ पैरामीटर और प्रीकर्सर के आधार पर भूकंप की भविष्यवाणी की जा सकती है। शार्ट टाइम पीरियड व लांग टाइम पीरियड पर आए भूकंप आकंडों का अध्ययन करके भूकंप की यह भविष्यवाणी तक की जा सकती है कि किस क्षेत्र में किस मैग्नीटयूड का भूकंप आ सकता है। साथ ही भूगर्भ व वातावरण में होने वाले परिवर्तन भी भूकंप की भविष्यवाणी का आधार बनते हैं।
भूकंप वैज्ञानिक डॉ. दयाशंकर के मुताबिक 40 से 60 ऐसे पैरामीटर हैं जिनके अध्ययन के आधार पर भूकंप की भविष्यवाणी सम्भव बताई गई है। एक अन्य वैज्ञानिक एके सर्राफ का अध्ययन है कि जिस स्थान पर भूकंप आता है, प्रायः वहां के तापमान में वृद्धि हो जाती है। यानी अगर कहीं तापमान अचानक बढ़ने लगे तो यह भूकंप आने का संकेत हो सकता है। चीन भूकंप की भविष्यवाणी में सबसे आगे है। चीन ने वर्ष 1975 में 4 फरवरी को आए भूकंप की पूर्व में ही भविष्यवाणी कर दी थी। इस वजह से 7.3 मैग्नीटयूड के विनाशकारी भूकंप से सब लोग पहले ही सचेत हो गए थे और भूकंप से होने वाले जन नुकसान को कम कर लिया गया था।
भूकंप वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालयी क्षेत्र में पहले से ही तीन बड़ी भूकंपीय दरारें सक्रिय हैं जिनमें मेन बाउंडरी थ्रस्ट समूचे उत्तराखंड को प्रभावित करती है। साथ ही इसका प्रभाव हिमाचल प्रदेश से लेकर कश्मीर तक और फिर पाकिस्तान तक पड़ता है। वही मेन सेंट्रल थ्रस्ट भारत-नेपाल बार्डर के निकट धारचूला से कश्मीर तक अपना प्रभाव बनाती है। इस थ्रस्ट की चपेट में हिमाचल प्रदेश का कुछ क्षेत्र आता है। जबकि मेन सेंट्रल थ्रस्ट का इंडियन सूचर जोन कारगिल होते हुए पाकिस्तान तक अपना प्रभाव दिखाता है। भूकंप वैज्ञानिक प्रो. एचआर वासन का कहना है कि जिस तरह से पूर्वोत्तर राज्यों में दो साल पूर्व भूकंप से भारी तबाही हुई उसी प्रकार उत्तराखंड का अल्मोडा क्षेत्र भी कभी भी भूकंप आपदा का शिकार हो सकता है। इसके लिए अभी से बचाव की आवश्यकता है। उत्तराखंड का भूकंप से खास रिश्ता रहा है।
उत्तराखंड के भूकंप इतिहास पर नजर डालें तो 2 जुलाई 1832 के 6 तीव्रता के भूकंप ने उत्तराखंड क्षेत्र की नींद उड़ा दी थी। इसके बाद 30 मई 1833 व 14 मई 1835 के लोहाघाट में आए भूकंप से उत्तराखंड हिल गया था। इसी तरह धारचूला में 28 अक्टूबर 1916, 5 मार्च 1935, 28 सितम्बर 1958, 27 जून 1966, 24 अगस्त 1968, 31 मई 1979, 29 जुलाई 1980 तथा 4 अप्रैल 1911 के भूकंप उत्तराखंड में विनाशलीला के कारण बने हैं। भूकंप वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तराखंड में भूकंप का खतरा टला नहीं है। बल्कि कभी भी देवभूमि उत्तराखंड ही नहीं समूचा हिमालय भूकंप से डोल सकता है और भारी विनाश का कारण बन सकता है। इसलिए भूकंप से बचाव की तकनीक अपनाकर ही भवन निर्माण करें। तभी हम भूकंप से किसी हद तक सुरक्षित रह सकते हैं। अन्यथा धरती हिलती रहेगी और हम असुरक्षा के साये में जीते रहेंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)