– रमेश सर्राफ धमोरा
हमारी धरती, जनजीवन को सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण का सुरक्षित रहना बहुत जरूरी है। पूरी दुनिया आधुनिकता की ओर बढ़ रही हैं। दुनियाभर में हर दिन ऐसी चीजों का इस्तेमाल बढ़ रहा है जिससे पर्यावरण खतरे में है। इंसान और पर्यावरण के बीच गहरा संबंध है। प्रकृति के बिना जीवन संभव नहीं। ऐसे में प्रकृति के साथ इंसानों को तालमेल बिठाना होता है। लेकिन लगातार वातावरण दूषित हो रहा है। जिससे कई तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं। जो हमारे जनजीवन को तो प्रभावित कर ही रही हैं। साथ ही कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं की भी वजह बन रही है। सुखी स्वस्थ जीवन के लिए पर्यावरण का संरक्षण जरूरी है।
इसी उद्देश्य से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोगों को विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये प्रकृति को संरक्षित रखने और इससे खिलवाड़ न करने के लिए जागरूक किया जाता है। इन कार्यक्रमों के जरिये लोगों को पेड़-पौधे लगाने, पेड़ों को संरक्षित करने, हरे पेड़ न काटने, नदियों को साफ रखने और प्रकृति से खिलवाड़ न करने जैसी चीजों के लिए जागरूक किया जाता है। इस बार हम सबको मिलकर पृथ्वी को प्रदूषण मुक्त बनाने का संकल्प लेकर उस दिशा में काम करना प्रारम्भ करना चाहिये।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1972 में पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था। लेकिन विश्व स्तर पर इसके मनाने की शुरुआत 5 जून 1974 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुई थी। जहां 119 देशों की मौजूदगी में पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया गया था। साथ ही प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था। इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन भी हुआ था।
हर वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है। इस बार की थीम प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान पर आधारित है। इस दिन आयोजित होने वाले कार्यक्रम इसी थीम पर आधारित होंगे। हमें अपने मन में संकल्प लेना होगा कि हमें प्रकृति से सद्भाव के साथ जुड़ कर रहना है। इस पर्यावरण दिवस पर हम सब इस बारे में सोचें कि हम अपनी धरती को स्वच्छ और हरित बनाने के लिए और क्या कर सकते हैं। किस तरह इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। पर्यावरण दिवस पर अब सिर्फ पौधारोपण करने से कुछ नहीं होगा। जब तक हम यह सुनिश्चित नहीं कर लेते कि हम उस पौधे के पेड़ बनने तक उसकी देखभाल करेंगें।
देश में तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण बड़ी मात्रा में कृषि भूमि आबादी की भेंट चढ़ती गई। जिस कारण वहां के पेड़ पौधे काट दिये गये व नदी नालों को बंद कर बड़े-बड़े भवन बना दिए गए। जिससे वहां रहने वाले पशु, पक्षी अन्यत्र चले गए। लेकिन लॉकडाउन ने लोगों को उनके पुराने दिनों की याद दिला दी है। पुराने समय में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिये पेड़ों को देवताओं के समान दर्जा दिया जाता था। ताकि उन्हें कटने से बचाया जा सके। बड़-पीपल जैसे घने छायादार पेड़ों को काटने से रोकने के लिये उनकी देवताओं के रूप में पूजा की जाती रही है। इसी कारण गावों में आज भी लोग बड़ व पीपल का पेड़ नहीं काटते हैं।
मनुष्य प्रकृति द्वारा बनाया गया सबसे बुद्धिमान प्राणी माना जाता है। उसने एक ओर जहां विज्ञान से प्रौद्योगिक का विकास किया वहीं दूसरी ओर अंधाधुंध शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण भी किया। इसी का नतीजा है कि उद्योगों से निकलने वाला धुआँ, दूषित पदार्थ आदि प्रदूषण को जन्म दें रहे हैं। इस कारण जलप्रदूषण, वायुप्रदूषण हुआ है। आवास एवं शहरीकरण हेतु वनों की अत्यधिक कटाई के कारण मिटटी प्रदूषण एवं भूमि कटाव जैसी समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। वर्तमान समय में प्रदूषण किसी एक गांव, कस्बे या शहर की समस्या नहीं है अपितु यह संपूर्ण विश्व की बहुत विकराल समस्या बन गई है।
