– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विदेश नीति का नया अध्याय लिखा है। उन्होंने विश्व शांति और सौहार्द का प्रभावी संदेश दिया है। यही कारण है कि विकसित देश भी भारत की बढ़ती भूमिका को स्वीकार कर रहे हैं। वैश्विक सम्मेलन में सर्वाधिक आकर्षण मोदी के प्रति होता है। ऐसा जापान के हिरोशिमा में भी हुआ। भारत जी-20 का अध्यक्ष है। मोदी दोनों संगठनों के बीच सहयोग के सूत्रधार बने हैं। उन्होंने कहा कि जी-20 और जी-7 के बीच एक महत्वपूर्ण लिंक बनाया जा सकता है।
नरेन्द्र मोदी ने जी-7 शिखर सम्मेलन में खाद्य, स्वास्थ्य और विकास से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए दस सूत्री कार्ययोजना का आह्वान किया है। सुझाव दिया कि वैश्विक नेताओं को ऐसी समावेशी खाद्य प्रणाली विकसित करनी चाहिए जिससे गरीब किसानों सहित सबसे कमजोर लोगों की रक्षा की जा सके। पोषण और पर्यावरण के हित में मोटे अनाज के उपयोग होना चाहिए। स्वास्थ्य सेवाएं विकसित करने के लिए डिजिटल व्यवस्था बढ़ाना आवश्यक है। विकासशील देशों की जरूरतों से प्रेरित विकास मॉडल होना चाहिए। परस्पर सहयोग से स्वास्थ्य सेवा,आरोग्य तथा खाद्य सुरक्षा जैसे क्षेत्रों से संबंधित चुनौतियों का समाधान करना महत्वपूर्ण है।
बड़ी बात यह है कि भारत जी-7 समूह का हिस्सा नहीं है। फिर भी भारत को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया। प्रधानमंत्री मोदी लगातार चौथी बार जी-7 में शामिल हुए। जी-7 दुनिया की सात सबसे बड़ी विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का समूह है। इसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं, जी-7 समूह की स्थापना 1973 में की गई थी। इसका किसी भी देश में मुख्यालय नहीं है। यह ग्रुप मानवीय मूल्यों की रक्षा, लोकतंत्र की रक्षा, मानवाधिकारों की रक्षा, अंतरराष्ट्रीय शांति का समर्थक, समृद्धि और सतत विकास के सिद्धांत पर चलता है। वस्तुतः नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जी-20 को नई दिशा मिल रही है। जी-7 के सदस्य भी भारत की इस भूमिका से प्रभावित है। नरेन्द्र मोदी की क्षमताओं का वह लाभ उठाना चाहते हैं। नरेन्द्र मोदी पर दुनिया को विश्वास है।
नरेन्द्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपनी विदेश नीति में भारतीय संस्कृति का भी समावेश किया है। इसमें सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना है। विश्व शांति का सपना केवल भारतीय चिंतन के माध्यम से ही साकार हो सकता है। नरेन्द्र मोदी ने इसी चिंतन का उद्घोष जी-20 में भी किया है। अन्य देशों की सभ्यताओं के लिए यह विचार दुर्लभ है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत के प्रति वैश्विक दृष्टि में परिवर्तन आ चुका है । आज भारत विश्व का नेतृत्व करने के लिए तैयार है। जलवायु परिवर्तन, युद्ध, आतंकवाद और वैश्विक निर्धनता के विभिन्न पक्षों पर मोदी के सुझाव समाधान करने वाले हैं। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः,’ ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ भारतीय दर्शन एवं भारतीय जीवन दृष्टि का प्राण तत्व है । भारतीय दृष्टि धरित्री को भूगोल मानने तक सीमित नहीं है। अपितु यह इसे मां के सदृश मानती है।
इसी दृष्टि से भारत की जी-20 की अध्यक्षता को लिया गया। पूर्व में आर्थिक रूप से संपन्न रहे भारत की तस्वीर को वापस लाना होगा। आज मानवता के कल्याण के लिए भारत के पास एक सशक्त नेतृत्व है जिसने नवीकरणीय उर्जा के क्षेत्र से लेकर आर्थिक विकास एवं सामरिक हितों को सशक्त किया है। आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत न केवल राष्ट्रीय स्तर पर अपना विकास कर रहा, अपितु वसुधैव कुटुंबकम की भावना के अनुरूप संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानते हुए सबके साथ सहयोग-भाव लेकर भी चल रहा है।
