Friday, November 22"खबर जो असर करे"

न्यूजक्लिक पर तगड़ा फ्लिक

– मुकुंद

विदेश से मिले फंड खास तौर पर चीन से मिले पैसों के खुलासे के बाद विवादों से घिरे इंटरनेट समाचार सूचना प्लेटफार्म देश के न्यूजक्लिक पर दिल्ली पुलिस ने तगड़ा फ्लिक किया है। दिल्ली पुलिस ने इससे संबद्ध नोएडा और गाजियाबाद समेत कुछ स्थानों पर दबिश दी है। इसके कर्ता-धर्ता यानी प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ हैं। पुरकायस्थ को इससे पहले दिल्ली पुलिस की इकोनॉमिक ऑफेंसेस विंग की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने 22 अगस्त को नोटिस भी दिया था। याचिका में अंतरिम आदेश वापस लेने की अपील की गई थी। अंतरिम आदेश में प्रबीर के खिलाफ सख्त कार्रवाई पर प्रतिबंध लगाया गया था।

दिल्ली पुलिस ने इस बार अपने रडार पर कई चर्चित पत्रकारों को लिया है। इनमें पुरकायस्थ के अलावा अभिसार शर्मा, उर्मिलेश, संजय राजौरा, भाषा सिंह, औनिंद्यो चक्रवर्ती और सोहेल हाशमी हैं। इसकी वजह यह है कि यह सभी न्यूजक्लिक से किसी न किसी तरह संबद्ध हैं। इनको कुछ न कुछ पैसे मिले हैं। दो साल पहले 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट ने सात जुलाई को प्रबीर पुरकायस्थ को गिरफ्तार न करने का आदेश पुलिस को दिया था। मगर दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि पुरकायस्थ को अधिकारियों के निर्देशों के मुताबिक जांच में सहयोग करना होगा।

न्यूजक्लिक के वित्तपोषण की गूंज इस साल संसद के मानसून सत्र में हो चुकी है। सात अगस्त को लोकसभा में भाजपा के निशिकांत दुबे ने न्यूजक्लिक को मिलने वाली चाइना की फंडिंग का मुद्दा जोरशोर से उठाया था। यह वही दिन है जब राहुल गांधी सदस्यता बहाल होने पर 137 दिन बाद संसद भवन पहुंचे थे। दुबे ने कहा था कि देश में पड़ोसी देश के पैसे से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ माहौल बनाया गया। न्यूजक्लिक में पड़ोसी देश से पैसा आया। इस पर कांग्रेस ने काफी बवाल किया। आखिर में दुबे की टिप्पणी के कुछ अंश हटाए गए। विरोध की लपटें शांत न होने पर केंद्रीयमंत्री अनुराग ठाकुर को सामने आना पड़ा। उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया कि ‘कांग्रेस, चीन और विवादित न्यूज वेबसाइट न्यूजक्लिक एक ही गर्भनाल से जुड़े हैं। राहुल गांधी की ‘नकली मोहब्बत की दुकान’ में पड़ोसी सामान साफ देखा जा सकता है। चीन के प्रति उनका प्रेम नजर आ रहा है। वे भारत विरोधी अभियान चला रहे हैं।’ अनुराग ठाकुर ने कहा था कि न्यूजक्लिक को कहां-कहां से पैसा मिला, इस सबकी जानकारी है। इनकी फंडिंग का जाल देखेंगे तो नेवल रॉय सिंघम ने इसको फंडिंग की। फंडिंग उसे चीन की ओर से आई।

दिल्ली पुलिस की न्यूजक्लिक पर ताजा कार्रवाई को कांग्रेस को पच नहीं रही। तीन अक्टूबर दिन मंगलवार की यह कार्रवाई 17 अगस्त को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत दर्ज मामले पर आधारित है। इसमें धारा 153ए (दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और धारा 120बी (आपराधिक साजिश) लगी हैं। यहां यह भी जानना जरूरी है कि न्यूजक्लिक के संबंध में न्यूयॉर्क टाइम्स ने विस्फोटक रिपोर्ट छापी थी। इसमें भी दावा किया गया था कि इस वेबसाइट को चीन से वक्त बे वक्त पर फंड मिलता है। इसके बाद यह भी आरोप लगे कि इस वेबसाइट को ‘अमेरिकी टेक मुगल नेविल रॉय सिंघम’ वित्त पोषित करते हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि साल 2021 में जब भारत की कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने मनी लॉन्ड्रिंग के पुख्ता सबूतों के आधार पर न्यूजक्लिक के खिलाफ जांच शुरू की तो कांग्रेस और पूरे वाम उदारवादी पारिस्थितिकी तंत्र ने उसका बचाव किया। उल्लेखनीय है कि दो साल पहले ईडी की जांच में पता चला था कि न्यूजक्लिक को चीन और विदेशी स्थानों से लगभग 38 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली।

यह किसी से छुपा नहीं है कि नेविल रॉय सिंघम काफी उदार हैं। वह एनजीओ, शिक्षण संस्थानों और मीडिया संस्थानों को फंड करने को लेकर चर्चित हैं। 69 वर्षीय नेविल समाजवादी चिंतक और यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क में प्रोफेसर रहे आर्चिबॉल्ड डब्ल्यू सिंघम के बेटे हैं। 1991 में आर्चिबॉल्ड का निधन हुआ था। उन्हें आर्चि सिंघम भी कहा जाता था। आर्चि मूल रूप से श्रीलंका के रहने वाले थे। साम्राज्यवाद के खिलाफ उन्होंने कई किताबें भी लिखीं। नेविल रॉय सिंघम ने शिकागो में आईटी फर्म खोली थी। उन पर काफी पहले से चीन सरकार को प्रमोट करने वाले संस्थानों को फंडिंग करने का आरोप लगता रहा है। न्यूजक्लिक पर हुए फ्लिक से कांग्रेस को मिर्ची लगी है। उसके नेता प्रमोद तिवारी ने टिप्पणी की है, “लगता है तानाशाही आ चुकी है। मीडिया पर अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता ही नहीं बल्कि उस पर आर्थिक और सामाजिक रूप से भी अंकुश लगाया जा रहा है। इस कार्रवाई पर सीताराम येचुरी ने सवाल उठाए हैं। इस पर केंद्रीयमंत्री अनुराग ठाकुर ने भुवनेश्वर में कहा है कि न्यूजक्लिक पर हुए ताजा एक्शन के औचित्य पर कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है। जांच एजेंसियां स्वतंत्र हैं। वह कानून के दायरे में काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।