यदि समय रहते प्रदूषण जैसी समस्या का समाधान नहीं निकाला गया तो इसका खामियाजा संपूर्ण मानव जाति को भुगतना होगा। और इसके भयंकर परिणाम होंगे जो हमारे साथ भविष्य में आने वाली पीढ़ी भी भुगतेगी। नेशनल हेल्थ पोर्टल आफ इंडिया के मुताबिक देश में हर साल करीब 80 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हो जाती है। वायु प्रदूषण के चलते लोगों को शुद्ध हवा नहीं मिल पाती है। जिसका हमारे शरीर में फेफड़े, दिल और दिमाग पर बुरा असर पड़ रहा है। देश में 34 प्रतिशत लोग प्रदूषण की वजह से मरते हैं।
पर्यावरण का अर्थ होता है परि हमारे चारों ओर जो आवरण हैं। जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ होता है चारों ओर से घेरे हुए। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत एक इकाई है। जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं। हमारे चारों तरफ का वह प्राकृतिक आवरण जो हमें सरलता पूर्वक जीवन यापन करने में सहायक होता है वह पर्यावरण कहलाता है।
पर्यावरण से हमें वह हर संसाधन उपलब्ध हो जाते हैं जो किसी सजीव प्राणी को जीने के लिए आवश्यक है। पर्यावरण ने हमें वायु, जल, खाद्य पदार्थ, अनुकूल वातावरण आदि उपहार स्वरूप भेंट दिया है। पर्यावरण स्वस्थ जीवन और ग्रह पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पृथ्वी विभिन्न जीवित प्रजातियों के लिए एक घर है और हम सभी भोजन, हवा, पानी और अन्य जरूरतों के लिए पर्यावरण पर निर्भर हैं। इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने पर्यावरण को बचाना और उसकी रक्षा करना महत्वपूर्ण है।
तीन वर्ष पूर्व लॉकडाउन का वह समय पर्यावरण की दृष्टि से अब तक का सबसे उत्तम समय रहा था। उस दौरान शहरों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी वायु प्रदूषण का स्तर घटकर न्यूनतम स्तर पर आ गया है। देश की सभी नदियों का जल पीने योग्य हो गया था। जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। पूरी दुनिया में पिछले वर्ष जैसा पर्यावरण दिवस शायद ही फिर कभी मने। सरकार हर वर्ष नदियों के पानी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अरबों रुपए खर्च करती आ रही है। उसके उपरांत भी नदियों का पानी शुद्ध नहीं हो पाता है। लॉकडाउन के दौरान बिना कुछ खर्च किए ही नदियों का पानी अपने आप शुद्ध हो गया था। पर्यावरणविदों के मुताबिक जिन नदियों के पानी से स्नान करने पर चर्म रोग होने की संभावनाएं व्यक्त की जाती थी। उन नदियों का पानी शुद्ध हो जाना बहुत बड़ी बात थी। देश की सबसे अधिक प्रदूषित मानी जाने वाली गंगा नदी सबसे शुद्ध जल वाली नदी बन गयी थी।
विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के दूसरे तरीकों सहित सभी देशों के लोगों को एक साथ लाकर जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने और जंगलों के प्रबन्ध को सुधारना है। वास्तविक रूप में पृथ्वी को बचाने के लिये आयोजित इस उत्सव में सभी आयु वर्ग के लोगों को सक्रियता से शामिल करना होगा। तेजी से बढ़ते शहरीकरण व लगातार काटे जा रहे पड़ों के कारण बिगड़ते पर्यावरण संतुलन पर रोक लगानी होगी।
इस दिन हमें आमजन को भागीदार बना कर उन्हें इस बात का अहसास करवाना होगा कि बिगड़ते पर्यावरण असंतुलन का खामियाजा हमें व हमारी आने वाली पीढ़ियों को उठाना पड़ेगा। इसलिये हमें अभी से पर्यावरण को लेकर सतर्क व सजग होने की जरूरत है। हमें पर्यावरण संरक्षण की दिशा में तेजी से काम करना होगा तभी हम बिगड़ते पर्यावरण असंतुलन को संतुलित कर पायेगें। तभी हमारी आने वाली पीढ़ियां शुद्ध हवा में सांस ले पायेगी।