– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
भगवान बुद्ध ने कहा था कि किसी को मानसिक पीड़ा देना भी हिंसा होती है। स्वामी प्रसाद मौर्य अपने को बौद्ध कहते हैं। लेकिन वह लगातर बौद्ध दर्शन का उल्लंघन कर रहे हैं। उनके बयानों से हिन्दुओं को मानसिक पीड़ा पहुंच रही है। बौद्ध चिंतन के अनुसार उनका यह आचरण हिंसा की परिधि में है। पहले रामचरितमानस की एक चौपाई का उन्होंने गलत अर्थ बता कर आस्था पर प्रहार किया । इस पर मुंह की खाई थी। लेकिन बेहयाई ऐसी की कोई सबक नहीं लिया। अब कहा कि हिन्दू धर्म नहीं धोखा है। ऐसा कह कर उन्होंने संविधान की भावना पर प्रहार किया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 में हिन्दू शब्द का उल्लेख है। जैन, सिख, बौद्ध धर्मावलंबी को हिंदू परिभाषित किया गया है। स्वामी प्रसाद ने हिन्दू को धोखा बताया। उनके बयान का निहितार्थ यह हुआ कि संविधान में धोखा का उल्लेख है। इसी प्रकार डॉ. आंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल पेश किया था। स्वामी प्रसाद के अनुसार तो इसे भी धोखा समझना होगा।
बसपा और भाजपा में मंत्री बन कर सत्ता सुख भोगने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य अब सपा में हैं। जिस पार्टी में रहे उसको छोड़ कर शेष दो पार्टियों को नागनाथ-सांपनाथ बताते रहे। अपने को नेवला बताने में उन्हें गर्व होता रहा। लेकिन इस राजनीतिक यात्रा में उन्होंने अपने को पूरी तरह अविश्वसनीय बना लिया है। इसीलिए उनके बयान भी उन्हीं की तरह अविश्वसनीय हैं। उनके राजनीतिक जीवन का अधिकांश हिस्सा सपा पर हमला बोलते ही बीता है। सपा संस्थापक से लेकर आज का नेतृत्व तक उनके निशाने पर रहता था। करीब डेढ़ वर्ष पहले तक उनका यही अंदाज हुआ करता था।
उन्होंने अखिलेश यादव को सर्वाधिक विफल मुख्यमंत्री बताया था। योगी सरकार में मंत्री रहते हुए स्वामी प्रसाद सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के समर्थक थे। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण शिलान्यास के समय भी वह मंत्री थे। एक बार भी विचलित नहीं हुए। विधानसभा चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद उन्हें गजब ज्ञान की प्राप्ति हुई। जिस सरकार में पांच साल तक सत्ता सुख भोग रहे थे, उसी को दलित पिछड़ा विरोधी बता दिया। जिस पार्टी को नागनाथ कहते थे,उसी में पहुंच गए।
रामचरित मानस पर असत्य टिप्पणी के बाद उन्हें सपा का राष्ट्रीय महासचिव बना कर पुरस्कृत किया गया था। तब से वह बेअंदाज हैं। अब तो ऐसा लगता है कि वह अब सपा में रहकर अपना पुराना हिसाब चुकता कर रहे हैं। पार्टी की छवि को पूरी तरह हिन्दू विरोधी बनाने की योजना पर कार्य कर रहे हैं। बसपा ने उन्हें फर्श से अर्श पर पहुंचाया। भाजपा ने उन्हें कैबिनेट मंत्री बना कर सम्मान दिया। जब वह बसपा और भाजपा के नहीं हुए, तो सपा के भी नहीं हो सकते। उन्हें चन्द्रयान सफलता स्थल को शिव-शक्ति नाम देना भी हजम नहीं हो पा रहा है। उन्होंने इसे वैज्ञानिकों का अपमान बताया। जबकि सच्चाई यह कि इस नामकरण से इसरो वैज्ञानिक प्रसन्न हैं। वह भी शिवभक्त हैं। उन्होंने सफल अभियान से पहले मन्दिरों में प्रार्थना की। सफलता के बाद पुनः दर्शन पूजन के लिए गए। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को संस्कृत से प्यार है।
भारत वैदिक काल से ही एक ज्ञानी समाज था। जिसमें संस्कृति की भूमिका रही है। सोमनाथ ने कहा कि गणित, चिकित्सा, तत्व विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि विषय शामिल थे जो संस्कृत में लिखे गए थे। ऐसी सभी शिक्षाएं देश में कई हजार साल बाद ‘पश्चिमी वैज्ञानिकों के की गई खोजों’ के रूप में वापस आईं। वह उज्जैन में महर्षि पाणिनि संस्कृत और वैदिक विश्वविद्यालय के चौथे दीक्षांत समारोह को संबोधित करने गए। कहा कि संस्कृत दुनिया की सबसे प्राचीन यानी पुरानी भाषाओं में से एक है जिसमें कविता, तर्क, व्याकरण, दर्शन, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, गणित और अन्य संबद्ध विषय शामिल हैं।
सूर्य सिद्धांत सबसे पहली किताब है जो मैंने संस्कृत में देखी। यह उस विषय के बारे में है जिससे मैं परिचित हूं। यह बुक विशेष तौर पर सौर प्रणाली के बारे में है, कैसे ग्रह सूर्य के चारों और घूमते हैं, इसकी गति की अवधि, घटनाओं से संबंधित समय आदि। यह सारा ज्ञान यहां से चला, अरब पहुंचा, फिर यूरोप गया और हजारों साल बाद महान पश्चिम वैज्ञानिक खोज के रूप में हमारे पास वापस आया। यह सारा ज्ञान यहां संस्कृत भाषा में लिखा गया था।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)