– डॉ. अनिल कुमार निगम
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में चंद महीने ही शेष हैं। केंद्र में वर्ष 2014 से एनडीए की सरकार विराजमान है। आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को पटकनी देने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूरी ताकत झोंक रखी है। सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने के लिए पटना में 12 जून को विभिन्न दलों के नेताओं की एक बैठक भी आहूत की गई है। इस बैठक में ‘ऊंट किस करवट’ बैठेगा, यह तो समय बताएगा लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि सभी दलों को एक फार्मूले पर सहमत करना ‘लोहे के चने चबाना’ जैसा ही है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम में जुटे हुए हैं। उन्होंने विभिन्न राज्यों का दौरा कर वहां के क्षेत्रीय दलों के प्रमुखों से भेंट की है। उन्होंने अब तक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, एनसीपी प्रमुख शरद पंवार, टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी, जनता दल-बीजू के नवीन पटनायक, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह आदि से भेंटकर विपक्षी एकता के लिए बात की है। लेकिन लोकसभा के आगामी चुनाव के पूर्व सभी विपक्षी दल एक सूत्र में बंधेंगे या नहीं, इसका दरोमदार पूरी तरह से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के रुख पर निर्भर करेगा। उल्लेखनीय है कि नवीन पटनायक इस विपक्षी गठबंधन का हिस्सा नहीं होंगे, वह पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं।
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस आत्मसमर्पण की मुद्रा में थी। लेकिन कर्नाटक में चुनाव के नतीजे आने के बाद पार्टी का रुख बदल चुका है। अब कांग्रेस विपक्षी एकता के लिए शर्तें रख रही है। उसने स्पष्ट संकेत दिया है कि उसका बीआरएस, आम आदमी पार्टी और केरल में वाम दलों से समझौता नहीं हो सकता। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे पहले ही कह चुके हैं कि कांग्रेस नेतृत्व में विपक्षी एकता आगे बढ़ेगी। दूसरी ओर, विपक्षी दलों का मानना है कि अगर वे कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करते हैं तो इससे उनका भारी नुकसान होगा। विदित है कि पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और बिहार जैसे राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा है। ऐसे में आम आदमी पार्टी, टीएमसी, जेडीयू, आरजेडी और एनसीपी जैसे दलों को अपनी सीटों से समझौता करना पड़ सकता है।
वास्तविकता तो यह है कि विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने के पीछे नीतीश कुमार का सबसे बड़ा दांव है। प्रधानमंत्री बनने के आकांक्षी नीतीश विपक्षी एकता के साथ जनता परिवार को एकजुट करना चाहते हैं। बिहार में भाजपा से दूरी बनाने के बाद एकीकरण के लिए नीतीश की रालोद, सपा, जदएस, इनेलो और राजद से कई दौर की बातचीत हो चुकी है। नीतीश को लगता है कि अगर एकीकरण हुआ तो जनता दल परिवार में अब उनके आवाल प्रधानमंंत्री पद का और कोई दावेदार नहीं है।
लेकिन नीतीश कुमार के लिए यह राह बहुत सहज नहीं लग रही। एक ओर कांग्रेस ने विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस के नेतृत्व की बात स्पष्ट तौर पर कर दी है, वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी विपक्षी एकता के लिए अपनी शर्त रख दी है। केजरीवाल ने नीतीश कुमार से कहा कि विपक्ष को एकजुट होकर केंद्र की भाजपा सरकार के उस अध्यादेश का संसद से लेकर सड़क तक विरोध करना चाहिए, जिसके जरिए केंद्र सरकार ने दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर अधिकार से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने का काम किया है। उनका मानना है कि अगर राज्यसभा में सभी गैर भाजपा दल इस मुद्दे पर एकजुट हो जाएं तो केंद्र सरकार के लिए इस अध्यादेश से जुड़े बिल को पारित करना संभव नहीं होगा। अगर राज्यसभा में ऐसा हो गया तो ये एक तरह से 2024 का सेमीफाइनल होगा।
लेकिन अहम सवाल यह है कि केजरीवाल वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी मोर्चा बनाने और उसका हिस्सा बनने की बात नहीं कर रहे हैं। बावजूद इसके इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि केजरीवाल अब विपक्षी एकता के लिए जरूरी अवयव बन गए हैं। इसका प्रमुख कारण है कि आज आम आदमी पार्टी दिल्ली और पंजाब में अत्यंत मजबूत स्थिति में है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी अपने संगठन को मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और छत्तीसगढ़ में मजबूत करने में जुटी हुई है।
उल्लेखनीय है कि देश की राजधानी दिल्ली में वर्ष 2014 और 2019 दोनों ही लोकसभा चुनाव में सभी सात सीटों पर भाजपा ने ही अपना परचम लहराया था। लेकिन आज आम आदमी पार्टी की स्थिति यहां कमजोर नहीं है। वर्ष 2015 और 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने लगातार दो बार ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। वर्ष 2015 में उसे 70 में से 67, जबकि 2020 में आम आदमी पार्टी को 70 में 62 सीटों पर जीत मिली थी।
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के अलावा भी कुछ नेता ऐसे हैं जिनकी अपनी महत्वकांक्षाएं हिलोरे मार रही हैं। तेलंगाना राष्ट्रसमिति (टीआरएस) के नेता और सीएम के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने अपनी एक रैली में सवाल किया था कि क्या उनको राष्ट्रीय राजनीति में जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने देश भर में किसानों को बिजली-पानी फ्री करने का वादा भी कर दिया। वह गलवान में शहीद हुए सैनिकों के परिजनों को आर्थिक मदद का कार्यक्रम भी चला रहे हैं।
हालांकि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए एनसीपी के शरद पवार ने बेशक खुद कोई इच्छा न जताई हो, लेकिन उनकी पार्टी बात-बात पर शरद पवार को इस पद का उम्मीदवार बताने से नहीं चूकती है। वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। जब बात दलों से गठबंधन की आती है तो वे कांग्रेस और बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ पूर्व में हुए गठबंधन के कड़वे अनुभव सुनाने लगते हैं।
अंतत: लोकसभा चुनाव में फिलहाल विपक्षी एकता के बारे में कुछ भी भविष्यवाणी करना बेहद मुश्किल है। कांग्रेस, टीआरएस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी आदि की महत्वाकांक्षाएं अगर हावी होती हैं तो विपक्षी एकता की राह जटिल हो सकती है। इसलिए कह सकते हैं कि इस एकता की निर्भरता कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के रुख पर अधिक निर्भर करेगी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)