किसी वैश्विक संगठन ने पहली बार भारतीय सूक्ति को अपना ध्येय वाक्य बनाया है। वस्तुतः यह भारतीय चिंतन के बढ़ते प्रभाव और लोकधर्म की प्रतिध्वनि है। इसे विश्व सहजता से स्वीकार कर रहा है। लोगों को धीरे-धीरे यह समझ में आ रहा है कि वैश्विक समस्याओं का समाधान भारतीय चिंतन के माध्यम से किया जा सकता है। विश्व गुरु भारत ने सम्पूर्ण मानवता के लिए वसुधैव कुटुम्बकम का विचार दिया था। किसी अन्य सभ्यता संस्कृति के लिए यह दुर्लभ चिंतन था। इसमें सभ्यताओं के बीच संघर्ष की कोई संभावना नहीं थी। लेकिन कालान्तर में ऐसे संघर्ष का दौर भी चला। दुनिया में शांति और सौहार्द की अभिलाषा रखने वालों को भारतीय विरासत में ही समाधान दिखाई दे रहा है। अन्य कोई विकल्प है भी नहीं।
यह विषय दुनिया को युद्ध मुक्त करने तक ही सीमित नहीं है। भारत ने पृथ्वी सूक्ति के माध्यम से मानवता को पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति संवर्धन का भी संदेश दिया। कोरोना काल में भारतीय जीवन-शैली और आयुर्वेदिक को दुनिया में पुनः प्रतिष्ठित किया है। उस समय अपने को विकसित समझने वाले देश भी लाचार हो गए थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विश्व कल्याण के दृष्टिगत दुनिया को भारतीय विरासत से परिचित करा रहे हैं। उनके प्रयासों से अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। योग प्रत्येक व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य हेतु बहुत उपयोगी है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ऐसे मानवीय तथ्यों को दुनिया में स्थापित कर रहा है। विगत नौ वर्षों के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रभाव बढ़ा है।
जी-20 में भी भारत के विचारों को बहुत महत्व मिलने लगा है। कुछ वर्ष पहले तक यह कल्पना भी मुश्किल थी कि भारत इस संगठन का अध्यक्ष बनेगा। आज यह सहज रूप में सम्भव हुआ है। नरेन्द्र मोदी ने इसे भारत के लिए एक बड़ा अवसर माना है। इसके माध्यम से वह विश्व कल्याण के तथ्यों लोगों को अवगत करा रहे हैं। जी-20 शिखर सम्मेलन का लोगो अपने में एक विचार को अभिव्यक्त करने वाला है। नरेन्द्र मोदी ने भारत की मेजबानी में अगले वर्ष आयोजित होने वाली जी -20 शिखर वार्ता का प्रतीक चिह्न, ध्येय वाक्य और वेबसाइट का अनावरण किया था।
जी-20 के प्रतीक चिह्न में सात पंखुड़ियों वाले कमल के फूल पर गोलाकार विश्व स्थित है। इसके नीचे भारतीय संस्कृति का प्रसिद्ध ध्येय वाक्य ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अंकित है। साथ ही वन अर्थ,वन फैमिली और वन फ्यूचर को स्थान दिया गया है। मोदी ने कहा कि इस लोगो और थीम के माध्यम से एक संदेश दिया गया है। हिंसा के प्रतिरोध में महात्मा गांधी के जो समाधान हैं। जी-20 के जरिए भारत उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा को नई ऊर्जा दे रहा है।
नरेन्द्र मोदी ने संयुक्तराष्ट्र महासभा में भी कहा था कि भारत युद्ध नहीं बुद्ध का देश है। प्रतीक चिह्न में कमल का फूल भारत की पौराणिक धरोहर, हमारी आस्था और हमारी बौद्धिकता को चित्रित करता है। प्रतीक चिह्न के कमल की सात पंखुड़ियां दुनिया के सात महाद्वीपों और संगीत के सात स्वरों का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रतीक चिह्न इस आशा को जगाता है कि दुनिया एक साथ आगे बढ़ेगी। प्रतीक चिह्न में कमल आज की विपरीत परिस्थितयों में आशा जगाता है। चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियां हों कमल खिलता रहता है।आजादी के अमृतकाल में देश के सामने जी-20 की अध्यक्षता का बड़ा अवसर है। यह भारत के लिए गर्व और गौरव की बात है। जी-20 ऐसे देशों का समूह है जो विश्व के सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में 85 प्रतिशत की भागीदारी रखता है। इन देशों में दुनिया की दो तिहाई जनसंख्या रहती है। विश्व व्यापार में इसकी 75 प्रतिशत की भागीदारी है। भारत का प्रयास है कि विश्व में कोई ‘पहली दुनिया’ या ‘तीसरी दुनिया’ न हो, बल्कि एक दुनिया’ हो।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)