– गिरीश्वर मिश्र
आजकल जनसंख्या का आधिक्य या विस्फोट चर्चा का विषय बना हुआ है। यह निश्चय ही एक अवांछनीय स्थिति होती है जब धरती की धारण शक्ति या क्षमता की अपेक्षा उस पर रहने वाले मनुष्यों की संख्या बढ़ जाती है । आज तकनीकी प्रगति ने जीवन की प्रत्याशा को बढ़ाने में विशेष मदद की है। मानव इतिहास में जन्म और मृत्यु दर एक दूसरे को संतुलित करते रहे हैं और ऐसी जनसंख्या वृद्धि हो जो टिकाऊ हो। आज के दौर में विकासशील देश विकसित देशों की तुलना में जनसंख्या की वृद्धि से अधिक प्रभावित हो रहे हैं। विकसित श्रेणी में आने वाले देशों में थोड़ी-थोड़ी जनसंख्या के साथ यूरोप और अमेरिका के क्षेत्रों में ऐसे अनेक देश हैं जो आर्थिक, शैक्षिक और तकनीकी विकास की सीढ़ी पर ऊंचे पायदान पर पहुंचे हुए हैं। उदाहरण के लिए इजरायल जैसे छोटे से देश को लें जो एक नया देश बना और देखते-देखते अपनी पुरानी भाषा हिब्र्रू के साथ ज्ञान-विज्ञान में उपलब्धि के शिखर पर है। उसकी आबादी एक करोड़ के करीब है। जनसंख्या की दृष्टि से स्वीडेन एक करोड़, जर्मनी नौ करोड़, फ़्रांस सात करोड़, रूस चौदह करोड़, जापान बारह करोड़ के आसपास हैं। वस्तुतः अनेक विकसित देश हैं जहां से हमें और अन्य देशों को आयात करना पड़ता है। प्रौद्योगिकी, साजो-सामान और अन्न आदि खरीदने पड़ते हैं। दूसरी ओर जनसंख्या की दृष्टि से भारी भरकम देशों की स्थिति अक्सर खराब होती है। हालांकि छोटी जनसंख्या वाले खस्ताहाल देश भी हैं और अधिक जनसंख्या को संभाल कर चीन जैसे देश प्रगति पथ पर आगे बढ़ रहे हैं।
आज की कटु वास्तविकता यही है कि यदि किसी देश की जनसंख्या में ज्यादातर लोग अयोग्य और अकुशल की श्रेणी में में हैं तो यह जन समुदाय एक दुरूह भार जैसा हो जाएगा और देश की खुशहाली और समग्र स्वास्थ्य पर उसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा । वहां कुंठा, कलह और भ्रष्टाचार अधिक होगा । हर कदम पर परेशानी होगी, समाज में अस्थिरता होगी और जीवन की गुणवत्ता के साथ समझता होता रहेगा। इस तरह किसी देश की जनसंख्या का बल एक दुधारी तलवार जैसा होता है। उसका लाभ लेते हुए यदि प्रगति हो सकती है तो उसका भार ढोते हुए किसी देश की दुर्गति भी हो सकती है ।
पिछले साल तक चीन विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश था। इस तथ्य के बावजूद यह भी गौर किया जाना मुनासिब है कि चीन आर्थिक समृद्धि में बढ़त की दृष्टि से विश्व में एक विलक्षण उदाहरण साबित हुआ है । उसकी कायापलट करने वाली उपलब्धि बेहद चौंकाने वाली है । यह सब पिछले कुछ दशकों में चीन द्वारा अपनाई गई की नीति पर चलने का परिणाम है । गौरतलब है कि चीन में लोकतंत्र की जगह साम्यवादी सरकार है और वहाँ के सरकारी निर्णयों को लागू करने की रीति-नीति पर किसी तरह की असहमति को कोई स्थान नहीं है । वहां पर बड़ी कड़ाई से ‘एक परिवार एक बच्चा’ वाली जनसंख्या-नीति पर ठोस अमल किया गया और जनसंख्या वृद्धि पर कठोरता से काबू पाया गया । साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य के मोर्चों पर भी बढ़त हासिल की गई । प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में चीन की प्रगति सर्वविदित है और आर्थिक दृष्टि से उसकी मजबूती और पकड़ भी अविश्वसनीय रूप से बढ़ी है। अमेरिका समेत दुनिया के हर देश के बाजार में चीन में बने सामानों की धूम मची हुई है।
