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संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन और भारत की भूमिका

– योगेश कुमार गोयल

सारी दुनिया में संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक दिवस हर साल 29 मई को मनाया जाता है। इस मिशन में भारत की अहम भूमिका है। 1960 से 1964 तक के यूएसओसी कांगो मिशन में भारतीय वायुसेना के छह कैनबरा बॉम्बर एयरक्राफ्ट तैनात किए गए थे। इनमें 467 अधिकारी, 401 जेसीओ और 11354 जवानों ने हिस्सा लिया था। इस मिशन में 39 सैनिकों ने अपने प्राण गंवाए थे। 1992 से 1993 तक कंबोडिया में भारत ने सीजफायर की निगरानी की थी। यहां के चुनाव में भी सहायता की थी। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के इस मिशन में 1373 सैनिकों की तैनाती की थी।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2002 में आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए पहली बार शांति रक्षा मिशन को अधिकार दिए। साथ ही 29 मई को ‘शांति रक्षक दिवस’ के रूप में नामित किया। तब से प्रतिवर्ष इस दिन को संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यूएन के शांति रक्षा कार्यों में भाग लेना वैकल्पिक है। कनाडा और पुर्तगाल ही विश्व में अब तक सिर्फ दो ऐसे देश हैं, जिन्होंने प्रत्येक शांति रक्षा अभियान में हिस्सा लिया है। यूएन का शांति रक्षा मिशन इस साल अपनी 75वीं सालगिरह मना रहा है। उसके अब तक के शांति रक्षक अभियानों में अब तक दुनियाभर के 4000 से भी ज्यादा शांति रक्षकों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। इनमें भारत के शांति रक्षकों की संख्या करीब 170 है। यह संख्या किसी भी अन्य देश के मुकाबले सर्वाधिक है। 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र अधिकार पत्र पर 50 देशों के हस्ताक्षर होने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई थी।

इसकी स्थापना द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता देशों ने की थी। इसका मकसद था कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय संघर्ष के मामलों में हस्तक्षेप करने से भविष्य में पुनः विश्वयुद्ध जैसे हालात न उभरने पाएं। इन देशों में अमेरिका, यूके, फ्रांस, रूस इत्यादि शक्तिशाली देश शामिल थे। इन संस्थापकों को उम्मीद थी कि वे इसके जरिये युद्ध को सदा के लिए रोक पाएंगे किन्तु 1945 से 1991 के शीत युद्ध के समय विश्व के विरोधी भागों में विभाजित होने के कारण शांति रक्षा संघ को बनाए रखना बहुत कठिन हो गया था।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा 29 मई 1948 को पहला संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन स्थापित किया गया था। उस समय इजरायल तथा अरब देशों के बीच फैली अशांति को दूर करने के लिए यूएन शांति रक्षक सैनिकों की तैनाती की गई थी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा अफ्रीका, अमेरिका, एशिया, यूरोप तथा मध्य पूर्व में 71 शांति अभियानों की स्थापना की गई। फिलहाल विश्व में एक लाख से भी अधिक पुरुष व महिला बतौर शांति रक्षक यूएन के शांति अभियानों में संलग्न हैं। संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन में सबसे ज्यादा संख्या इथोपिया और बांग्लादेश के शांति रक्षकों की है। इन दोनों देशों के बाद इसमें सर्वाधिक योगदान देने वाले देशों में भारत है। फिलहाल सात हजार से भी अधिक भारतीय सैन्य और पुलिस जवान अफगानिस्तान, कांगो, हैती, लेबनान, लाइबेरिया, मध्य पूर्व, साइप्रस, दक्षिण सूडान, पश्चिम एशिया और पश्चिम सहारा में तैनात हैं।

यूएन के शांति मिशनों में भारत की भूमिका अहम है। सबसे पहले नवम्बर 1950 से जुलाई 1954 तक चले कोरियाई युद्ध के दौरान भारत ने इस मिशन में 17 अधिकारी, नौ जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) तथा 300 सैनिक तैनात किए गए थे। भारत हथियारों से लैस एक दल को 1956 से 1967 के बीच संयुक्त राष्ट्र की आपातकालीन सेना में भेजने वाला देश भी बना था। इस अवधि के दौरान भारत की ओर से 393 अधिकारी, 470 जेसीओ तथा 12383 जवान संयुक्त राष्ट्र के मिशन में शामिल हुए थे।

वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र के किसी भी मिशन में भारत के किसी भी शांतिरक्षक को अपने प्राणों की आहुति नहीं देनी पड़ी। अंतरराष्ट्रीय संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक दिवस वैश्विक शांति के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले ऐसे संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षकों की स्मृति के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने शांति स्थापना में अपने प्राणों का बलिदान दिया। इस दिन ऐसे शांति रक्षकों को श्रद्धांजलि दी जाती है। मरणोपरांत डैग हैमारस्जोल्ड मेडल प्रदान किया जाता है। इस सम्मान की स्थापना वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र के दूसरे महासचिव डैग हैमारस्जोल्ड की स्मृति में की गई थी। हैमारस्जोल्ड की 1961 में एक विमान हादसे में मौत हो गई थी।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)