Friday, November 22"खबर जो असर करे"

मेडिकल की हिंदी में पढ़ाई, मप्र को भायी

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

आजादी के 75 वें साल में मैकाले की गुलामगीरी वाली शिक्षा पद्धति बदलने की शुरुआत अब मध्य प्रदेश से हो रही है। इसका श्रेय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान और चिकित्सा शिक्षामंत्री विश्वास सारंग को है। मैंने पिछले साठ साल में म.प्र. के हर मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि मेडिकल और कानून की पढ़ाई वे हिंदी में शुरू करवाएं लेकिन मप्र की वर्तमान सरकार भारत की ऐसी पहली सरकार है, जिसका भारत की शिक्षा के इतिहास में नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। केंद्र सरकार म.प्र. से प्रेरणा ग्रहण कर समस्त विषयों की उच्चतम पढ़ाई का माध्यम भारतीय भाषाओं को करवा दे तो भारत को अगले एक दशक में ही विश्व की महाशक्ति बनने से कोई ताकत रोक नहीं सकती है। विश्व की जितनी भी महाशक्तियां हैं, उनमें उच्चतम अध्ययन और अध्यापन स्वभाषा में होता है। डॉक्टरी की पढ़ाई मप्र में हिंदी माध्यम से होने के कई फायदे हैं।

पहला तो यही कि फेल होनेवालों की संख्या एकदम घटेगी। दूसरा, छात्रों की दक्षता बढ़ेगी। 70-80 प्रतिशत छात्र हिंदी माध्यम से पढ़कर ही मेडिकल काॅलेजों में भर्ती होते हैं। इन्हें चिकित्सा पद्धति को समझने में आसानी होगी। तीसरा मरीजों की ठगाई कम होगी। चिकित्सा जादू-टोना नहीं बनी रहेगी। चौथा मरीजों और डॉक्टरों की बीच संवाद आसान हो जाएगा। पांचवा सबसे ज्यादा फायदा उन गरीबों, पिछड़ों, अनुसूचित जाति के बच्चों को होगा, जो अंग्रेजी के चलते डॉक्टर नहीं बन पाते।

मप्र के चिकित्सा शिक्षामंत्री विश्वास नारंग ने मेडिकल शिक्षा की किताबें हिंदी में तैयार करवाने के लिए जो कमेटी बनाई है, उससे मेरा सतत संपर्क बना रहता है। कुछ पुस्तकें मूल रूप से हिंदी में तैयार हो गई हैं और कुछ के अनुवाद भी हो गए हैं। सितंबर के आखिर में शुरू होनेवाले नए सत्र से छात्रों को हिंदी माध्यम की छूट मिल जाएगी। हिंदी की पुस्तकों में अंग्रेजी मूल तकनीकी शब्दों से परहेज नहीं किया जाएगा। जो छात्र अंग्रेजी माध्यम से पढ़ना चाहेंगे, उन्हें छूट रहेगी। मप्र के चार हजार मेडिकल छात्रों में से अब लगभग सभी स्वभाषा के माध्यम से पढ़ना चाहेंगे। यदि ऐसा होगा तो हिंदी में कई नए मौलिक ग्रंथ भी हर साल प्रकाशित होते रहेंगे। यदि इस मेडिकल की पढ़ाई को और भी अधिक उपयोगी बनाना हो तो मेरा सुझाव यह भी है कि एक ऐसी नई चिकित्सा उपाधि तैयार की जाए, जिसमें एलोपेथी, आयुर्वेद, हकीमी, होमियोपेथी और प्राकृतिक चिकित्सा के पाठ्यक्रम मिले-जुले हों ताकि मरीजों का यदि एक दवा से इलाज न हो तो दूसरी दवा से होने लगे।

यदि हमारी चिकित्सा में ऐसा कोई क्रांतिकारी परिवर्तन मध्य प्रदेश की सरकार करवा सके तो अन्य प्रदेशों की सरकारें और केंद्र सरकार भी पीछे नहीं रहेगी। यह विश्व को भारत की अनुपम देन होगी। यह चिकित्सा पद्धति इतनी सुलभ और सस्ती होगी कि भारत और पड़ोसी देशों के गरीब से गरीब लोग इसका लाभ उठा सकेंगे। एक बार फिर दुनिया भर के छात्र डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए भारत आने लगेंगे, जैसे कि वे सदियों पहले विदेशों से आया करते थे।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)