ऐतिहासिक रूप से देखें तो भारत वर्ष जनसंख्या की दृष्टि से अनियंत्रित गति से आगे बढ रहा था । जून 2023 में आए ताजे आंकड़ों के हिसाब से आज भारत एशिया के ही अपने पड़ोसी देश चीन से आगे बढ़ चुका है जो अभी-अभी तक सबसे आगे चल रहा था । भारतवर्ष में स्वतंत्रता मिलने के बाद जनसंख्या नियंत्रण के लिए परिवार-नियोजन की नीति तो बनी जरूर और उसके तहत कई प्रयोग भी हुए शुरू हुए पर उनमें देश को सिर्फ आंशिक सफलता ही मिल सकी । संजय गांधी के दौर में इसे लेकर कड़ाई करना सरकार को महंगा पड़ा था। तब से सख्ती के साथ कुछ करने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई। आज भारत की कुल अनुमानित जनसंख्या 142 करोड़ पहुंच चुकी है। पूरे भारत में उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा जनसंख्या बहुल प्रदेश है। देश की कुल आबादी का लगभग सत्तर प्रतिशत गावों में रहता है। अनुमानतः जनसंख्या का घनत्व 480.5 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है और साक्षरता लगभग 74 प्रतिशत है। जनसंख्या में पुरुषों का प्रतिनिधित्व 51.6 प्रतिशत है । चूंकि धरती तो सीमित है बढ़ती जनसंख्या के साथ प्रति व्यक्ति उपलब्ध भूमि घटती जा रही है। आज उसे खेती से इतर दूसरे कामों जैसे- उद्योग धंधे, में लगाया जा रहा है।
इस बीच देश में स्वास्थ्य सुविधाओं और आर्थिक अवसरों को बढ़ाने की दिशा में भी प्रयास किया गया । ऐसे ही शिक्षा की स्थिति में भी कुछ सुधार हुआ है ।संचार और सूचना क्रांति ने लोगों के दृष्टिकोण को बदला है । आर्थिक नीतियों को लेकर लगातार कदम उठाए गए और आधार संरचना और व्यापार व्यवसाय के क़ायदे क़ानूनों में भी व्यापक सुधार लाया गया । विदेशी निवेश भी बढ़ा है । इन सब प्रयासों के सम्मिलित प्रभाव के चलते देश की औद्योगिक दृष्टि से परिस्थितियाँ सकारात्मक रूप से बदली हैं । यह देश के लिए निश्चित रूप से गौरव की बात है कि वैश्विक स्तर पर आज हमारी साख बढ़ी है और अब भारत विश्व की पाँचवीं आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है । आज अनेक क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की उपस्थिति उल्लेखनीय रूप से दर्ज हो रही है फिर भी शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पेय जल की व्यवस्था जैसी चुनौतियां आ रही हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के हिसाब से भारतीय समाज एक बृद्धावस्था की ओर उन्मुख समाज होता जा रहा है। आज इसकी 7 प्रतिशत जनसंख्या 65 वर्ष की आयु के ऊपर के लोगों की है। केरल में बुजुर्गों की जनसंख्या 12 प्रतिशत है। देश की जन्मदर भी घटी है। देश की जनसंख्या सन 1971 से 1981 तक 2.2 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही थी। 2001 से 2011 के बीच यह घट कर 1.5 प्रतिशत हो गई। अनुमान है कि 2064 में भारत की कुल जनसंख्या 170 करोड़ हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भारत की कुल जनसंख्या के 40 प्रतिशत से अधिक लोग युवा हैं 25 साल के भीतर भारत का आयु मध्यांक 2023 में 28 वर्ष है। 