– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
कुछ दिन पहले काशी में गण्यमान्य शिक्षाविदों के सम्मेलन में नई शिक्षा नीति के प्रभावी क्रियान्वयन पर लंबा और सार्थक विमर्श किया गया। इसका शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था। नई शिक्षा नीति पर प्रधानमंत्री का नजरिया बिलकुल साफ है। वह कह चुके हैं कि कुछेक भाषाओं के वर्चस्व के कारण बौद्धिक आदान-प्रदान और कौशल वृद्धि का दायरा सिकुड़ा है। इस प्रवृति को रोकने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिये भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा जैसे चिकित्सा और प्रौद्योगिकी में शिक्षा सुविधाओं को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। सरकार का प्रयास है कि कोई भी भारतीय सर्वश्रेष्ठ ज्ञान, कौशल, सूचना और अवसरों से वंचित न रहे। भारतीय भाषाओं का विकास केवल एक भावनात्मक मुद्दा नहीं है बल्कि इसके पीछे बहुत बड़ा वैज्ञानिक आधार है। पिछले दो वर्षों से शिक्षा नीति पर सफल कार्यान्वयन चल रहा है।अग्रणी भारतीय उच्च शैक्षणिक संस्थान इस पर भी विभिन्न दृष्टिकोण से इस विषय पर चर्चा कर रहे हैं।
शिक्षा मंत्रालय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के साथ मिलकर इस कार्य में योगदान कर रहा है। अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट, मल्टीपल एंट्री एग्जिट, उच्च शिक्षा में बहु अनुशासन और लचीलापन,ऑनलाइन और ओपन डिस्टेंस लर्निंग को बढ़ावा दिया जा रहा है। वैश्विक मानकों के साथ इसे और अधिक समावेशी बनाने,राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे को संशोधित करने, बहुभाषी शिक्षा तथा भारतीय ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है। कौशल शिक्षा को मुख्यधारा में लाने एवं आजीवन सीखने को बढ़ावा देने जैसी कई नीतिगत पहल की गई हैं। कई विश्वविद्यालय पहले ही इस कार्यक्रम को अपना चुके हैं। किन्तु अभी अनेक विश्वविद्यालय इस दौड़ में पीछे है। देश में उच्च शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र केंद्र, राज्यों और निजी संस्थाओं तक विस्तृत है। इसलिए नीति कार्यान्वयन को और आगे ले जाने के लिए व्यापक परामर्श किया गया। और परामर्श की यह प्रक्रिया क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर चल रही है। बहु-विषयक और समग्र शिक्षा,कौशल विकास और रोजगार भारतीय ज्ञान प्रणाली शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण, डिजिटल सशक्तीकरण तथा ऑनलाइन शिक्षा, अनुसंधान,नवाचार और उद्यमिता,गुणवत्ता, रैंकिंग और प्रत्यायन, समान और समावेशी शिक्षा,गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों की क्षमता निर्माण जैसे विषयों पर भी विचार-विमर्श चल रहा है। इससे ज्ञान के आदान प्रदान को बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्षों के बाद नेटवर्क कायम होगा। शैक्षिक संस्थानों के सामने आने वाली चुनौतियों का निवारण किया जाएगा। इनके समाधान की योजना बनेगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त कर अच्छे व्यक्तित्व के धनी वैश्विक नागरिक का निर्माण किया जाना है। भारत को वैश्विक स्तर पर शैक्षिक रूप से महाशक्ति बनाना तथा भारत में शिक्षा का सार्वभौमिकीकरण कर शिक्षा की गुणवत्ता को उच्च करना है। नई नीति के वर्तमान में चल रही 10$2 के मॉडल के स्थान पर पाठ्यक्रम में 5$3$3$4 की शैक्षिक प्रणाली को लागू किया जा रहा है। नई शिक्षा नीति के लिए केंद्र तथा राज्य सरकार के निवेश का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है। केंद्र तथा राज्य सरकार शिक्षा क्षेत्र के सहयोग के लिए देश की छह प्रतिशत जीडीपी के बराबर शिक्षा क्षेत्र में निवेश करेंगी। अगले करीब 12 वर्ष तक उच्च शिक्षा में जीईआर को पचास प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य है। इस क्रांतिकारी परिवर्तन में उत्तर प्रदेश पीछे नहीं है। प्रत्येक जनपद में एक उत्कृष्ट मल्टीडिस्प्लिनरी एजुकेशन ऐंड रिसर्च यूनिवर्सिटी की स्थापना पर विचार हो रहा है। विश्वविद्यालयों को बहुविषयक बनाने की शुरुआत हो सकती है। विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास पर जोर दिया जाएगा। योग शिक्षा, मूल्यपरक शिक्षा, चरित्र निर्माण, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता, सामाजिक सरोकार, राष्ट्रीय विकास तथा वैश्विक परिदृश्य की समझ पर भी जोर दिया जाएगा।
मैकाले शिक्षा पद्धति सिर्फ नौकरीपेशा की मानसिकता को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई थी। अब भारत सचमुच विश्वगुरु बनने की दिशा में बढ़ रहा है। वर्तमान वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए विकसित देश भी भारत की तरफ देख रहे हैं। केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान आशान्वित हैं। वह कहते हैं कि नई शिक्षा नीति से क्रांतिकारी परिर्वतन आना तय है। इसमें विद्यार्थियों को रोजगार के लिए नहीं बल्कि रोजगार निर्माता बनने पर जोर दिया गया है। 250 से अधिक फ्री टू एयर चैनल के जरिये गुणात्मक शिक्षा दी जाएगी। डिजिटल यूनिवर्सिटी सामान्य घर के बच्चों तक के लिए उपलब्ध होगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस संबंध में भारतीय संस्कृति के ‘आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः’ के सूत्र वाक्य को दोहराते हैं। वह प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की समीक्षा कर चुके हैं। वह साफ कर चुके हैं कि शिक्षा की गुणवत्ता राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इससे समझौता नहीं हो सकता।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)