2021 में भारत की काम करने योग्य जन संख्या 900 मिलियन थी और अगले एक दशक में एक बिलियन होने वाली है। नई पीढ़ी जरूर ज्ञान और कौशल की दृष्टि से बीस है। यह युवा अंग्रेजी जानने वाला, डिजिटल ढंग से साक्षर और उद्यमशील है। यह चीन के विकल्प के रूप में पश्चिमी कंपिनियों के लिए खड़ा हो सकता है । आज के श्रमिक वर्ग संख्या की दृष्टि से जनसंख्या का एक बड़ा अंश है पर इसके लाभ पाने के लिए प्रभावी नीति विकसित करनी होगी। देश की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए योग्य लोग भी चाहिए और उसी तरह से स्तरीय नौकरियों और काम भी सृजित करने होंगे।
आज प्रति व्यक्ति की आय के हिसाब से भारत अत्यंत गरीब देशों में शुमार है पर वैश्विक अर्थ तंत्र में तेजी से ऊपर की ओर बढ़ रहा है। 3.5 ट्रिलियन की अर्थ व्यवस्था विश्व की पांचवी और सबसे तेजी से विकसित हो रही अर्थ व्यवस्था बन रहा है । 2023 में विश्वबैक के हिसाब से भारत 6.6 प्रतिशत की बृद्धि दर से सबको पछाड़ देने को उद्यत है। कुछ अनुमान बत्ताते हैं दूसरे अगले दस साल में भारत तीसरी वैश्विक अर्थ शक्ति बनेगा। इसके साथ ही यह तथ्य भी नहीं भुलाया जा सकता कि भारत में बड़ी संख्या में गरीब हैं। युवा वर्ग काम करने को तैयार है पारंतु उनके उपयुक्त काम के अवसर ही उपलब्ध नहीं है। विसंगति का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में 17 प्रतिशत जन संख्या पर 9 प्रतिशत औद्योगिक नौकरी। कहा जा सकता है कि आज भारत एक उत्पादक शक्ति तो है पर गुणवतापूर्ण, उत्पादक और अच्छे वेतन वाले नौकरी की प्रतीक्षा है। इसे देखते हुए शिक्षा में अच्छा खासा निवेश करना जरूरी होगा। स्त्री शिक्षा की अच्छी व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है। अशिक्षा के चलते अभी भी लोग बच्चों को ‘ईश्वर की देन’ मानते हैं।
बढ़ती जनसंख्या के साथ गरीबी, विस्थापन और संसाधन की कमी, पर्यावरण-प्रदूषण, युद्ध और कलह, बेरोज़गारी, संसाधनों के लिए प्रतिद्वंदिता, महंगाई, महामारी, कुपोषण, अकाल, भीड़ , अपराध, संक्रामक रोग, शहरों पर दबाव, गंदी बस्ती और झुग्गी झोपड़ी का खड़ा होना, पेयजल की कमी जैसे प्रकोप पैर फैलाने लगाते हैं। भोजन, पानी, आवास, ऊर्जा, स्वास्थ्य, यातायात की मांग बढ़ने के साथ तेल गैस, कोयला जैसे सीमित संसाधनों के दोहन के चलते पृथ्वी की व्यवस्था चरमराती है। पेड़, पानी, जंगल और समुद्र भी त्राहिमाम करने लगते हैं। जनसंख्या वृद्धि की चुनौती से निजात पाने पर विचार करते हुए हमारा ध्यान सबसे पहले अच्छी शिक्षा की व्यवस्था पर जाता है जो विद्यार्थी में विवेक का विकास कर सके, उसे निपुण बनावे और जिम्मेदार नागरिक की भूमिका के लिए तैयार करे। इसके साथ ही लड़कियों और स्त्रियों की शिक्षा भी इसके लिए विशेष रूप से कारगर साबित होगी। समाज में परिवार नियोजन की चेतना का प्रसार, छोटे परिवार के लिए टैक्स लाभ, समुचित सेक्स-शिक्षा और जीवन में परिवार नियोजन के जरूरी उपायों को जन-जन तक पहुंचाना आवश्यक होगा।
(लेखक, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति हैं।)